क्या 'काबिल' ही 'रईस' होता है? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या 'काबिल' ही 'रईस' होता है?
प्रकाशन तिथि :22 जुलाई 2016


शाहरुख खान अभिनीत 'रईस' और रितिक रोशन अभिनीत 'काबिल' का प्रदर्शन 26 जनवरी 2017 को तय पाया गया है। इसकी घोषणा पहले निर्माता राकेश रोशन ने की, शाहरुख अभिनीत फिल्म 'रईस' की घोषणा बाद में हुई। अब दोनों फिल्मों के निर्माता आपस में मिलकर प्रदर्शन तिथि को बदलने की संभावनाएं टटोल रहे हैं, क्योंकि दो सितारा जड़ित फिल्मों के एक ही समय प्रदर्शित होने पर दोनों का व्यवसाय कम हो सकता है। आजकल प्रदर्शन के समय इतवार के अतिरिक्त एक छुट्‌टी से आय में इजाफा होता है। गौरतलब है कि किसी निर्माता या उसके सितारे को अपनी फिल्म की गुणवत्ता से अधिक भरोसा एक अतिरिक्त छुट्‌टी से अर्जित आय पर होता है। राजकुमार हीरानी और विधु विनोद चोपड़ा की 'मुन्नाभाई' जेपी दत्ता की किसी बहुसितारा फिल्म के साथ प्रदर्शित हुई थी और उसकी गुणवत्ता सितारों की भीड़ वाली फिल्म पर भारी पड़ गई थी। इस घटना के साथ नियति का यह व्यंग्य जुड़ा है कि निर्माता विधु चोपड़ा ने पहले 'मुन्नाभाई' की नायक भूमिका शाहरुख खान को प्रस्तुत की थी, परंतु कुछ कारणवश बात नहीं बनी थी गोयाकि जो फिल्म आप नहीं कर पाए, उसी से अब विचलित हो रहे हैं।

रितिक रोशन की भूतपूर्व पत्नी सुज़ान और शाहरुख खान की पत्नी गौरी घनिष्ट सहेलियां हैं और प्राय: एक-दूसरे से मिलती रहती हैं, परंतु प्रदर्शन की एक ही तारीख की टकराहट से उनका न कोई सरोकार है और न ही उनकी मंशा इसमें दखलंदाजी करने की हो सकती है। गौरी खान की सभी सहेलियां प्राय: एक-दूसरे से मिलती हैं। प्राय: सफल धनाढ्य लोगों की पत्नियां गुरुदत्त की फिल्म 'साहब बीबी और गुलाम' के एक संवाद को ही कमोबेश जीती हैं, 'गहने तुड़वाओ गहने बनवाओ और चौपड़ खेलो।' वे फिल्मों के इस टकराव से चिंतित हो सकती हैं, परंतु अपनी मित्रता का इस्तेमाल नहीं करेंगी। शाहरुख खान और रितिक रोशन भले ही इसे स्वीकार नहीं करें, परंतु सलमान खान की निरंतर सफलताएं उनके अवचेतन को झंझोड़ती अवश्य होंगी, क्योंकि एक ही व्यवसाय में रहने वाले लोगों के हृदय में अनेक शंकाएं होती ही हैं। दिलीप कुमार और राज कपूर समकालीन थे, अत: उनमें प्रतिद्वंद्विता का भाव था, परंतु एक-दूसरे के काम की प्रशंसा भी खुले दिल से करते और हमेशा बेहतर काम करने के लिए आतुर रहते थे। राज कपूर ने बेंगलुरू में 'गंगा जमुना' देखने के बाद आधी रात दिलीप कुमार को फोन पर कहा, 'लाले तुसी कमाल कीता, आज फैसला हो गया तू ही ग्रेट अभिनेता हो गया है।' यह कितना बड़ा संयोग है कि डाकू समस्या पर तीन फिल्में लगभग एक ही समय प्रदर्शित हुईं। राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' के बाद दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' और सुनील दत्त की 'मुझे जीने दो।' दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' दस्यु जीवन के कष्टों को प्रस्तुत करती है, राजकपूर की फिल्म डाकुओं के आत्मसमर्पण के बाद पुन: सामान्य जीवन में लौटने का संदेश देती है। 'मुझे जीने दो' दस्यु जीवन को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास था। ज्ञातव्य है कि जब राजकपूर अपनी फिल्म का क्लाईमैक्स ऊटकमंड में फिल्मा रहे थे, तब विनोबा भावे ने डाकुओं के आत्मसमर्पण के काम को अंजाम देने का सार्थक प्रयास किया था।

अर्जुन देव रश्क ने पहले देवआनंद को कथा सुनाई थी और उन्हीं की सिफारिश पर राज कपूर ने रश्क को समय दिया। उस कथा वाचन के बाद शंकर जयकिशन को लगा कि फिल्म में गीतों की गुंजाइश नहीं है। राज कपूर ने एक माह बाद अपने अंदाज में उसी कथा को शंकर जयकिशन को सुनाया और दर्जनभर गीतों की गुंजाइश निकल आई। राज कपूर की सृजन प्रक्रिया में पहले ध्वनियां आती थीं, फिर दृश्य उभरते थे, जो कमोबेश ध्वनियों का ही सचित्र स्वरूप है। राज कपूर के लिए वह संकट काल था। नरगिस से अलगाव और 'जागते रहो' की बॉक्स ऑफिस पर असफलता तथा उनकी फिल्मों में हमेशा पूंजी लगाने वाले पुरी साहब का फिल्म छोड़कर प्रकाशन की ओर जाने के निर्णय से भी पूंजी जुटाने की समस्या मुंह बाए खड़ी थी। इस तरह विपरीत परिस्थितियों में ही व्यक्तित्व सामने आता है।