क्या 'गुजारिश' के बाद 'सिफारिश' मुमकिन है? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
क्या 'गुजारिश' के बाद 'सिफारिश' मुमकिन है?
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2018


संजय लीला भंसाली ने ऋितक रोशन से फिर गुजारिश की है कि उनकी अगली फिल्म में अभिनय करना स्वीकार करें। ऋितक रोशन ने सोचने के लिए समय मांगा है परन्तु नजदीकी लोगों का कहना है कि दोनों साथ काम करना चाहते हैं। संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों की असली शक्ति स्वयं को मानते हैं। दरअसल हिन्दुस्तानी सिनेमा में शांताराम, मेहबूब खान, बिमल रॉय और राजकपूर की फिल्में उनके अपने नाम से बिकती थीं। सितारों की बैसाखियों की उन्हें आवश्यकता कभी नहीं रही। 'मेरा नाम जोकर' की असफलता के बाद राजकपूर ने नए कलाकारों के साथ 'बॉबी' बनाई थी और वितरकों से मुंहमांगी रकम पाई थी। जब पृथ्वीराज कपूर ने शांताराम की 'शकुंतला' करने से इन्कार किया तब शांताराम ने स्वयं ही नायक की भूमिका अभिनीत की थी। संजय लीला भंसाली प्राय: कलाकारों को नाम मात्र का धन देना चाहते हैं तो दूसरी ओर ऋितक के पिता राकेश रोशन अपने रुपए के बीस आने मांगते हैं। अत: यह द्वंद्व आठ आने के रुपए और बीस आने के रुपए की बीच का है।

संभावना यह है कि समझौता रुपए के सोलह आने पर होगा जो कि रिजर्व बैंक द्वारा तय किया गया मूल्य है। आजकल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपया हिकारत से देखा जा रहा है और डॉलर के मुकाबले में उसकी कीमत गिरती जा रही है। संजय लीला भंसाली की फिल्में रंगों और ध्वनियों से पूर्ण होती हैं। संजय लीला भंसाली पर शांताराम का प्रभाव है। शांताराम ने 'दुनिया ना माने', 'आदमी', 'पड़ोसी' और 'दो आंखें बारह हाथ' जैसी सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्मों के साथ ही 'नवरंग' और 'झनक झनक पायल बाजे' जैसी फिल्में बनाई हैं। संजय लीला भंसाली ने शांताराम के पहले स्वरूप से कभी प्रेरणा नहीं ली परन्तु दूसरे स्वरूप को अपनाया जिसमें रंग और ध्वनि के साथ होली और दीवाली खेलने की तरह की फिल्में गढ़ी जाती हैं। इस बार वे ऋितक रोशन के साथ कुछ भी बनाएं परन्तु यह तय है कि फिल्म में चटख रंग होंगे और ध्वनियां गूंजती रहेंगी। उनके पात्र प्राय: ईको पॉइन्ट पर खड़े होने से प्रतीत होते हैं। ज्ञातव्य है कि पहाड़ों पर निकाली गई आवाजें घाटियों से लौट आती हैं और इन स्थानों को ईको पॉइन्ट कहते हैं।

संजय लीला भंसाली के पिता एक असफल फिल्म बनाने के बाद नैराश्य में चले गए थे और असमय उनका निधन हुआ। संजय की मां ने गुजराती नाटकों में नृत्य निर्देशन करके अपने पुत्र को पाला। उन्हें आदरांजलि देने के लिए संजय ने अपने नाम के साथ मां का नाम 'लीला' जोड़ा। पिता की स्मृति में उन्होंने शाहरुख खान अभिनीत 'देवदास' बनाई थी। उनकी अब तक बनाई हुई फिल्मों में श्रेष्ठ फिल्म है सलमान खान और ऐश्वर्या राय अभिनीत 'हम दिल दे चुके सनम'। उनकी पहली फिल्म 'खामोशी' असफल रही थी और कोई कलाकार उन्हें उपलब्ध नहीं था। ऐसे में सलमान खान ने उनकी मदद की थी परन्तु आज वे सलमान खान के पास नहीं जाते।

आज फिल्मकार घर दर घर सामान बेजने वाले सेल्समैन की तरह हो गए हैं। कुछ चतुर सुजान नुमा फिल्मकार अपनी मूंगफली भी बादाम के दाम में बेचने में सफल होते हैं। वह दौर कुछ और था जब दिलीप कुमार ने बिरजू की भूमिका अस्वीकार की तो मेहबूब खान ने उभरते कलाकार सुनील दत्त के साथ 'मदर इंडिया' जैसी भारी लागत की फिल्म बनाने का साहस किया। शांताराम तो महिपाल के साथ भी सुपरहिट फिल्म बना लेते थे। राजकपूर ने 'आह' की असफलता के बाद बाल कलाकारों के साथ 'बूट पॉलिश' जैसी सफल फिल्म बनाई और इसी तरह का साहस 'मेरा नाम जोकर' के बाद 'बॉबी' बनाकर दिखाया। आजकल के फिल्मकार बिना सितारा बैसाखी के दो कदम नहीं चल पाते।

ऋितक रोशन की नृत्य करने की क्षमता का भरपूर दोहन अभी तक नहीं हुआ है। अनुमान लगाया जा सकता है कि अब भंसाली इस गुण को भुनाएंगे। आमिर खान के ताऊ के सुपुत्र मंसूर खान ने हॉलीवुड की 'वेस्ट साइड स्टोरी' की प्रेरणा से 'जोश' नामक फिल्म बनाई थी जिसमें शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय ने बहन-भाई की भूमिकाएं अभिनीत की थी। अब जोया अख्तर की 'गली बॉय' भी 'वेस्ट साइड स्टोरी' की तरह होने की संभावना है।

संजय लीला भंसाली ऋितक रोशन के साथ दीपिका पादुकोण के पास नहीं जाएंगे क्योंकि रणवीर सिंह से किनारा कर लेने के कारण वह द्वार उनके लिए बंद सा हो चुका है। बतर्ज 'दस का दम' कितने प्रतिशत भारतीय यह अनुमान करते हैं कि संजय लीला भंसाली अब दीपिका पादुकोण के बदले प्रियंका चोपड़ा को अनुबंधित करना चाहेंगे? 'गुजारिश' के बाद अगली फिल्म का नाम 'सिफारिश' भी रखा जा सकता है।