क्या 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन राष्ट्रपति होंगे? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन राष्ट्रपति होंगे?
प्रकाशन तिथि :15 मार्च 2017


अमेरिका में फिल्म अभिनेता रोनाल्ड रेगन चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे। दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग से कई नेताओं का उदय हुआ है। अन्ना द्रविड मुनेत्र कडघम के संस्थापक पेरियार भी पटकथा लेखक थे। देव आनंद और कुछ अभिनेताओं ने भी राजनीतिक दल का गठन किया था, जो उस फिल्म की तरह सिद्ध हुआ, जिसका शानदार मुहूर्त होता है परंतु फिल्म नहीं बनती। दक्षिण के सितारे रजनीकांत अनेक बार राजनीति में आने का निमंत्रण अस्वीकार कर चुके हैं। बालासाहेब ठाकरे राजनीति में आने के पहले कार्टून बनाते थे और फिल्मों में उनकी गहरी रुचि थी। एक दौर में वे इंदौर के हरिकृष्ण प्रेमी के फिल्म निर्माण से कुछ हद तक जुड़े भी थे। दरअसल, फिल्म और राजनीति का भाग्यविधाता आम आदमी है परंतु आम आदमी के मनोरंजन चुनाव और राजनीतिक रुझान में गहरा अंतर है। उसे सिनेमा में समाजवादी नायक पसंद है परंतु राजनीति में कभी-कभी पूंजीवादी नेतृत्व को पसंद करता-सा लगता है। दरअसल, कभी-कभी वह मुखौटे के पार नहीं देख पाता। आम आदमी के अपने मोतियाबिंद भी होते हैं।

अमेरिका जैसे घोर पूंजीवादी देश में भी फिल्मों का नायक साधनहीन वर्ग से आया दिखाया जाता है। सिनेमा की आर्थिक रीढ़ आम दर्शक ही रहता है। ज्ञातव्य है कि भारत के राष्ट्रपति का चुनाव 25 जुलाई 17 तक होना है। प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई 17 तक है। राजनीतिक क्षेत्र में एक ही व्यक्ति का बोलबाला है और राष्ट्रपति चुनाव में भी उनकी इच्छा का आदर उनका दल करेगा। भाजपा से जुड़े अधिकतर लोग चाहेंगे कि उनके दल के हाशिये में पड़े लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति पद सांत्वना पुरस्कार के रूप में दिया जाए। अटलजी तो अचेत समान है परंतु आडवाणी उम्र के इस दौर में भी चुस्त-दुरुस्त नज़र आते हैं। उनका हक मारकर शीर्ष पर विराजा व्यक्ति छाछ भी फूंक-फूंककर ही पीता नज़र आता है। हमारे संविधान की संरचना में ही यह तय किया गया है कि मंत्रिमंडल की सलाह पर ही राष्ट्रपति काम करता है। राष्ट्रपति भवन अत्यंत विराट और भव्य है तथा अनगिनत सेवक उसकी चाकरी के लिए मौजूद है परंतु फिर भी वह सोने के पिंजरे में बंद पंछी ही है।

क्या नरेंद्र मोदी चाहेंगे कि अमिताभ बच्चन को भारत का राष्ट्रपति बनें? अमिताभ बच्चन गुजरात पर्यटन के लिए कार्य करते हुए उनके निकट आ गए थे। आज भी सरकार द्वारा जनहित में जारी अनेक विज्ञापन फिल्मों में वे काम कर रहे हैं। एक अनुमान है कि अभी भी उनकी सालाना आय सौ करोड़ से कम नहीं है। उन्होंने पूंजी निवेश भी चतुराई से किया है। राष्ट्रपति पद के लिए उन्हें अभिनय और विज्ञापन फिल्मों तथा 'कौन बनेगा करोड़पति?' जैसे कार्यक्रम छोड़ने होंगे। राष्ट्रपति पद की गरिमा की तुलना में यह राशि कोई मतलब नहीं रखती। विदेश दौरों में अत्यंत धनाढ्य व सफल लोगों से मुलाकात होती है और बकिंघम पैलेस से न्योता भी आता है। मुंबई में बच्चन साहब जुहू में निवास करते हैं और राष्ट्रपति भवन तथा उसके बगीचों इत्यादि का क्षेत्रफल भी पूरे जुहू विले पार्ले क्षेत्र से कम नहीं होगा।

बहरहाल, अमिताभ बच्चन नैनीताल के श्रेष्ठि वर्ग के बच्चों के लिए बने शेरवुड में पढ़े और संस्था द्वारा आयोजित नाटक में अभिनय के लिए उन्हें 'केंडल पुरस्कार' मिला था। ज्ञातव्य है कि शशि कूपर की पत्नी जेनिफर केंडल का पूरा परिवार ही नहीं वरन् पीढ़ियां रंगमंच को समर्पित रही हैं और शेेरवुड का यह पुरस्कार उन्हीं को आदरांजलि स्वरूप स्थापित हुआ है। उस समय अमिताभ बच्चन को भी कल्पना नहीं होगी कि कभी वे शीर्ष सितारा बनेंगे और शशि कपूर उनके भाई की भूमिका निभाएंगे। हरिवंश राय बच्चन की चार खंडों में प्रकाशित आत्मकथा के खंड दो 'नीड़ का निर्माण फिर' में उन्होंने अमिताभ के जन्म के समय का विशद वर्णन किया है। विवरण में लिखा है कि हरिवंश राय बच्चन स्वप्न में 'मानस' का पाठ कर रहे हैं और राम जन्म की कथा बांच रहे हैं। ठीक उसी समय उनकी पत्नी को प्रसव पीड़ा प्रारंभ हुई। इसी कारण हरिवंश राय के मन में विश्वास बना की उनका यह पुत्र विशेष होगा और काफी हद तक विशेष हुआ भी। हरिवंश राय को नेहरू ने राज्यसभा में नामांकित किया और अपने पास वाला ही बंगला आवंटित कराया। इस तरह शेरवुड ्कूल में श्रेष्ठि वर्ग के बच्चों के साथ पढ़ने का सुयोग बना और नेहरू का पड़ोसी होने के कारण उनकी जन्मजात महत्वाकांक्षाओं को खूब हवा मिली। धन और राजनीतिक सत्ता का संबंध उन्हें पूरी तरह समझ में आ गया।

अमिताभ बच्चन की विचार प्रक्रिया के थोड़े से आकलन से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होने के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करेंगे। यह मात्र एक कल्पना है, जिसका आधार अमिताभ बच्चन एवं नरेंद्र मोदी की विचार प्रक्रिया का व्यक्तिगत आकल्पन है। नरेंद्र मोदी किसी व्यवसायी नेता से अधिक इस अभिनेता को राष्ट्रपति बनाकर अपनी सस्ती लोकप्रियता में इजाफा करेंगे और इससे अमिताभ बच्चन की सुप्त महत्वकांक्षा भी पूरी होगी, क्योंकि उनके मन में भी उनके जन्म के समय उनके पिता के स्वप्न की बात गहरे दर्ज होगी। उन्हें सौ करोड़ प्रतिवर्ष अभिनय मेहनताने से वंचित होना होगा परंतु संपत्ति के संपृक्त घोल में और चीनी नहीं घुल पाती। इस मोह का त्याग आसान नहीं है। नेहरू-गांधी के बाग में खिला फूल जाकर नरेंद्र मोदी के जैकेट में लगा। राजीव गांधी के विवाह के समय तेजी बच्चन ने सोनिया को साड़ी बांधना सिखाया था और आज वे उनके साथ हैं, जो सोनिया का राजनीतिक चरित्रहरण कर रहे हैं। लोग राजनीति के छाते के नीचे वर्षा से बचने के लिए ही नहीं वरन किसी प्यास को बुझाने के खातिर भी आते हैं।