क्या ' गुलाबी गैंग ' ही निदान है ? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{GKGlobal}}

क्या ' गुलाबी गैंग ' ही निदान है ?
प्रकाशन तिथि : 20 दिसम्बर 2012


देश की राजधानी में दिनदहाड़े बर्बर दुष्कर्म पर संसद से सड़क तक दुख प्रकट किया जा रहा है और मोमबत्तियां जलाकर जुलूस निकाले जा रहे हैं। लोगों का क्षोभ असली है। इस तरह की घटनाओं पर हमें हमेशा दुख होता है, परंतु समाज में महिला के सम्मान और पुरुषों से समानता के सिद्धांत को हकीकत में बदलने के लिए कभी कुछ नहीं किया जाता। यह सारा क्षोभ और गुस्सा श्मशान वैराग्य की तरह है। चंद दिनों में हम फिर अपना मस्ती-मंत्र जपने लगेंगे, क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है। इससे मिलती-जुलती घटनाएं ग्रामीण भारत में प्रतिदिन होती हैं, परंतु ये मीडिया की पहुंच के बाहर है। जब एक आदिवासी युवती के खरीदने की घटना को धूम-धड़ाके के साथ मंचित किया गया तो सारा देश शर्मसार था, परंतु बाद में कमला नामक इस युवती का क्या हुआ, किसी ने जानने का प्रयास नहीं किया। हम तमाशबीन हैं और तमाशे हमें उत्तेजना देते हैं।

तमाशा राष्ट्रीय शगल है। दुष्कर्म की शिकार लड़की अस्पताल से ऊपरी जख्मों के सफल इलाज के बाद अपनी लहूलुहान आत्मा और घायल अवचेतन लेकर लौटेगी तो कौन उसे अपनाएगा। तब संसद में टेसुएं बहाने की प्रतिस्पद्र्धा में जमकर भाग लेने वाले उसी रूमाल से अपना चेहरा ढांके सुविधा की पतली गलियों में अपनी मांद में जा छुपेंगे और अगले शिकार पर दुख प्रकट करने के अवसर का इंतजार करेंगे। दुष्कर्म के दोषियों को कड़ा दंड दिए जाने की चर्चा उसी संसद में जोर-शोर से होगी, जिसने दशकों से महिलाओं के तैंतीस प्रतिशत आरक्षण नियम को अभी तक कानून में नहीं बदलने दिया है। हमारे दोहरे मानदंड ही जड़ में हैं तथा शास्त्रों से संविधान तक महिला को गरिमामंडित करने वाला यह देश व्यावहारिक जीवन में हमेशा औरतों के प्रति निर्मम रहा है और यह दृष्टिकोण हमने वंशानुगत परंपरा की तरह सदियों पहले से ग्रहण किया हुआ है। मूल बात यह है कि हमें औरतों से भय लगता है। हम लाख रोएं, किलपें और छातीकूट करें, परंतु यह सब दिखावा है। जब तक पुरुष अपनी कमतरी के अहसास को सरेआम स्वीकार नहीं करता, तब तक तमाशा जारी रहेगा।

दशकों पूर्व शांताराम ने 'अमर ज्योति' नामक फिल्म रची थी, जिसमें एक विवाहित नारी अपने पति की प्रतिदिन की मारपीट से त्रस्त होकर उसके खिलाफ न्यायालय में जाती है और जज महोदय उसकी अपील को खारिज करते हुए क्रूर टिप्पणी करते हैं कि पति तो अपनी पत्नी को बेच भी सकता है। उसने तो उसे अपनी दौलत की तरह दांव पर लगाकर जुआ भी खेला है। शांताराम की नायिका अपनी तरह त्रस्त तेरह औरतों का एक दल गठित करती है और चुन-चुनकर पुरुषों को दंडित करती है। कुछ वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश में गुलाबी गैंग का उदय हुआ, जिस पर इस समय माधुरी दीक्षित नेने को लेकर फिल्म बनाई जा रही है। बलदेवराज चोपड़ा ने भी वर्ष १९८० में 'इंसाफ का तराजू' बनाई थी, जो उन्होंने हॉलीवुड की फिल्म 'लिपस्टिक' से चुराई थी। उसी फिल्म में राज बब्बर को प्रस्तुत किया गया था और दुष्कर्म की शिकार थीं जीनत अमान और बालिका पद्मिनी कोल्हापुरे। इस फिल्म में बचाव पक्ष का वकील यह खोखली दलील प्रस्तुत करता है कि शरीर प्रदर्शित करने वाले साहसी कपड़े पहनकर निकली महिलाएं दुष्कर्म का निमंत्रण-पत्र होती हैं। पुरुष लंपटता का यह हाल है कि रजाई से पूरी तरह ढंकी स्त्री भी उससे बचती नहीं है। पुरुष हृदय में बसी अपनी कमतरी इस तरह हिंसा के रूप में सदियों से अभिव्यक्त होती रही है।

इसी तरह सैक्स शिक्षा को पाठ्यक्रम से दूर रखना भी उसी भय एवं कमतरी का एक हिस्सा है। स्त्री अपने शरीर को वैज्ञानिक रूप से नहीं समझे, इसी तथ्य में पुरुष अपनी कमतरी सहित सुरक्षित रहता है। दरअसल इस सामाजिक समस्या का गहरा अध्ययन और उसके नतीजों का सरेआम जाहिर न किया जाना हमारे दोहरे मानदंड का हिस्सा है।

इसी समस्या से जुड़ा यह मूल मुद्दा भी है कि जर्जर कानून-व्यवस्था के लिए पुलिस के ऊपर राजनीतिक दबाव जवाबदार है। यह भी सच है कि बेलगाम पुलिस स्वयं बर्बर हो जाती है। इन व्यावहारिक कठिनाइयों के निदान के लिए कोई प्रयास नहीं होता। हमारी तोयह शैली रही है कि कभी समस्या की जड़ पर प्रहार मत करो, लाक्षणिक इलाज ही हमें पसंद है। पुलिस के कर्तव्य, आचरण एवं अधिकार को पुन: परिभाषित करना आवश्यक है। इस बार के दुराचारी राजनीतिक रूप से बलशाली नहीं हैं, अत: दंडित भी हो जाएंगे, परंतु सफेदपोश सत्ता-सूत्र से जुड़े लोग कभी दंडित नहीं होते। यह माथा देखकर तिलक लगाना हमने कहां से सीखा है। ख्यातिनाम मंदिरों में भी धनाढ्य को कभी कतार में नहीं खड़े होना पड़ता। क्या देश साफगोई के लिए तैयार है? दरअसल यह सवाल हर भारतीय स्वयं से पूछे कि क्या वह समानता, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता में सचमुच यकीन करता है और सड़ांध से मुक्त होना चाहता है?