क्या अचानक, सचमुच अनसोचा है? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
क्या अचानक, सचमुच अनसोचा है?
प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2019


साहित्य और सिनेमा में कथाएं दोहराई जाती हैं। शेक्सपीयर का विचार था कि कुल जमा 36 प्लॉट हैं, परंतु प्रस्तुतीकरण के द्वारा उनमें अंतर उत्पन्न किया जा सकता है। बोतल और लेबल बदलकर वही माल बार-बार बेचा जा सकता है। स्वयं शेक्सपीयर ने अपने नाटकों की प्रेरणा ग्रीक साहित्य और लोक कथाओं से प्राप्त की थी, परंतु गालिब की तरह उनका 'अंदाजे बयां' और रहा। घने बादलों के बीच बिजली का चमकना कोई इत्तफाक नहीं है और ठीक इसी तरह नए विचार का जन्म भी अकस्मात नहीं होता। विचार बहुत पहले से अवचेतन में सुषुप्तावस्था में पड़े हुए ज्वालामुखी की तरह मौजूद होते हैं। बाथटब में स्नान करते हुए विचार जन्मा और बिना वस्त्र पहने ही दार्शनिक दौड़कर बाहर आया। प्रकृति की गोद से लोकगीत और धुनों का जन्म होता है और उनका व्याकरण रचने पर वह शास्त्रीय संगीत कहलाता है। जब व्याकरण रचने में असमर्थ होते हैं तब उसे दैवी प्रेरणा कहा जाता है।

टैनिसन की 'ऑडेन' नामक लंबी कविता से प्रेरित इंदरराज आनंद ने 'घराना' नामक पटकथा लिखी। राज कपूर के आग्रह पर रची पटकथा इंदरराज आनंद ने उन्हें सौंप दी, परंतु कोई 17 बरस बाद राजकुमार ने 'संगम' बनाई। बचपन के तीन दोस्त हैं- कम बोलने वाला गोपाल, बड़बड़िया सुंदर और राधा जो गोपाल से प्रेम करती है, परंतु सुंदर भी उससे प्रेम करता है। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि राधा की शादी सुंदर से हो जाती है। वर्षों पहले लिखा एक प्रेम पत्र सुंदर के हाथ लग जाता है और उसे ज्ञात होता है कि राधा और गोपाल एक-दूसरे से प्रेम करते थे, परंतु मौत के मुंह से लौटे मित्र के लिए उन्होंने अपना प्रेम त्याग करके उनका विवाह कराया। तीन पात्रों के बीच 40 मिनट तक चलने वाले क्लाइमेक्स में राधा दोनों को लताड़ती है कि क्या उन्होंने उसे फुटबॉल समझते हुए एक-दूसरे को पास करते हुए इस खेल को त्याग का नाम दिया है? कभी भी उससे उसकी अपनी इच्छा नहीं पूछी गई। फिल्मकार ने अपनी सहूलियत से गोपाल को आत्महत्या करने का अवसर दिया और वह सरस्वती की तरह अदृश्य हो गया था ताकि गंगा और यमुना का संगम हो सके, परंतु क्या सचमुच में आत्महत्या कोई समाधान है?

सुंदर और गोपाल यूरोप में हनीमून मना रहे हैं और बिना राधा को बताए ही सुंदर, गोपाल को यूरोप बुला लेता है। राधा, गोपाल से कहती है कि उसे वहां नहीं आना चाहिए था। राधा का एक संवाद उसकी कश्मकश को अभिव्यक्त करता है- 'ब्याहता स्त्री का जीवन रंगों के एक इंद्रधनुष की तरह है जो खेले तो तूफानों में और मिटे तो जैसे थी ही नहीं'। ठीक इसी क्षण एक इंद्रधनुष जलप्रपात पर दिखाई देता है। यह संभव है कि लोकेशन देखकर यह संवाद लिखा गया हो? 'संगम' प्रदर्शन के कई बरस बाद बोनी कपूर ने दक्षिण के प्रसिद्ध फिल्मकार के. बापू की लिखी और निर्देशित फिल्म 'वो सात दिन' बनाई। फिल्म में अनिल कपूर अभिनीत पात्र पटियाला से आया संगीतकार है। वह एक कमरा किराए से लेता है और मकान मालिक की पुत्री को उससे प्रेम हो जाता है। मकान मालिक की पुत्री का विवाह एक डॉक्टर से हो जाता है, जिसने अपनी बीमार मां के आग्रह पर शादी की है। उसकी पहली पत्नी मर चुकी है और उसकी एक बेटी है। शादी की रात दुल्हन सब सच बता देती है और डॉक्टर पति उसे वचन देता है कि वह पटियाले वाले संगीतकार को खोजकर उसकी 'अमानत' उसे सौंप देगा। अपनी इच्छा के विरुद्ध ब्याही महिला को अपने विधुर पति की पुत्री से स्नेह हो जाता है। क्या यह अचानक होता है या उसके भीतर सोई हुई मां जाग जाती है? बहरहाल क्लाइमेक्स में संगीतकार विवाह के बंधन की मजबूती पर लंबा संवाद बोलता है। वह पत्नी मंगलसूत्र उतारने से इनकार करती है और संगीतकार नई धुनों की तलाश में निकल पड़ता है। संस्कार और शादी की पवित्रता बरकरार रहती है। 'संगम','वो सात दिन' की परंपरा की तीसरी फिल्म भंसाली की सलमान खान ऐश्वर्या राय और अजय देवगन अभिनीत 'हम दिल दे चुके सनम' है। इस फिल्म में भी ऐश्वर्या अभिनीत पात्र का विवाह अपने प्रेमी से न होकर अजय देवगन से होता है, जो सत्य जानते ही अपनी पत्नी को लेकर यूरोप जाता है जहां उसका पूर्व प्रेमी रहता है। इस फिल्म में पति-पत्नी पहली बार एक बस में आलिंगनबद्ध होते हैं। वे बिना टिकट यात्रा कर रहे थे और दंड से बचने का यही तरीका है। यूरोप में आलिंगनबद्ध लोगों को टिकट चेकर चेक नहीं करता। सार्वजनिक स्थान पर हमारे यहां चुंबन प्रतिबंधित है। इस बात पर राजकुमार हिरानी की 'पीके' में तंज किया गया है कि 'इस गोले पर जो काम खुलेआम करना चाहिए, वह गुप्त रखा जाता है।' बहरहाल इस फिल्म में अन्य दो फिल्मों की तरह विवाह की पवित्रता और संस्कार बनाए रखने के लिए पति-पत्नी सात जन्मों के बंधन का विवाह निर्वाह करते हैं और प्रेमी प्रेम प्रकाश पटियाला वाले की तरह नई धुन की खोज में निकल पड़ता है। तीनों ही फिल्मों में संस्कार के नाम पर राधाएं अपने श्रीकृष्ण से दूर हो जाती हैं। यह 'संस्कार' पुरुष द्वारा निर्मित और स्त्री पर थोपे हुए तथाकथित नियम है। धर्मवीर भारती ने अपनी 'कनुप्रिया' में राधा को यह कहते हुए प्रस्तुत किया है कि 'हे कृष्ण तुमने मुझे अपनी बाहों में बांधा, परन्तु अपने इतिहास से क्यों वंचित किया? महिलाओं के प्रश्न सदियों से अनुत्तरित ही रहे हैं और घाटियों से टकरा कर ये सदाएं लौट आती हैं।