क्या अनुष्का शर्मा 'अभागी' है? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2014
अनुजा चौहान के उपन्यास 'जोया फेक्टर' पर फिल्म बनाने की तैयारी धीमी गति से हो रही है परंतु आरती शेट्टी अपने 'इमेजिका थीम पार्क' के काम से अब लगभग मुक्त हो चुकी हैं, अत: कार्य की गति बढ़ सकती है। इस अत्यंत रोचक उपन्यास की युवा नायिका को कुछ घटनाओं के कारण भारतीय क्रिकेट के लिए भाग्यशाली माना जाने लगा क्योंकि उसकी मौजूदगी में खेले गए मैच में विजय प्राप्त हुई। यह धारणा इतनी मजबूत हो जाती है कि क्रिकेट बोर्ड उसे विश्वकप के समय टीम के साथ रहने का अनुबंध करता है और फाइनल के पहले कप्तान उससे आग्रह करता है कि वह जाए क्योंकि विजय का श्रेय सारे खिलाड़ियों के परिश्रम आैर प्रतिभा के बदले उसकी 'भाग्यशाली मौजूदगी' को दिया जा रहा है। इसमें मनोरंजक घटनाओं के साथ एक संवेदनशील प्रेम कथा भी है। आज इसका जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि इंग्लैंड में खेले गए दो टेस्ट मैचों में हमारे श्रेष्ठतम बल्लेबाज विराट कोहली असफल रहे हैं और इस असफलता का ठीकरा उनकी अंतरंग मित्र फिल्म सितारा अनुष्का शर्मा के सिर पर फोड़ा जा रहा है, जिसके इस दौरे में अपने साथ रहने की आज्ञा कोहली ने बोर्ड से ले ली थी। ज्ञातव्य है कि अनेक टीमों में खिलाड़ी के साथ पत्नी या प्रेमिका के जाने को सामान्य माना जाता है।
जिस तर्कहीनता से अनुष्का शर्मा को कोहली के लिए 'अपशकुनी' माना जा रहा है, उसी तर्ज पर उसकी मौजूदगी को लॉर्ड्स में मिली जीत का श्रेय क्यों नहीं दिया जा रहा है। इस दौरे में एकमात्र कोहली असफल नहीं है, कप्तान धोनी ने बतौर बल्लेबाज कोई तीर नहीं मारा और धवन भी असफल रहे हैं। क्रिकेट में हर महान बल्लेबाज कुछ समय तक अपनी लय खो देता है, अनेक लेखक, संगीतकार और सृजनकर्ता के जीवन में एक 'बांझ' दौर आता है क्योंकि सृजन कोई जूते की फैक्टरी नहीं है कि बटन दबाते ही जूते बनते रहे हैं और फैक्टरी भी रात के समय बंद रहती है। भाग्यशाली अर्थात लकी मेस्कॉट एक भरम है और हमारे मन में अंधविश्वासों के प्रति सहज ललक है तथा अवसर मिलते ही हमारे अनुपजाऊ बांझ दिमाग जाने कैसे सक्रिय हो जाते हैं और बातें जंगल में लगी आग की तरह फैल जाती हैं। थेम्स नदी के किनारे जन्मे अनुष्का संबंधित वाहियात तर्कहीन बात पर बोर्ड के अधिकारी भी बोलने लगे हैं। इन आला अफसरों को जिन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, उन बातों पर अवश्य बोलते हैं और काम की बात कभी उनके मन में नहीं आती।
यह सच है कि खेलों में और अन्य क्षेत्रों में भी लोग टोटके करते हैं और कुछ चीजों को 'भाग्यशाली' मानकर उनका सदैव पालन करते हैं परंतु असफलता तब भी हादसे की तरह घटित होती रहती है। जीवन चक्र की सामान्य गति को टोटकों आैर अंधविश्वास से जोड़ना तर्कहीन है। यह भी हुआ है कि पहला शतक मारते समय जो अंडरवियर पहनी थी, उसे फट जाने की दशा तक पहना गया है परंतु असफलता का दौर आकर रहता है। बिल्ली के रास्ता काटने पर विद्वानों को भी राह चलते ठिठकते देखा गया है। ज्ञान साधने के मार्ग पर चलते हुए लोग भी अंधविश्वास का शिकार होते हैं। इतना ही नहीं क्रिश्चियन संसार में भी इतिहास गवाह है कि चुड़ैल मानकर निरपराध औरतों को जलाया गया है। यह लंदन, यूरोप और अमेरिका तक में हुआ है।
दरअसल अगर हम धर्म को एक तीन माले का उजला हवादार रोशन मकान मानें तो इस भवन में तलघर भी है जिसमें अंधविश्वास के जाले हैं, कुरीतियों के उलटे लटके चमगादड़ हैं, अज्ञान का अंधेरा है और रात के समय इस तलघर के सारे जिन, शैतान, अंधविश्वास इत्यादि उजले भवन में विचरने चले जाते हैं और कुछ लोग इन अंधकार की ताकतों को ही धर्म मान लेते हैं। सिनेमा, टेलीविजन आैर मीडिया भी अंधविश्वासों को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभाते हैं। कई वर्षों से एक बनियान को 'भाग्यशाली' बताया जा रहा है और टैग लाइन है कि "अपना लक पहनकर चलो"। मजे की बात यह है कि इस विज्ञापन फिल्म में काम करने वाले सनी देवल और जानी लीवर ने लंबी सफल सार्थक पारी खेली है परंतु विगत कुछ समय से असफल हो रहे हैं। क्या उन्होंने अपने जीवन में लकी बनियान पहनना बंद कर दिया है। कोहली- अनुष्का शर्मा प्रकरण में यह भयावह चिंता भी छुपी है कि कहीं कोहली शर्मा को पनौती मान लें?