क्या अमिताभ बच्चन आत्म-कथा लिखेंगे? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या अमिताभ बच्चन आत्म-कथा लिखेंगे?
प्रकाशन तिथि :08 सितम्बर 2016


अमिताभ बच्चन का अपनी नातिन और पोती को पत्र लिखना लगभग सारे मीडिया में प्रमुख राष्ट्रीय घटना के रूप में वर्णित हुआ है। यह मीडिया पर गहरी टिप्पणी है। ज्ञातव्य है कि नेहरू-गांधी परिवार से बच्चन परिवार के रिश्ते दशकों पूर्व इलाहाबाद में प्रारंभ हुए थे। हरिवंश राय बच्चन अंग्रेजी के कवि येट्स पर शोध करने विदेश गए थे और उन्हें सरकारी सहायता प्राप्त थी परंतु डाक्टरेट अर्जित करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अपनी राजनीति के कारण उन्हें प्रोफेसर पद पर बहाल नहीं किया जा रहा था। तब नेहरू ने विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी का पद निर्मित किया और हरिवंश राय को यह पद मिला। यह इत्तफाक की बात है कि जब हरिवंशराय बच्चन इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में कविता पाठ कर रहे थे तब उन्हें यह सुखद समाचार मिला और उसी रात वे दिल्ली रवाना हो गए।

कुछ वर्षों बाद उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया और नेहरू के निवास के पड़ोस का बंगला उन्हें आवंटित किया गया। हरिवंशजी की पहली पत्नी श्यामा के असमय निधन के बाद तेजीजी से उनका प्रेम-विवाह हुआ था। परिवारों के संबंध इतने करीबी थे कि तेजी बच्चन ने सोनिया को साड़ी बांधना सिखाया और भारतीयता से परिचित कराया। इसी तरह अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के विवाह में राजीव गांधी ने शिरकत की थी। 'कुली' फिल्म की शूटिंग में दुर्घटना के बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनसे मिलने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल आई थीं। इसके पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने पारिवारिक मित्रता का इस तरह निर्वाह नहीं किया था।

इस गहरे ढंग से जुड़े दो परिवारों के बीच दरार कैसे आई यह बताना कठिन है परंतु संसद के गलियारों में उन दिनों कानाफूसी होती थी कि अमिताभ बच्चन ने एक उद्योगपति को सरकारी लाइसेंस प्राप्त करने में मदद की परंतु इस तरह के काम से प्राप्त धन का अंश कांग्रेस पार्टी के कोषालय में जमा नहीं किया। बचाव में उनका तर्क यह था कि उन्होंने उस औद्योगिक घराने से केवल मित्रता निभाई है और कोई धन नहीं लिया परंतु सत्ता के गलियारों में 'मित्रता' को हास्यास्पद और अविश्वसनीय माना जाता है। उन्हीं दिनों बोफोर्स में कमीशन का आरोप भी लगा था परंतु यूरोप की एक अदालत से अमिताभ बच्चन ने निर्दोष होने का प्रमाण-पत्र प्राप्त किया। बोफोर्स सौदे में भले ही कमीशन किसी अन्य भारतीय ने लिया हो परंतु करगिल युद्ध की विजय में बोफोर्स गन मारक सिद्ध हुई थीं। बोफोर्स कांड में 64 करोड़ की रिश्वत की अफवाह थी परंतु बाद के घपलों में राशि के मुकाबले 64 करोड़ आटे में नमक की तरह है। इतनी रकम तो आजकल भ्रष्ट लोग भी महंगाई का हवाला देकर अधिक मांगते हैं। आजकल डामर की सड़क बनाने और बाद में उसकी मरम्मत के नाम पर इससे अधिक धन लिया जाता है। विगत 50 वर्षों में सड़क निर्माण के नाम पर अरबों रुपए नष्ट हुए हैं। ज्ञातव्य है कि मुंबई में सायन से चेम्बूर नाके तक अंग्रेजों ने सीमेंट की एक सड़क बनाई थी, जिसे आज तक मरम्मत की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।

बहरहाल, अमिताभ बच्चन के अपने ही घर में रहने वाली नातिन को खत लिखने से ऐसा आभास होता है कि लाख दरारों के बाद अमिताभ बच्चन के अवचेतन में नेहरू गहरे रूप से बैठे हैं। ज्ञातव्य है कि पंडित नेहरू के अपनी पुत्री के नाम लिखे पत्र दशकों पूर्व किताब के रूप में प्रकाशित हुए हैं और उन खतों में संस्कृतियों के प्रारंभ और पतन को सही कारणों सहित दर्शाया गया है। कुछ समय पूर्व ही नेहरू द्वारा तमाम मुख्यमंत्रियों के लिखे पत्रों का संकलन भी प्रकाशित हुआ है। पंडित नेहरू हर माह की पहली व पंद्रहवीं तारीख पर सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखते थे, जिसमें समग्र विकास की बातें होती थीं। एक खत में उन्होंने यह आशंका भी व्यक्त की थी कि धर्म प्रधान भारत में धर्म के नाम पर गंदी राजनीति होगी और सत्ता प्राप्ति में यह साधन काम आएगा।

एक नवंबर 1951 में लिखे पत्र में पंडित नेहरू ने यह चिंता प्रकट की थी कि भारत में सभी वर्गों व समुदाय के विकास कार्य को धर्मांधता की ताकतें हाशिये में डाल देंगी। एक चिंतक को समय अपने वर्तमान, अतीत और भविष्य की सभी सतहों पर एक ही समय दिख जाता है। कवि के पास भी ऐसी ही दृष्टि होती है। अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्म-कथा चार खंडों में लिखी है, जिसमें पहला खंड, 'क्या भुलूं, क्यायाद रखूं,' में उन्होंने बला की साफगोई दिखाई है और उसमें वर्णित कर्कल का उनसे रिश्ता बहुत गहराई के साथ प्रस्तुत हुआ है। अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ की पुत्री भी लिखती है। अमिताभ अपने पिता की तरह साहस और साफगोई से अपनी आत्म-कथा नहीं लिखेंगे परंतु उनके पुत्र अभिषेक यह काम कर सकते हैं। वे भी साफगोई के कायल हैं परंतु उनके पास लेखक का अनुशासन नहीं है। वे प्रतिदिन सानंद गुजारना चाहते हैं और लेखन के लिए दर्द से रिश्ता बनाना पड़ता है।

दरअसल, प्राय: आत्म-कथाएं अपनी लोकप्रिय छवियों की होती हैं और असल मनुष्य उसमें उजागर नहीं होता। अपने अवचेतन में छुपी सड़ांध के साथ प्रकट होना कठिन काम है। यह जीवित व्यक्ति की शल्य चिकित्सा की तरह है, वह भी बिना क्लोरोफॉर्म दिए। रवींद्र जैन ने राज कपूर की प्रस्तावित फिल्म 'घूंघट के पट खोल' के लिए लिखा था, 'सच-झूठ का डर, भय कैसा, जाहिर हो, भीतर तू है जैसा।' अमिताभ संभवत: पूरा जाहिर नहीं होना चाहेंगे?