क्या कंगना रनोट मेंटल हैं? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या कंगना रनोट मेंटल हैं?
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2019


समाज में सामान्य व्यवहार सुपरिभाषित है। मनुष्य का शरीर भी सामान्य हरकत करता है। हाथों के सहारे चलने का प्रयास करने वाले को अजूबे की तरह देखा जाता है। जब कोई व्यक्ति सामान्य से हटकर कुछ अलग करता है तो उसे पागल कहा जाता है। इसके साथ यह भी सच है कि जब एक व्यक्ति ने पृथ्वी के गोल होने की बात कही तब उसे पागल करार दिया गया। कई बार असाधारण प्रतिभा के धनी लोगों को असामान्य मान लिया गया है और उनके द्वारा कही गई बातों के सत्य प्रमाणित होने के बाद उनकी मूर्ति बनाई जाती है और उनके जन्मदिन पर मेले-तमाशे आयोजित किए जाते हैं।

एकता कपूर की फिल्म निर्माण संस्था ने कंगना रनोट अभिनीत फिल्म 'मेंटल क्या है?' का निर्माण किया है। एकता कपूर की फिल्म निर्माण संस्था सुनियोजित ढंग से काम करती है। यह सुखद आश्चर्य की बात है कि इस फिल्म की शूटिंग पूरी हो गई और एकता तथा कंगना रनोट के बीच कोई टकराव नहीं हुआ। केवल क्लाइमैक्स को लेकर कंगना रनोट ने कुछ आपत्ति दर्ज कराई थी परंतु दोनों ने मिल-बैठकर चंद क्षणों में ही विवाद सुलझा लिया।

दृढ़ निश्चय करके लीक से हटकर चले वालों को प्राय: असामान्य माना जाता है परंतु कभी-कभी ऐसे ही लोग नया रास्ता खोजने में सफल हो जाते हैं। सड़क को छोड़कर जंगल से जाने वाले नए रास्ते बना लेते हैं। ऐसा हमेशा नहीं होता। जंगल में शेर खा जाता है, सांप डंस लेते हैं। एकतरफा प्रेम करने वाले, अस्वीकार किए जाने के बाद हिंसक हो जाते हैं। यश चोपड़ा ने अमेरिकन फिल्म 'कैप फीयर' से प्रेरित शाहरुख खान एवं सनी देओल अभिनीत फिल्म 'डर' बनाई थी।

सलमान खान अभिनीत फिल्म 'तेरे नाम' में एक ऐसा ही पात्र पागलखाने भेज दिया जाता है। इलाज के बाद उसे सामान्य मानकर सभ्य समाज में वापस भेजा जाता है परंतु वह 'प्यासा' के नायक की तरह महसूस करता है कि 'अगर यह दुनिया मिल भी जाए तो क्या है?' और पागलपन का अभिनय करते हुए पुन: पागलखाने लौट आता है। कुछ इसी तरह रमेश तलवार द्वारा बनाई गई फिल्म 'बसेरा' में भी होता है। इस फिल्म में राखी को केमिकल लोचा हो जाता है और उसे पागलखाने भेजा जाता है। इस समय उसकी छोटी बहन रेखा द्वारा अभिनीत पात्र, अपनी बड़ी बहन की गृहस्थी संभालने आती है। वह बच्चों की देखभाल करते हुए नायक शशि कपूर से प्रेम करने लगती है। परिवार सुव्यवस्थित हो जाता है। कुछ साल पश्चात राखी पूरी तरह सामान्य होकर लौटती है परंतु वह भी पागलखाने का अभिनय करके लौट जाती है, क्योंकि अपने सुव्यस्थित घर में अब उसके लिए जगह नहीं है। व्यवस्थाओं में मिसफिट होने वाले एक व्यक्ति की फिल्म का नाम ही 'मिसफिट' था।

'क्वीन' कंगना रनोट हमेशा ही विद्रोही रही हैं। अपने संघर्ष के समय वे फुटपाथ पर सोई हैं। महेश भट्‌ट ने उन्हें 'गैंगस्टर' नामक फिल्म में पहला अवसर दिया था। 'तनु वेड्स मनु' ने उसे सितारा हैसियत दिलाई। वह पात्र भी एक सामान्य युवती का नहीं था। वह शराबखोरी भी करती है। इसी फिल्म में राजशेखर ने कमाल के गीत लिखे हैं। एक गीत के बोल इस तरह थे, 'रंगरेज तूने अफीम क्या है खा ली, जो मुझसे तू ये पूछे के कौन सा रंग, रंगो का कारोबार है तेरा'

परिभाषित सामान्य से हटकर काम करने वालों पर एक किताब भी इरविंग वैलेस ने लिखी है। इस तरह के लोगों के विषय में वे लिखते हैं, 'एक चपटी चौकोर वस्तु को गोल छेद में नहीं डाला जा सकता।' हमारी सामान्य धारणा के चिथड़े उड़ाती है सुरेखा सीकरी अभिनीत पात्र, जो अपनी अधेड़ बहू का एक बार और गर्भधारण करने का बचाव करती है। इस फिल्म नाम था 'बधाई हो'। एक अमेरिकन फिल्म में नायक कहता है कि वह 'ब्रिज' नामक ताश का खेल नहीं खेलता, क्योंकि उनमें कन्वेंशन होते हैं। उसके कुछ कायदे हैं। इसी तरह कई लोग तथाकथित 'सामान्यता' के खिलाफ बगावत करते हैं। प्राय: लोकप्रिय प्रवाह के खिलाफ तैरने का प्रयास करने वाले डूब भी जाते हैं परंतु डूबते समय पानी की सतह के ऊपर उठी उनकी उंगलियां जल पर इतिहास लिख देती हैं। ऐसे डूब जाने को तर जाना कहना चाहिए।

हमारे समाज ने 'सामान' का एक हव्वा खड़ा कर दिया है ताकि विरोध करने वालों को खामोश किया जा सके। दुनिया को पागलखाने में तब्दील किया जा रहा है परंतु ये वैचारिक रेजीमेंटेशन करने वाले लोग अपने ही बिछाए जाल में फंस भी सकते हैं। पुरुष शासित सिनेमा उद्योग में कंगना रनोट अपनी शर्तों पर काम करती है