क्या क्रिकेट में 'टॉस' रद्द होगा? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या क्रिकेट में 'टॉस' रद्द होगा?
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2018


इस समय आई.पी.एल. क्रिकेट तमाशे का यह सत्र अपने चरम पर पहुंच गया है। इस समय यह मुद्दा उठाया गया है कि क्या किसी भी फॉर्मेट में टॉस को रद्द किया जाए गोयाकि कप्तान हवा में सिक्का नहीं उछालेगा और सिक्का किस करवट गिरे यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाएगा। रमेश सिप्पी की फिल्म 'शोले' की अंतिम रील में वीरू को ज्ञात होता है कि जय ने जिस सिक्के का इस्तेमाल किया, उसमें दोनों तरफ एक ही छवि अंकित है। इस तरह वीरू को जय के त्याग का ज्ञान प्राप्त होता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि फिल्मकार इस बात से डरा है कि जय का विवाह ठाकुर की विधवा बहू से करता दिखने पर परम्परा के प्रति समर्पित दर्शक खफा हो जाएंगे? उन्हें क्या पता कि उनके जन्म के पूर्व ही विधवा विवाह पर साहसी फिल्म बन चुकी थी। सिक्के से जुड़ी कहावत है कि 'चित भी अपनी और पट भी अपनी' और राजनीति में यह कहावत चरितार्थ होते देखी जा सकती है।

कुछ लोग जीवन के हर मोड़ पर सिक्का उछालते हैं और किसी बदनसीब का सिक्का गिरने पर भी खड़ा ही रहता है। निर्णय नहीं कर पाने वाले हैमलेट और देवदास के सिक्के जमीन पर खड़े रहते हैं। कुरुक्षेत्र में अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण नहीं होते तो वह भी दुविधा का शिकार हो जाता। क्रिकेट को भाग्य का खेल कहा जाता है। सिक्के का ऊंट किस करवट बैठेगा यह बताना कठिन होता है।

घरेलू टीम पिच ऐसे बनाती है कि उनकी टीम को लाभ मिले। सभी देश 'पिच डॉक्टिंग' करते हैं। चुनावी मैदान में भी जाति व धर्म इत्यादि की जंगली घास उगती है। पूजा में लॉन की घास नहीं वरन् दूर्वा का उपयोग किया जाता है। जिन घरों की देखभाल नहीं की जाती, उनकी दीवारों की दरारों में हरी घास उग जाती है जिसे ग़ालिब साहब ने इस तरह बयान किया है - 'उग रहा है दर-ओ-दीवार पर सब्जा, हम बयांबा में हैं और घर में बहार आई है'।

एक और महान कवि का कहना है धरती पर उगी हरी घास रुमाल की तरह है, जिसके एक कोने पर ईश्वर के हस्ताक्षर हैं जिसे हम देख नहीं पाते। कहावत तो यह भी है कि ग्रीष्म ऋतु में गधे इस भरम में मोटे हो जाते हैं कि उन्होंने ही सारी घास खाई है और मैदान साफ कर दिया है।

बहरहाल भाग्य को इस तरह भी परिभाषित किया गया है कि जीवन में सही समय पर अच्छे लोगों से मुलाकात होने जाने से ही संकट समाप्त हो जाते हैं और बुरे लोगों का मिलना सारे समाज का बुरा वक्त होता है। एक विज्ञापन फिल्म की टैग लाइन है कि इस जगह पूंजी निवेश करें तो भविष्य में बढ़ने वाली महंगाई का सामना आप कर सकेंगे गोयाकि महंगाई पर अंकुश लगाने के वादे महज लफ्फाजी थे।

सिक्कों को तांबे या पीतल के बरतन में रखकर, उसमें अपने परिवार का इतिहास लिखकर धरती में गाड़ दिया जाता है। कुछ वर्षों बाद उसी स्थान पर खुदाई करें तो वह खजाना नहीं मिलता। धरती के भीतर वैसी ही लहरें चलती हैं जैसे समुद्र की सतह पर हम देखते हैं। यह तांबे का बरतन भी एक किस्म का टॉस ही है, जाने कब कैसे मिले।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक कहानी में एक कंजूस ने अपनी दौलत एक तलघर में रखी है और उसे किसी ने कहा कि किसी अबोध को तलघर में मरने के लिए छोड़ दो तो वह सांप बनकर खजाने की रक्षा करता है। एक दिन नदी के किनारे किसी का इंतजार करते अबोध को लाकर वह तलघर में बंद करता है। उसकी कंजूसी से तंग आकर उसका इकलौता बेटा घर छोड़कर चला गया था। वह वापस आकर अपने पिता को कहता है कि उसका पोता यहां आया है।

वह नदी तट पर उसका इंतजार कर रहा था। उसने ही उसे अपने पुत्र को पहले भेजा था। वह अपने पिता को सुखद आश्चर्य देना चाहता है। पिता चीखकर गिर पड़ता है। उसने जिस अबोध को तलघर में मरने के लिए छोड़ा था, वह उसका अपना वारिस था। जीवन के खेल में टॉस की निर्णायक भूमिका को तर्क स्वीकार नहीं करता परन्तु प्रकाश पुंज में खड़ा व्यक्ति यह नहीं जानता कि अंधकार का क्षेत्र कितना विराट है।