क्या गांधी जी का पुनरागमन संभव है? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या गांधी जी का पुनरागमन संभव है?
प्रकाशन तिथि : 04 अक्टूबर 2018


अमेरिका की सरकार विचार कर रही है कि महात्मा गांधी को मरणोपरांत सम्मान से नवाजा जाना चाहिए। मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में 2 अक्टूबर को छात्रों ने महात्मा गांधी की तस्वीरें बनाईं। एक तरफ पूरी दुनिया में महात्मा गांधी के योगदान को सराहा जा रहा है तो दूसरी तरफ भारत में गांधीजी की तस्वीर मुद्रा पर अंकित है, जिसका अवमूल्यन होता जा रहा है। अगर पेट्रोल के दाम 100 का आंकड़ा पार कर जाएंगे तो अलग समस्या पैदा होगी। मनुष्य मस्तिष्क स्वयं को बार-बार बदल नहीं पाता अर्थात मस्तिष्क और रुपए रखने के पर्स में संवाद का कष्ट हो सकता है।

गांधीजी के पहले भारत की स्वतंत्रता के लिए कई बार संघर्ष हुए। 1857 की क्रांति के मात्र एक वर्ष पूर्व ही एक छोटा प्रयास भी किया गया था। शहीद भगत सिंह और उनके साथियों के प्रयास हम कभी भूल नहीं सकतेे। आज़ाद की इलाहाबाद पार्क में पुलिस द्वारा की गई हत्या का कारण भी भीतरघात था। किसी विश्वस्त माने जाने वाले साथी ने पुलिस को सूचना दी थी। जयचंद की तरह भीतरघात करने वाले लोग भारत में हर कालखंड में हमें हानि पहुंचाते रहे हैं। वे राष्ट्र की कुंडली में शनि की तरह पंचम घर के स्थायी बिन बुलाए मेहमान जैसे विराजमान हैं।

बहरहाल, गांधीजी के असहयोग आंदोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की मजबूरी को इसलिए स्वीकार किया कि उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था गढ़ी थी, जिसमें भारत के लोगों की सहायता से ही वे भारत पर राज करते थे। उन्होंने भारतीय लोगों की मदद से ही भारत पर राज किया था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन ने इस मशीन को जोड़ दिया। अंग्रेजों ने देखा कि उनके द्वारा बनाई गई मशीन के पुर्जे ही मशीन का विरोध कर रहे हैं।

गांधीजी ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। फिल्म उद्योग कैसे अछूता रहता। गांधीजी के आदर्श से अनेक फिल्में प्रेरित रहीं। शांताराम की फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' भी एक ऐसी ही फिल्म थी। इसी शृंखला की पहली फिल्म द्वारकादास संपत की 'महात्मा विदुर' थी। महाभारत के पात्र विदुर से प्रेरित फिल्म में विदुर के पात्र को अभिनीत करने वाले कलाकार को गांधीजी की तरह वस्त्र दिए और उसने एेनक भी लगाई। दर्शक समझ गए कि धार्मिक आख्यान के बहाने गांधीजी को प्रस्तुत किया गया है। अंग्रेजों द्वारा संचालित डिविजन ने गांधीजी के हर आंदोलन पर ढेरों वृतचित्र बनाए थे। अगर अन्य सूत्र और सामग्री नष्ट भी हो जाए तो इन वृतचित्रों की सहायता से स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखा जा सकता है। मुंबई के पेडर रोड पर वृतचित्रों का कार्यालय है। संस्थाओं के व्यवस्थित ढंग से तोड़े जाने के कालखंड में उस संस्था का क्या हाल है यह बताना कठिन है।

ज्ञातव्य है कि दक्षिण अफ्रीका जिस शहर के रेलवे प्लेटफार्म पर गांधीजी फेंक दिए गए थे, उस शहर में भी कुछ वर्ष उनकी मूर्ति की स्थापना की गई थी। यह कितने आश्चर्य की बात है कि गांधीजी की बायोपिक भी एक अंग्रेज ने ही बनाई है। फिल्मकार रिचर्ड एटनबरो को फिल्म बनाने के बाद ही हुकूमतें बरतानिया ने 'सर' का सन्मान दिया। जरा सोचिए जिस हुकूमत को भारत से गांधीजी ने ही भगाया, उसी हुकूमत ने उन पर फिल्म बनाने वाले फिल्मकार को सम्मानित किया। आदर्श हुकूमतें इस तरह ही संचालित की जाती हैंै। वैचारिक संकीर्णता एक मशीन खड़ी कर सकती है परंतु उसे सुचारू रूप से संचालित नहीं कर सकती। हमें अवतार अवधारणा पर विश्वास है। हमें पुनर्जन्म पर भी विश्वास है जिसका कारण यह है कि हम इतने भोगवादी हैं कि धरती पर बार-बार आकर स्वादिष्ट भोजन करना चाहते हैं और सभी प्रकार के भोग विलास में आकंठ आलिप्त होना चाहते हैं। अनुपम खेर और उर्मिला मातोंडकर अभिनीत फिल्म 'मैंने गांधी को नहीं मारा' में एक परम गांधी भक्त व्यक्ति बच्चों द्वारा खेले गए डार्ट मारने के खेल में उसके द्वारा फेंके गए डार्ट को गांधी जी की तस्वीर पर लगाते हुए देखता है और ठीक उसी समय गांधीजी की हत्या का समाचार आता है तो उसके मस्तिष्क में एक केमिकल लोचा यह आ जाता है कि वह सारे समय चीखता रहता है कि उसने गांधी को नहीं मारा। उसकी बेटी विवाह नहीं करते हुए अपने पिता की तीमारदारी में अपने जीवन को होम कर देती है गोयाकि वह मुगल राजकुमारी जहांआरा की तरह अपने पिता शाहजहां की तीमारदारी में पूरा जीवन लगा देती है। औरंगजेब को यह ज्ञात था कि तख्त के लिए लड़ी गई भीतरी जंग में जहांआरा ने दारा शिकोह का साथ दिया था परंतु उसने अपनी इस बहन को कभी कोई कष्ट नहीं दिया।

हम कल्पना करें कि गांधीजी फिर भारत में जन्म लेते हैं तो क्या इस पुनरागमन में वे बिखरते हुए भारत को पुन: संगठित कर पाएंगे? क्या अपनी ही सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन सफल हो पाएगा? मॉब लिंचिंग की महामारी के इस दौर में अहिंसा का मंत्र का जाप भी बेअसर हो सकता है? गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया परंतु अपने पुनरामगन में वे पाएंगे कि पहले से अधिक निर्मम हैं हुक्मरान। अब अहिंसा, असहयोग व भूख हड़ताल प्रभावहीन अस्त्र बना दिए गए हैं। भोथरे हथियारों से क्या यह जंग जीती जा सकती है। हर युद्ध में नए हथियारों का अविष्कार होता है। शांति को भी अपने लिए नए कवच बनाना होते हैं।