क्या दुष्कर्म दंड विधान आखिरी रास्ता है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 दिसम्बर 2019
अमिताभ बच्चन अभिनीत के. भाग्यराज की फिल्म 'आखिरी रास्ता' में राजनीतिक दल के निष्ठावान कार्यकर्ता की सुंदर पत्नी के साथ चार लोग दुष्कर्म करते हैं। उसके पति को अपनी पत्नी की हत्या के झूठे मामले में फंसाकर उसे लंबे अरसे के लिए जेल भेज दिया जाता है। सजा काटने के बाद वह उन चारों का कत्ल कर देता है। निर्माता पूरनचंद राव ने फिल्म निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दुष्कर्म पर अनगिनत फिल्में बनी हैं। कार्लो पोन्टी की सोफिया लारा अभिनीत फिल्म 'टू वीमैन' में युद्ध के समय एक मां अपनी पुत्री के साथ चर्च में शरण लेती है। उस पवित्र स्थान पर मां बेटी दोनों के साथ सैनिक सामूहिक दुष्कर्म करते हैं। प्रार्थना और पश्चाताप करने के लिए पवित्र संस्थानों में अधीक्षकों ने दुष्कर्म किया है।
दुष्कर्म के न्यूनतम प्रकरणों की पुलिस में रिपोर्ट की जाती है, इसलिए इस जघन्य अपराध के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में केवल ऊंची जात वालों की कन्या सुरक्षित है। यह क्या कम आश्चर्य की बात है कि देवदासी प्रथा के नाम पर दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध को एक धार्मिक मुहर लगाई जाती है। स्वर्ग के अधीक्षक इंद्र की जीवन कथा पर ध्यान दें। हमारी माइथोलॉजी उनकी 'वीरता' के कारनामों से भरी पड़ी है। एक ही कार्य उन्होंने भेष बदलकर अनेक बार किया है। हरित क्रांति के बाद मोटरसाइकिल सवार, मशीन के हॉर्स पॉवर को अपनी जांघों में चलता हुआ महसूस करता है। इतना ही नहीं 'होम फॉर डेस्टीट्यूट विमन' में अधीक्षक इसे व्यवसाय की तरह चलाते हैं।
राजकुमार संतोषी की महान फिल्म 'दामिनी' में एक साधन संपन्न परिवार का युवा अपने साथियों सहित होली के उत्सव पर घर की सेविका के साथ दुष्कर्म करता है। बाद में अस्पताल में इलाज करा रही पीड़िता की हत्या को आत्महत्या की तरह प्रस्तुत किया जाता है। एक क्षेत्र में कुंआरी कन्या पांच सितारा होटल में मेहमान की 'सेवा' करके अपने दहेज की रकम जुटाती है। एक क्षेत्र में परिवार की ज्येष्ठ कन्या को इस कार्य की 'इजाजत' दी जाती है और वही परिवार का पोषण भी करती है। एक उपन्यास '79 पार्क एवेन्यू' से प्रेरित रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म में भी नारी शरीर एक प्रोडक्ट है, जिसे बाजार में रखे जाने को न्यायपूर्ण करार देने का प्रयास किया गया है।
महान फिल्मकार स्टेनले क्यूबरिक की फिल्म 'ए क्लॉकवर्क ऑरेंज' सन 1971 में प्रदर्शित हुई थी। फिल्म में एक अमीरजादा आदतन दुष्कर्म करता है। एक मनोवैज्ञानिक अदालत से प्रार्थना करता है कि मात्र 1 वर्ष के लिए उसे इस बीमार का इलाज करने दिया जाए, वह उसे निरोगी कर देगा। वह अपने इलाज को एक गरिमामय नाम देता है 'लुडोविको ट्रीटमेंट' दंड विधान में सुधार की गुंजाइश है, इसलिए उस युवा आदतन दुष्कर्मी को इस इलाज के लिए भेजे जाने की आज्ञा जज महोदय देते हैं।
मनोवैज्ञानिक उस युवा के हाथ-पांव बांधकर कुर्सी पर बैठाता है। युवा के सामने सिनेमा का स्क्रीन है, जिस पर दुष्कर्म और हिंसा के दृश्य निरंतर दिखाए जाते हैं। उसकी पलकों पर क्लिप लगा दिए गए हैं। यह कार्य कुछ ऐसा है कि मीठा खाने की लत से व्यक्ति को मुक्त कराने के लिए उसे पूरे समय मिठाई खिलाई जाए, ताकि उसे मिठाई खाने से नफरत हो जाए। बहरहाल, स्टैनले \क्यूबरिक की फिल्म में युवा को 'लुडोविकाे ट्रीटमेंट' दिया जाता है। एक वर्ष पश्चात उसे अदालत में पेश करते हैं। किसी भी महिला को देखते ही वह कांपने लगता है। कहीं कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को एक थप्पड़ मारता है तो मामूली सी हिंसा देखकर वह बेहोश हो जाता है। इस तरह उसे निरोग घोषित किया जाता है।
यह 'स्टेनले क्यूबरिक' का जीनियस है कि फिल्म के अंत में 'निरोग' घोषित युवा आत्महत्या कर लेता है। इस तरह क्यूबरिक एक अलग किस्म की बात रेखांकित करते हैं कि हिंसा और सेक्स के अभाव में जीने का कोई तात्पर्य नहीं रह जाता। किसी अंतिम दृश्य के कारण इस विवादित फिल्म की व्याख्या हेतु दर्जनों किताबें लिखी गई हैं। यह पाया गया है कि प्राय: दुष्कर्म के पूर्व महिला को बहुत पीटा जाता है। उसके नीम बेहोशी में जाने के बाद ही उसके साथ दुष्कर्म संभव हो पाता है। उसके होश में रहने पर दुष्कर्म संभव नहीं है। गौरतलब है कि 'सिमॉन द व्यू' अपने एक लेख में लिखती हैं कि जब कोई महिला बुर्जुआ प्रसाधन के सारे सामान फेंककर अपने शरीर के स्वभाविक रूप में सामने आती है तो लोलुप लोग भय से कांपने लगते हैं। महिला की देह का स्वाभाविक सौंदर्य उन्हें भयभीत कर देता है। हमारा दोगलापन कभी यौन शिक्षा व शास्त्रीय संगीत को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करने देगा। क्या खजुराहो और कोणार्क यौन शिक्षा भी देते थे? नारी देह एक दिव्य वाद्य यंत्र है, परंतु माधुर्य व सौंदर्य दोनों से ही हम भयभीत रहते हैं, इसलिए विधिवत शिक्षण से घबराते हैं।