क्या पत्रकार पर भी बन सकती है बायोपिक? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या पत्रकार पर भी बन सकती है बायोपिक?
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2019

पत्रकारों पर दसों दिशाओं से दबाव बनाए जाने और कभी-कभी दाभोलकर तथा गौरी लंकेश जैसे लोगों की हत्या हो जाने के दौर में रवीश कुमार को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया है। यह खबर आश्वस्त करती है कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है और 'वह सुबह कभी तो आएगी और हमीं से आएगी।' यहां 'हम' पूरे समुदाय के लिए प्रयोग किया जा रहा है। भारत में पत्रकार के दायित्व व जोखिम पर शशि कपूर अभिनीत फिल्म 'न्यू देहली टाइम्स' बनी थी तथा बाद में कोंकणा सेन शर्मा अभिनीत 'पेज थ्री' का प्रदर्शन हुआ था।

गणतंत्र के सफल संचालन के लिए अखबार और पत्रकारों की भूमिकाएं अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं। ज्ञातव्य है कि अमेरिका का वाटरगेट स्कैंडल भी पत्रकारों ने ही उजागर किया था। निरंतर विकास करती टेक्नोलॉजी ने खोजी पत्रकारों को ऐसे उपकरण उपलब्ध कराए हैं कि वे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जाने के लिए फोटोग्राफ ले सकते हैं और लोगों के वार्तालाप को रिकॉर्ड भी कर सकते हैं।

उनकी इन सुविधाओं के कारण मनुष्य की निजता खतरे में पड़ गई है। जैकलीन कैनेडी एक निजी समुद्र तट पर तैरने के लिए जाती थीं। बहुत दूर से एक पत्रकार ने गोता लगाकर उनके तैरने के फोटो ले लिए। इयान फ्लेमिंग के जेम्स बॉन्ड उपन्यासों में वर्णित उपकरण अब महानगरों के फुटपाथ पर बेचे जाते हैं। यहां तक कि शयनकक्ष या स्नानघर भी सुरक्षित नहीं रहे। अजय देवगन अभिनीत फिल्म 'दृश्यम' में एक छात्रा के स्नानाघर में लिए फोटो से ही सारी घटनाओं का तानाबाना बुना गया है।

जब भारत अंग्रेजों के अधीन था तब कवियों, पत्रकारों और अखबार के संपादकों ने अपनी एक छद्‌म पहचान बनाई थी और उसी नाम से वे लेख लिखते थे। ए.डी. गोरवाल 'विवेक' के नाम से, टाइम्स के श्यामलाल 'अदीब' के नाम से और दुर्गादास 'इंसाफ' के नाम से लिखते थे। छद्‌मनाम विवेक, अदीब और इंसाफ को एक वाक्य के रूप में देखने पर एक आदर्श सामने आता है। अब्दुल हई ने स्वयं ही अपना काव्य साहिर लुधियानवी के नाम से रचा और बाद के समय में तो वे यह भूल ही गए थे कि उनका जन्मनाम अब्दुल हई हुआ करता था। उर्दू अदब में शायर प्राय: अपने जन्म स्थान को अपना तखल्लुस बना लेते थे जैसे राहत इंदौरी, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी इत्यादि। राजेन्द्र माथुर ने भी 'अनुलेख' के नाम से देश-विदेश की राजनीति पर लेख लिखे। राहुल बारपुते तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कृषि इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करके आए थे परंतु वे एक अखबार के संपादक बने। राहुल बारपुते के पासअच्छी टीम गठित करने की विलक्षण योग्यता थी। राजेन्द्र माथुर स्टार पत्रकार हुए हैं।

आज भारत के अधिकांश अखबार मालिक, संपादक, कवि और चिंतक नागपाश में जकड़े हुए हैं। कोबरा एजेंसी से गुप्त सूचनाएं खरीदकर व्यवस्था ने अभिव्यक्ति पर शिकंजा जमाया हुआ है। यह कैसा खेल चल रहा है कि हमारे एक देवता गले में सर्प धारण किए हिमवत पर विराजे हैं और दूसरे समुद्र के गर्भस्थल में सर्पशैय्या पर विश्राम करते हैं परंतु धरती पर कोबरा पाश मनुष्य की अभिव्यक्ति को जकड़े हुए है। गौरी लंकेश की हत्या के बाद गौरी की बहन कविता लंकेश ने अंग्रेजी भाषा में एक कविता लिखी, जिसकी कुछ पंक्तियों का आशय इस तरह है- गौरी ने अपने बगीचे और घर के पास के जंगल में सर्प देखे हैं, उसने उन्हें कभी मारने या हानि पहुंचाने का काम नहीं किया। उसका सर्प प्रेम उसकी प्रकृति के अगाध प्रेम का एक हिस्सा रहा परंतु एक दिन एक कोबरा दुपहिया वाहन पर बैठकर आया और उसने गौरी की हत्या कर दी परंतु उसे यह ज्ञात नहीं कि गौरी लंकेश जैसे पत्रकार मरते नहीं। यह संभव है कि कोई फिल्मकार रवीश जैसे पत्रकार पर बायोपिक बनाए।