क्या बदतमीजी विरेचन करती है ? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या बदतमीजी विरेचन करती है ?
प्रकाशन तिथि : 09 अक्तूबर 2012


छोटे परदे पर दिखाया जाने वाला कार्यक्रम 'बिग बॉस' दुनिया के पचास देशों में अपने देशज रूपांतरण में विगत दशकों से दिखाया जा रहा है और इसके कॉपीराइट वाली कंपनी है, जो सभी जगह इसे मंचित करती है। अनेक जगह 'बिग बॉस' के घर में तीन महीने तक रहने वाले प्रतियोगी भीषण हिंसा और अभद्रता का प्रदर्शन करते हैं तथा कुछ देशों में उन्हें यौन संबंध बनाने की भी स्वतंत्रता होती है। कई जगह यह मनुष्य में छुपे हिंसक, बर्बर जानवर के उजागर होने का कार्यक्रम है।

भारत में इसे यौन मामलों में स्वतंत्रता नहीं दी गई है, परंतु अभद्र भाषा का प्रयोग और अपमान करने की छूट रही है। यह अलग बात है कि हर बार प्रतियोगिता किसी शालीन व्यक्ति ने ही जीती है। इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत का फॉर्मूला यहां जारी रहा है। सलमान खान ने पहली बार इसके चौथे सीजन को होस्ट किया था और पांचवें सीजन में कभी-कभी अतिथि के तौर पर आए थे, परंतु इस बार वे हर सप्ताहांत मौजूद होंगे। बताया जा रहा है कि सलमान खान के आग्रह पर इस वर्ष प्रतियोगियों को शालीनता की मर्यादा रेखा में रहने का आदेश दिया गया है। आश्चर्यजनक यह है कि विगत वर्षों में अपशब्दों के प्रयोग और आपसी टकराव दिखाने वाले एपिसोड्स में लोकप्रियता बढ़ी है अर्थात इसका कोई एक बड़ा दर्शक वर्ग है, जो अपशब्द, बदतमीजी, चीखना-चिल्लाना और हिंसा पसंद करता है। होली में भी उत्सव की परंपरा के नाम पर बदतमीजी की जाती है और कुछ लोग इसमें मजा भी लेते हैं। मसलन आजकल एक शीतल पेय की रणबीर कपूर प्रस्तुत विज्ञापन शृंखला का मूलमंत्र है कि टी-20 क्रिकेट न तमीज से खेला जाता है और न तमीज से देखा जाता है। यह विज्ञापन अत्यंत लोकप्रिय भी है, अर्थात हमारे सामूहिक अवचेतन में बदतमीजी के लिए कोई जगह अवश्य है।

बहरहाल, इस वर्ष 'बिग बॉस' के विज्ञापन में सलमान खान की तीन छवियां एक ही जगह प्रस्तुत की हैं, जिसकी प्रेरणा उन्हें गांधीजी के तीन बंदरों से मिली - बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो। दिल में ख्याल आता है कि इस तरह के घर में तीन महीने के लिए गांधीजी, मोहम्मद अली जिन्ना, नेहरू और सरदार पटेल इत्यादि होते तो उनके बीच कैसा व्यवहार होता और यह काल्पनिक घटना अगर १९४६ में घटित होती तो क्या विभाजन रोकने की कोई राह 'बिग बॉस' के घर से निकलती? आज वर्तमान में अनेक बार संशय होता है कि क्या हमारा संसद भवन 'बिग बॉस' के घर की तरह नहीं लगता, विधानसभाएं तो लगती हैं और खाप पंचायतें भी वैसा ही आभास देती हैं। दरअसल 'बिग बॉस' की मूल परिकल्पना का आधार तो जिसकी लाठी, उसकी भैंस ही है, परंतु इस बार गांधीजी के बंदरों को आदर्श बनाने की चेष्टा की जा रही है और एक बड़बोले सांसद नवजोत सिद्धू तो प्रवेश भी कर गए हैं।

इस कार्यक्रम की विशेषता यह है कि 'बिग बॉस' के घर में पचास कैमरे निरंतर चलते रहते हैं और नियंत्रण कक्ष में इनके मॉनिटर पर आठ घंटे की शिफ्टों में लोग अवलोकन करते हैं और एक जगह विशेष 'फुटेज' को संपादित किया जाता है। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण होता है, अत: सैटेलाइट अपलिंक का एक विभाग सक्रिय रहता है। इसके शूटिंग यूनिट में २०० लोग काम करते हैं और दिन-रात खुला रहने वाला कैंटीन भी वहां होता है। सारांश यह कि इसका आयोजन एक महंगा काम है और उस बड़ी लागत पर भी मुनाफा होता है, इसीलिए यह वर्षों से जारी है।

सतत कैमरे की निगाह में रहना किसी भी व्यक्ति के लिए इतने लंबे समय तक स्वाभाविक व आसान नहीं होता। केवल बाथरूम में कैमरा नहीं होता, परंतु अन्य देशों में वहां भी होता है। आजकल अनेक नेता और मुहिम चलाने वाले लोग कैमरे के सामने बने रहने के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरते, परंतु अगर इन्हें निरंतर चलते कैमरे का ज्ञान हो तो इनके पैर कांपने लगेंगे। दरअसल गोपनीयता मनुष्य के लिए आवश्यक है, क्योंकि सदैव उजागर होते रहना किसको पसंद आ सकता है?