क्या महेश भट्ट आत्मकथा लिखेंगे ? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 अप्रैल 2013
महेश भट्ट और टी. सीरीज की 'आशिकी' के दोनों संस्करण मधुर संगीत के कारण सफल रहे हैं और दोनों में ही नए कलाकारों को प्रस्तुत किया गया। पहले भाग के राहुल और अनु अग्रवाल टिक नहीं पाए, परंतु ताजा संस्करण की श्रद्धा कपूर की बहुत प्रशंसा हो रही है और शक्ति कपूर की यह बेटी लंबी पारी खेल सकती है। पहले संस्करण ने नदीम-श्रवण और सोनू निगम को स्थापित कर दिया था और इस टीम की आंधी में लक्ष्मी-प्यारे लडख़ड़ा गए थे। दूसरे संस्करण का संगीत रचने वाले नदीम-श्रवण का इतिहास दोहरा पाएंगे, इसकी संभावना है? दोनों संस्करणों के महेश भट्ट और सोनू निगम लंबी पारी खेल रहे हैं और महेश भट्ट ने अपने कॅरियर में विविध फिल्में बनाई हैं। उन्होंने 'अर्थ' और 'सारांश' जैसी सारगर्भित फिल्में रची हैं। दरअसल 'सारांश' भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रारंभिक फिल्मों में से एक है।
महेश भट्ट अपनी युवा अवस्था में स्वयं आक्रोश से भरे व्यक्ति थे, जो तमाम रूढि़वादी परंपराओं को तोडऩा चाहते थे और उनकी पहली फिल्म 'मंजिलें और भी हैं' अत्यंत साहसी फिल्म थी। उन्होंने भगवान रजनीश से यू.जी. कृष्णमूर्ति तक अनेक दार्शनिकों से अंतरंग संबंध बनाए रखे और साथ ही उनके प्रेम-प्रसंग भी प्रकाश में आए हैं। इस तरह के व्यक्ति की जो छवि प्राय: बनाई जाती है, उसके विपरीत महेश भट्ट ने अपने वृहत परिवार की रक्षा की है और अनेक लोगों को अवसर दिए हैं। इमरान हाशमी उनकी बहन का लड़का है, तो 'आशिकी-२' का निर्देशक मोहित सूरी भी उनकी बहन का लड़का है। महेश भट्ट ने अपनी पुत्री पूजा के लिए भी बहुत किया है। उनकी पुत्री आलिया को करण जौहर ने प्रस्तुत किया है। विगत कुछ वर्षों से उन्होंने स्वयं फिल्में निर्देशित करना बंद कर दिया है, परंतु उनकी कंपनी की हर फिल्म पर उनकी पकड़ रही है। लिखने के टेबल से संपादन के टेबल तक उनका नियंत्रण है। उनके भाई मुकेश भट्ट कंपनी का व्यवसाय पक्ष देखते हैं और सृजन पक्ष महेश भट्ट के पास है। इन दोनों की टीम ने एक जमाने में लंबे घाटे में गई कंपनी को आज न केवल मुनाफा कमाने वाली संस्था में बदल दिया है, बल्कि यह उनका ठोस आर्थिक आधार है। दोनों भाइयों के बीच कमाल की आपसी समझदारी भी है। उनकी सफलता के पीछे किफायत का पारंपरिक मूल्य है और किसी तरह की फिजूलखर्ची मुकेश भट्ट को पसंद नहीं है। विगत दो दशकों में उन्होंने मनोरंजन का अपना स्कूल बना लिया है, जिसमें कम बजट की फिल्में नए कलाकारों के साथ बनाई जाती हैं और इस प्रक्रिया में उन्हें सेक्स अथवा पुनर्जन्म इत्यादि विषयों से कोई परहेज नहीं है। सितारे का पर्याय सेक्स है और उन्होंने सनसनीखेज फिल्में भी बनाई हैं। इसके साथ प्रेम कहानियां भी बनाई हैं। संगीत को भी उन्होंने सितारे का पर्याय बना दिया है। समय और धन दोनों की किफायत के साथ गुणवत्ता देना उस उद्योग में आसान काम नहीं है, जहां भव्यता और फिजूलखर्ची को अपनी हैसियत का प्रतीक माना जाता है।
'आशिकी' के पहले संस्करण के संगीत की बिक्री के आंकड़े जाहिर होने के बाद ही फिल्म उद्योग ने इस क्षेत्र की विराट होती संभावना को समझा। उस दौर में संगीत अधिकार के लिए बारह करोड़ तक मिलने लगे थे। महेश भट्ट की फिल्में तो अपनी लागत संगीत अधिकार से ही निकाल लेती हैं। महेश भट्ट के पास नई कहानियां तो हैं, परंतु वे अपने 'माल' को नए स्वरूप में प्रस्तुत करने का काम भी बखूबी करते हैं। मसलन 'आशिकी-2' पहले वे 'सुर' के नाम से बना चुके हैं, जिसमें करीम का मधुर संगीत था और निदा फाजली ने गीत लिखे थे। दरअसल महेश भट्ट की फिल्मों में उनके अपने जीवन की झलक भी रही है और अपने फिल्मकार पिता के जीवन का अपना संस्करण भी उन्होंने प्रस्तुत किया है।
महेश भट्ट ने अपने जीवन के हर दौर में नियमित विविध किताबें पढऩा कभी नहीं छोड़ा और यात्राएं भी बहुत की हैं। आज वे शिखर पर हैं और इस समय अपनी आत्मकथा पर फिल्म बनाने का विचार उन्हें करना चाहिए, क्योंकि किसी दौर में वे हिप्पी की तरह रहे, बेइंतिहा शराबनोशी भी की है और सिगरेट, शराब छोड़े अब उन्हें लंबा समय हो गया है। उनका परिचय सूफी-संतों और महात्माओं से रहा है, वहीं तवायफों और किन्नरों से भी रहा है और इनका प्रस्तुतीकरण उन्होंने करुणा के साथ ही किया है। कभी मानवीय विसंगति और कमियों का मखौल नहीं बनाया। उन्होंने जीवन के विविध रंग देखे हैं और धूसर जिसे अंग्रेजी में 'ग्रे' कहते हैं, के भी विविध रूप देखे हैं।
पूरी तटस्थता से आत्मकथ लिखना कठिन काम है। हर मनुष्य दूसरों के लिए अपनी एक छवि गढ़ता है और उसके निरंतर प्रयोग से स्वयं उसमें यकीन भी करने लगता है। तटस्थ आत्मकथा से काफी लोग नाराज भी हो सकते हैं और स्वयं से झूठ बोलते हुए आदमी थक भी जाता है। इस थकान से परे है आत्मकथा। महेश भट्ट अब जीवन के संपादन टेबल पर बैठकर अपने अनुभवों और हादसों की रीलों को उलट-पलटकर देख सकते हैं। भावनाओं की जुगाली आसान नहीं होती। ज्ञातव्य है कि जानवर अपने खाए हुए भोजन को पुन: चबा सकता है और इसे ही जुगाली कहते हैं। महेश भट्ट के लिए मंजिलें और भी हैं।