क्या मांसाहारी सांप दूध पीते हैं? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :28 जुलाई 2017
स्वतंत्रता मिलने के चंद वर्ष पश्चात ही शशधर मुखर्जी ने वैजयंतीमाला एवं प्रदीप कुमार अभिनीत 'नागिन' फिल्म का प्रदर्शन किया। इस फिल्म ने दो गलत बातों को लोकप्रिय सत्य की तरह स्थापित कर दिया कि सांप दूध पीते हैं और वे बीन पर डोलते हैं। सांप मांसाहारी होते हैं अौर वे बीन बजाने वाले की नकल का प्रयास करते हैं। उनके कान नहीं होते। यह फिल्म माध्यम की ताकत और दर्शक का उस पर विश्वास है, जो इस तरह की गलत बातों को सही बात के रूप में स्थापित कर देता है। फिल्म माध्यम का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे पहले हिटलर ने किया। उसकी अधिकृत फिल्मकार रोजन्थाल ने वृत्तचित्र बनाए और सूर्य की पृष्ठभूमि पर हिटलर को कुछ ऐसा प्रस्तुत किया मानो वह दिव्य व्यक्ति हो और उससे ही प्रकाश का जन्म होता है। हिटलर ने आर्य श्रेष्ठता का भ्रम रचा और एक जुनून जगाया जिसने तर्क को लील लिया। गोएबल्स उसका प्रचार मंत्री था और उसका विश्वास था कि एक झूठ को दस बार बोलो तो वह सच ध्वनित होने लगता है। ज्ञातव्य है कि वृत्त चित्र के इतिहास में रोजन्थाल का बड़ा योगदान माना जाता है, जिसका आधार उसका प्रस्तुतीकरण है न कि उसका विचार। यह भी सच है कि हिटलर के दौर में बर्लिन में आयोजित अोलिंपिक में हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को भारत की ओर से खेलने से रोकने के प्रयास हुए परंतु ध्यानचंद ने सारे प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए। यह भी गौरतलब है कि 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह और ध्यानचंद दोनों को ही विदेश में प्रेम हुआ। दरअसल, विदेशी बालाएं उनके खेल से प्रभावित होकर प्रेम निवेदन कर बैठी थीं। मेहरा की फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में फरहान अख्तर ने विश्वसनीय अभिनय किया। देशप्रेम से जोड़ने के उपक्रम में तथ्यों से हेराफेरी इस फिल्म में भी की गई है। प्राय: बायोपिक्स में इस तरह की त्रुटि बॉक्स ऑफिस पर सफलता की खातिर की जाती है। यह अनजाने में की गईं गलतियां नहीं होतीं।
'नागिन' के संगीतकार हेमंत कुमार थे और गीतांकन में कल्याणजी भाई ने क्लेवायलिन नामक आयात किए वाद्ययंत्र से यह ध्वनि निकाली थी। क्ले वायलिन से विविध ध्वनियों को जन्म दिया जा सकता है। शशधर मुखर्जी की इस 'नागिन' के दशकों बाद हरमेश मल्होत्रा ने 'नगिना' नामक फिल्म बनाई, जिसमें इच्छाधारी सर्प के भ्रम को रचा। इस फिल्म के एक दृश्य में दर्जनभर लोग बीन बजाते दिखाए गए हैं और इस प्रभाव को रचने के लिए संगीतकार प्यारेलाल ने अलग-अलग स्थानों पर क्ले वायलिन रखकर रिकॉर्डिंग की,क्योंकि उतनी संख्या में क्ले वायलिन उपलब्ध नहीं थे। आज टेक्नोलॉजी की सहायता से मात्र दस बाय दस के रूम में ध्वनिअंकन करके सवा सौ वादकों की मौजूदगी वाला प्रभाव रचा जाता है। एआर रहमान तो अपने चेन्नई स्थित रिकॉर्डिंग रूप में दक्षिण अफ्रीका में बनाए ड्रम्स की ध्वनि रिकॉर्ड कर लेते हैं। वे फोन द्वारा ड्रम वादकों को हिदायत दे देते हैं कि क्या बजाना है। अब कला पक्ष से टेक्नोलॉजी को खारिज नहीं किया जा सकता।
एक तथ्य यह है कि सर्पिणी एक कतार में लगभग सौ अंडे देती है। भूख के वशीभूत होकर वह अपने ही अंडे खाने लगती है। हवा के कारण कतार से इधर-उधर लुढ़के दो-चार अंडे बच जाते हैं। अगर प्रकृति यह खेल नहीं रचती तो सांपों की संख्या बहुत अधिक हो जाती। यह बात अलग है कि प्रचार के अंधड़ के कारण कुछ लोगों में सांप से अधिक जहर का निर्माण हो गया है। कोबरा का काटा बच सकता है परंतु इनका काटा व्यक्ति नहीं बच सकता। हमारी मायथोलॉजी में सर्प का महत्व रेखांकित किया गया है। गौरतलब है कि कैलाश पर्वत पर विराजे शिव के गले में सांप है और समुद्र के तल में सर्प शय्या पर विराजे हैं भगवान विष्णु। एक को ऊंचाई पसंद है, दूसरे को गहराई प्रिय है। आश्चर्य होता है कि इस महान संस्कृति के विरासतधारी आज इतने खोखले कैसे हो गए हैं। आज ही वित्त विशेषज्ञ मोन्टेकसिंह अहलूवालिया का बयान प्रकाशित हुआ है कि 1991 में जीएसटी के प्रावधान का विरोध करने वाले दल ने ही उसे लागू किया है। हुक्मरान को महारत हासिल है कि उसके पास मौलिक कुछ नहीं है। वह केवल रीसाइक्लिंग कर रहा है। 'नागिन' के विचार को 'नगिना' के नाम से पुन: रजा गया। टेक्नोलॉजी कचरे से ऊर्जा को जन्म द सकती है। कोई आश्चर्य नहीं कि धर्म आधारित राजनीति करने वालों का प्रिय भजन है, 'तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।'