क्या यह कलियुगी समुद्र-मंथन है? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 अक्तूबर 2012
अराजकता का अनुमोदन-सा करते नजर आ रहे अरविंद केजरीवाल बिजली कनेक्शन जोड़-काट रहे हैं और बिजली बिल नहीं भरने का आग्रह कर रहे हैं। वह बार-बार सरकार को चुनौती दे रहे हैं कि उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजें। चतुर अरविंद जानते हैं कि भारत में महत्वाकांक्षी नेता का जेल जाना धार्मिक व्यक्ति के तीर्थस्थान जाने की तरह पावन माना जाता है और इससे लोकप्रियता बढ़ती है। उन्हें अपने ढंग की राजनीति करने की पूरी स्वतंत्रता है, परंतु गांधीजी के आंदोलनों का हवाला देने के पहले उन्हें आंदोलनों का अध्ययन करना चाहिए। गांधीजी ने १९४२ में आंदोलन करते हुए भी यह निर्देश दिया था कि युद्ध के समय प्रशासन ठप नहीं करना है, क्योंकि उस समय ब्रिटेन तानाशाही ताकतों से युद्ध कर रहा था और हर युद्ध में जीत-हार दोनों पक्षों के शस्त्र साधन तथा नीयत पर निर्भर करती है। मसलन गांधीजी के प्रति ब्रिटिश सरकार चाहकर भी निर्मम नहीं हो सकती थी, क्योंकि गुलाम देशों का शोषण करते हुए भी अंग्रेजों ने अच्छे प्रशासन और न्यायसंगत होने की छवि रची थी और इसी छवि को कायम रखने के लिए वे गांधीजी को सुरक्षित रखने में ही अपना हित देख रहे थे।
भारत की अखंडता को भारतीय प्रशासन ने ही लंबे समय तक अक्षुण्ण रखा है। इस प्रशासन की कुछ परंपराएं रही हैं और आजादी के बाद कई वर्ष तक वे छाई भी रही हैं, परंतु विगत कुछ वर्षों में प्रशासन, पुलिस और सेना में जातिवाद, क्षेत्रवाद और धार्मिक कट्टरता का समावेश हो चुका है। अपनी जाति के अपराधी के प्रति नरम रुख वर्तमान की हकीकत है। जब तक देश में अवतारी नेतृत्व रहा है, तब तक प्रशासन को भी संयत और साफ रहना पड़ा है। आज का प्रशासन ही विरोधी पक्ष को सत्ता पक्ष के खिलाफ सच्ची-झूठी बातें बता रहा है और प्रशासनिक गोपनीयता कब की भंग हो चुकी है।
आज अरविंद केजरीवाल स्वच्छंद हैं, क्योंकि यह दागी प्रशासन उनका सहयोगी और सहायक है। केंद्र में चमत्कारी नेतृत्व के अभाव के कारण अलगाववाद की शक्तियां मजबूत हो रही हैं। बहरहाल, अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए गए मुद्दों की जांच होनी चाहिए और उनसे प्रमाण मांगने के बदले स्वयं तथाकथित आरोपी को अपने प्रमाण देने की परिस्थितियों का निर्माण हो चुका है। आज सत्य क्या है, से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका परसेप्शन हो गया है और काल्पनिक आंकड़े सत्य की तरह व्यापक प्रचार पा रहे हैं। अन्ना हजारे कभी भाजपा पर आक्रमण नहीं कर पाए, परंतु अरविंद की प्रचारी लाठियां चहुंओर चल रही हैं और अब वह लोकप्रियता की लहर पर सवार हैं। प्रशासन तो यह तक नहीं कर पाया कि उनके आयकर विभाग में किए गए कार्य की समीक्षा करे।
गौरतलब यह है कि मीडिया शासित युग में बिना किसी आधार के आरोप लगाया जाता है और उसके खंडन मात्र से समाज में छवि नहीं बदलती। इसलिए इसकी जांच कराना ही अब जरूरी हो गया है। सीता के ऊपर एक धोबी ने लांछन लगाया था, पर राम को जनहित में निरपराध सीता का परित्याग करना पड़ा। रॉबर्ट वाड्रा पर लगे आरोप की जांच कोई निष्पक्ष समिति करे, क्योंकि सोनिया गांधी भी तथाकथित आरोपी की रिश्तेदार हैं। भारत में अभी तक की गई किसी भी जांच आयोग की रिपोर्ट शीघ्र नहीं आई है और आने पर क्रियान्वयन नहीं हुआ है। अत: इस प्रकरण में निष्पक्ष जांच को दो सप्ताह दिए जाएं और अगर कोई ठोस सबूत मिलते हैं तो तुरंत कार्रवाई की जाए। यह प्रकरण सोनिया गांधी के लिए स्वर्ण अवसर में बदल सकता है कि वह अपने दामाद को निर्दोष सिद्ध करें या दंडित करें और ऐसा करते ही वह चमत्कारी नेता बन जाएंगी। होलकर महारानी ने अपने पुत्र को दंडित किया था और वह देवी बन गईं। इसी समय अहिल्या की तरह सत्ता का दंड चहुंओर चलाएं तो देश का भला हो सकता है।
दरअसल इस देश के तंदूर से कोई पकी हुई राजनीतिक सिद्धांत की रोटी बाहर नहीं आती। अति भावुक और धर्मप्राण अवाम तो हमेशा लोकप्रिय लहर का समर्थन करता है। यहां चुनाव नीतियों पर नहीं, वरन लोकप्रिय लहरों पर जीते जाते हैं। भारतीय संसदीय गणतंत्र प्रणाली विश्व में सर्वथा अनूठी है। यह चमत्कारी या अवतारी नेता के दम पर चलती है। जब सोनिया गांधी के खिलाफ विपक्ष के अन्यायपूर्ण इतालवी प्रचार का हव्वा खड़ा किया था तो उन्होंने स्वयं को पद से हटा लिया था और उस कार्य ने विपक्ष के हव्वे को खेत में खड़े बिजूका या काकभगौड़े की तरह भूसे का सिद्ध कर दिया था और उनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी। अपने पुत्र राहुल को आगे लाने के कार्य में उन्होंने ब्रांड सोनिया कमजोर कर लिया और अब अरविंद द्वारा दिए गए मौके से लाभ उठाकर वे पुन: स्वयं की छवि में चमत्कार का तत्व जोड़ें। दूसरी ओर ऑर्डिनेंस द्वारा आरथिक सुधार शीघ्रता से लाएं तो सारा खेल बदल सकता है और इसी संभावित परिवर्तन के भय से कुछ दल समय के पहले चुनाव चाहते हैं।
क्या स्वयंभू क्रांतिकारी अरविंद के पास सस्ते में बिजली उत्पादन की ठोस योजना है या क्या वह उस मीडिया में कोई आचार संहिता लागू करने की मुहिम चलाएंगे, जिसकी लहर पर स्वयं सवार हैं? दरअसल सरकारी प्रशासन में सेंध लग चुकी है और अन्य देशों की तरह अब भारत के राजनीतिक दलों को अपने गुप्तचर संगठन और विशेषज्ञों के साथ मिलकर अपनी छाया सरकार समानांतर रूप से सक्रिय करके ठोस योजनाबद्ध काम करना चाहिए।
वर्तमान के अंधड़ को हम कोई ऐसा समुद्र-मंथन नहीं मान सकते, जिससे अमृत या गरल समान मात्रा में निकलेगा। इस मंथन से केवल अराजकता के जन्म का भय है।