क्या रजनीकांत राजनीति में आएंगे? / जयप्रकाश चौकसे

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राष्ट्रपति भवन में 'सरकार'
प्रकाशन तिथि :16 मई 2017


सुपर सितारे रजनीकांत के खेमे से ख़बर आ रही है कि वे सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने का विचार कर रहे हैं। एक दौर में उनके द्वारा जयललिता के पक्ष में दिए गए एक बयान से वे भारी मतों से चुनाव जीतने में सफल हुई थीं और कालांतर में रजनीकांत को दु:ख हुआ कि उनके एक बयान से जीतीं जयललिता ने आवाम की भलाई के काम नहीं किए। रजनीकांत के राजनीति में आने से अखिल भारतीय समीकरण बदल जाएंगे। सवा सौ वर्ष से अधिक समय से सक्रिय कांग्रेस अब अस्तित्व के खतरे को झेल रही है और अगर रजनीकांत उनके पक्ष में खड़े हो जाएं तो बाहुबली को पहली बार भय लगेगा। राजनीति में भय विटामिन की तरह काम करता है।

यह भी संभव है कि फिल्म जगत में तर्कहीनता का उत्सव मनाती 'बाहुबली' की सफलता से विचलित रजनीकांत अब राजनीति का ज़िरहबख्तर पहनकर मैदान-ए-लोकप्रियता में आ रहे हैं। चौंसठ वर्षीय रजनीकांत दशकों से बॉक्स ऑफिस के बादशाह हैं परंतु हिंदुत्व के पंखों के सहारे उड़ता बाहुबली उन्हें मजबूर कर रहा है कि वे द्रविड़ कटार का इस्तेमाल करें। एक अरसे से द्रविड़ कटार अपनी म्यान से बाहर नहीं निकाली गई, क्योंकि उसकी मूठ पर हाथ रखना ही पर्याप्त होता था।

कट्‌टरता के इस युग में हर समुदाय व धर्म के अनुयायी कट्‌टर और संवेदनहीन होते जा रहे हैं। काबिलेगौर यह अजूबा है कि द्रविड़ श्रेष्ठता के प्रतीक रजनीकांत जन्म से मराठीभाषी महाराष्ट्रियन हैं। मुंबई के तीन सुपरस्टार इस्लाम मानने वाले परिवारों में जन्मे हैं। फिल्म उद्योग केवल बॉक्स ऑफिस धर्म से शासित हैं अौर धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि दर्शक भी धर्मनिरपेक्ष ही है। मौजूदा समय में धर्मनिरपेक्षता को खंडित किया जा रहा है, प्रायोजित पीड़ित व्यक्ति किसी धर्म विशेष की मान्यताओं के खिलाफ विद्रोह की मुद्रा में खड़ा किया गया है। एक वृहत षड्यंत्र है कि एक-एक समुदाय को नितांत अकेला खड़ा किया जाए और एक धर्म विशेष के अनुयायी ही सत्ता पर काबिज रहें। अवाम को विश्वास दिलाया जा रहा है कि खंड-खंड बंट जाना ही सही है। 'गाइड' के लिए शैलेंद्र का लिखा और सचिन देव बर्मन का गाया हुआ गीत है, 'तूने तो सबको राह दिखाई/तू मंजिल क्यों भूला/ सुलझाके औरों की उलझन/ क्यों कच्चे धागों में झूला/ आज क्यों नाचे सपेरा…'

आज अवाम भी सपेरे की तरह स्वयं नाच रहा है और सांप कुंडली मारकर गद्‌दी पर बैठा है।

यह भी मुमकिन है कि अमित शाह दक्षिण की कमान रजनीकांत को सौंपे। अत: अपने अनचाहे ही रजनीकांत राजनीतिक तराजू के निर्णायक तत्व हो गए हैं। दक्षिण में लोकप्रियता की चदरिया दया के रेशों से बुनी जाती है। रजनीकांत के दफ्तर में कार्यरत लोग दया की दी गई अर्जी का परीक्षण करके जरूरतमंद को सहायता देते हैं। इसी कार्यक्रम के कारण उनकी लोकप्रियता विराट होती जाती है। मेधावी छात्र की सहायता की जाती है। यह भी गौरतलब है कि अपराध सरगना भी दया के रेशों से अपना बाहुबल बढ़ाता है। दरअसल, व्यवस्था समानता और न्याय नहीं दे पाती, इसलिए समानांतर सरकार बनाई जाती है। यह समानांतर सरकार केवल अपने चाटुकारों और चहेतों को लाभान्वित करती है। इस सरकार का आवारा बादल किसी छत को भिगोता है, किसी को बचाता है। इस तरह गणतांत्रिक व्यवस्था चुनिंदा लोगों की मतलबी व्यवस्था बन जाती है। रजनीकांत का नियम रहा है कि वर्ष में एक माह के लिए वे कंधे पर छोटा-सा बैग लिए अमेरिका भ्रमण करते हैं। एक सप्ताह वे लॉस वेगास के कैसिनों में जमकर खेलते हैं। भाग्य के धनी वहां जीती हुई रकम भी जरूरतमंदों में बांट देते हैं।

अत: सिनेमा संसार से राजनीति में आने पर वे साधनहीन वर्ग की सहायता करना चाहेंगे परंतु व्यवस्था की मशीन में चक्र के भीतर चक्र दमन करते रहते हैं। उनके प्रिय मित्र और चहेते फिल्मकार शंकर से वे कह सकते हैं कि यथार्थ क्षेत्र के लिए भी वे पटकथा लिखें। क्या शंकर का रोबो एसएस राजामौली के बाहुबली को परास्त कर सकेगा?

भारतीय राजनीति मायथोलॉजी की गोद में जा बैठेगी। समय चक्र को विपरीत दिशा में घुमाकर धार्मिक आख्यानों के कालखंड में ले जाने के प्रयास हो रहे हैं। गोरखपुर में आख्यानों का प्रकाशन होता रहा है और उन आख्यानों के पृष्ठों से अब मुख्यमंत्री भी निकल रहे हैं।