क्या रजनीकांत राजनीति में प्रवेश करेंगे / जयप्रकाश चौकसे

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क्या रजनीकांत राजनीति में प्रवेश करेंगे
प्रकाशन तिथि :28 दिसंबर 2017


रजनीकांत 31दिसंबर को राजनीति में आने या नहीं आने के बारे में अपने फैसले की घोषणा करेंगे। दक्षिण भारत के सितारे प्राय: राजनीति से जुड़े रहे हैं। करुणानिधि सफल पटकथा लेखक हुए हैं। एमजी रामचंद्रन और जयललिता ने स्टूडियो और विधानसभा में समान रूप से अपनी भूमिकाओं का निर्वाह किया है। इसके साथ ही सितारों ने अपनी कमाई के अधिकांश हिस्से से गरीबों की मदद की है। वहां फैन क्लब चारों तरफ फैले हैं। दरअसल, दोनों ही क्षेत्रों का आधार अवाम में लोकप्रियता है और लोकप्रियता भी रची जाती है। सामूहिक अवचेतन तरंग हवा से अधिक गति से चलती है। वहां प्राय: सितारों के जीवन-काल में ही उनके मंदिर बनाए जाते हैं। यह भी गौरतलब है कि सबसे अधिक मंदिर दक्षिण भारत में हैं और उनकी साफ-सफाई जमकर की जाती है। महिलाएं अपने घर-आंगन की सफाई के पहले अपने नज़दीक के मंदिरों की साफ-सफाई करती हैं गोयाकि घर आंगन फैलकर मंदिर हो जाते हैं अौर मंदिर घरों में सिमट जाते हैं। इस तरह दैनिक कार्य प्रार्थना से जुड़ जाते हैं।

रजनीकांत इस बात के प्रतीक हैं कि क्षेत्रीयता महज एक हव्वा है उनका जन्म नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है। दक्षिण में किसी को इस बात पर एतराज नहीं है कि उनका प्रिय नायक महाराष्ट्र में जन्मा है। अब तो रजनीकांत अपने स्वप्न भी तमिल भाषा में देखते हैं। अवचेतन भी इस तरह बदल जाता है। रॉबर्ट नोलन की फिल्म 'प्रेस्टीज' में एक व्यापारी प्रतिद्वंद्वी के अवचेतन पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है और उससे ऐसे फैसले करवाता है, जो उसके आर्थिक साम्राज्य को नष्ट कर देते हैं। हमारे देश में औद्योगिक घराने सरकार पर दबाव बनाकर ऐसी नीतियों की घोषणा करवाते हैं, जिनसे घराने का लाभ बढ़ता जाता है। एक दौर में कपड़ा बनाने वाली एक कंपनी ने विदेश से रेशे आयात किए। माल पानी के जहाज से उतरा ही था कि कस्टम दर बढ़ाने की घोषणा करवा दी गई। इस कीमत पर माल उठाना घाटे का सौदा था। अत: कंपनी ने माल नहीं उठाया। महीनों बाद वही माल इस तरह से नीलाम किया गया कि कंपनी को खबर भी नहीं लगी और उस नए घराने ने खरीदा, जिसकी सरकार में घुसपैठ थी। सरकार की बजट निर्माण प्रक्रिया में औद्योगिक घरानों के नुमाइंदे अपने हितों की रक्षा करते हैं और अवाम को पता भी नहीं चलता कि वह कहां-कहां, कैसे-कैसे पल-प्रतिपल ठगा जा रहा है। यह भी एक तथ्य है कि 'इकोनॉमिक हिटमैन' होते हैं, जो गरीब देशों के नेताओं को लाभ-लोभ देकर देश को कंगाल बनाते हैं। इकोनॉमिक हिटमैन प्रशिक्षण का अमेरिका में केंद्र है। इसी तरह के एक एजेंट ने सेवानिवृत्त होने के पश्चात एक किताब में सारे राज खोल दिए हैं। किताब का नाम भी 'इकोनॉमिक हिटमैन' ही है।

रजनीकांत की सुपुत्री द्वारा निर्माण की गई एक फिल्म में मुंबई स्थित एक कॉर्पोरेट का पैसा लगा था। फिल्म में भारी घाटा हुआ परंतु अनुबंध में कहीं नहीं लिखा था कि घाटा रजनीकांत की सुपुत्री की जवाबदारी होगी परंतु कॉर्पोरेट कंपनी ने आक्रोश जताया तो रजनीकांत ने पूरे घाटे की भरपाई कर दी। उन्हें यह सहन नहीं हुआ कि कोई ऊंची आवाज में उनकी बेटी से बात करे। रजनीकांत अपनी विचार शैली में भी असल महानायक है परंतु उनके पास कोई प्रचार-तंत्र नहीं है कि स्वयं को सदी का महानायक प्रचारित करें। इस तरह के काम में उनकी रुचि भी नहीं है।

वर्ष में रजनीकांत एक महीने की छुट्‌टी पर एक सामान्य व्यक्ति की तरह विदेश यात्रा करते हैं। उनके पास अपनी पीठ पर लादने का एक छोटा-सा बैग होता है और वे हिचहाइकिंग करते हैं अर्थात किसी भी वाहन में बैठ जाते हैं और कहीं भी उतर जाते हैं। इस यात्रा में वे न कोई साथी रखते हैं और ना ही कोई सितारा तामझाम होता है।

उनकी सादगी की एक घटना यूं है कि श्रीदेवी ने चेन्नई में अपने भवन की नई साज-सज्जा की और एक पूजा का आयोजन भी किया। उस दिन बोनी कपूर के पिता सुरिंदर कपूर का 75वां जन्मदिन भी था। पूजा-पाठ के बाद दावत हुई। उस दावत में रजनीकांत मेजबान की तरह हर मेहमान को स्नैक्स सर्व कर रहे थे। मेहमानों को जाम बनाकर देते रहे। देर रात जब दावत समाप्त हुई तब रजनीकांत बाहर निकले तो उनके 'दर्शन' के लिए उनके प्रशंसकों की भीड़ जमा हो गई थी। अत: रजनीकांत का राजनीति में प्रवेश एक सुनामी की तरह होगा, जिसकी लहरें दिल्ली तक जाएंगी। इसलिए सत्तासीन दल के एजेंट वहां डेरा डाले बठे हैं।

राहुल गांधी को चेन्नई जाना चाहिए, जहां सबसे अधिक संख्या में मंदिर हैं। सच तो यह है कि उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू की तरह मंदिर-मस्जिद नहीं जाते हुए वह बयान देना चाहिए, जो नेहरू ने भाखरा नंगल के उद्‌घाटन पर दिया था कि यही भारत के नए मंदिर हैं। इंदिरा गांधी का अनुसरण नहीं करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू का अनुसरण करना बेहतर होगा।