क्या वह सुबह कभी आएगी ? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या वह सुबह कभी आएगी ?
प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2014


पूरे देश में एफएम रेडियो से अनेक लाभ अवाम को हुए हैं परंतु संगीत कंपनियों को हानि हुई है। प्रगति का चक्र कुछ न कुछ कुचल कर ही आगे बढ़ता है। मुंबई एफएम ने 18 फरवरी को सारा दिन संगीतकार खय्याम के गीत बजाए और उनका साक्षात्कार भी जारी किया। उस दिन खय्याम साहब 87 वर्ष के हो गए। उनका पूरा नाम मोह?मद जहूर हाशमी 'खय्याम' है। लंबे संघर्ष के बाद सन् 1953 से उन्होंने फिल्मों में संगीत देना शुरू किया। फिल्म थी दिलीप कुमार अभिनीत 'फुटपाथ'। जिस दौर में उनका कॅरियर प्रारंभ हुआ वह हिंदुस्तानी सिनेमा और फिल्म संगीत का स्वर्ण युग था और हर क्षेत्र में विलक्षण प्रतिभाओं का आणविक विस्फोट का दौर था। उस दौर में शंकर जयकिशन, सचिन देव बर्मन, नौशाद और ओपी नैयर के कारण अनेक प्रतिभाशाली लोगों को अधिक अवसर नहीं मिले जैसे रोशन, खय्याम, अनिल विश्वास, चितलकर रामचंद्र इत्यादि।

खय्याम को जब भी अवसर मिला उन्होंने माधुर्य रचा। जैसे राजकपूर अभिनीत 'फिर सुबह होगी' के सारे गीत लोकप्रिय हुए, परंतु फिल्म के असफल होने के कारण बात नहीं बनी। उन्होंने हर दौर में सफल सितारों के साथ काम किया जैसे उभरते हुए राजेश खन्ना के लिए 'आखरी खत' और अमिताभ अभिनीत यश चोपड़ा के लिए 'कभी कभी'। इसके साथ ही उभरते धर्मेंद्र के लिए 'शोला और शबनम' और पूनम ढिल्लो के लिए 'नूरी' की पटकथा लिखवाई व गीत रचे। स्वयं निर्माण करने के पहले उन्होंने अपने मित्र यश चोपड़ा से सलाह ली तो उनसे कहा गया कि उन्हें अनुभव नहीं है, अत: वे यश चोपड़ा और रमेश तलवार की भागीदारी में 'नूरी' बना लें। फिल्म अत्यंत सफल रही और संगीत ही उसकी पहचान भी बना परंतु खय्याम साहब को काम नहीं मिला। यहां तक कि यश चोपड़ा के लिए 'त्रिशूल' और 'कभी-कभी' के सफल संगीत के बाद भी उन्हें यश चोपड़ा ने ही काम नहीं दिया। इस तरह की घटनाएं अनेक लोगों के साथ होती है कि महेंंद्र सिंह धोनी की तरह लगातार हारने वाला व्यक्ति कप्तान बना रहता है परंतु अपना काम अच्छे ढंग से करने वाले को अवसर नहीं मिलते। संभवत: इसका कारण यह है कि प्रतिभाशाली व्यक्ति के आत्मस?मान की भावना को वह हर हाल में अक्षुण्ण रखता है और दुनियादारी की समझ के अभाव में उसे अवसर नहीं मिलते। खय्याम साहब अत्यंत गुणी व्यक्ति रहे परंतु अपने काम में उन्हें समझौता पसंद नहीं आया। अब सुरीला व्यक्ति बेसुरों से कैसे आदेश ले सकता है।

खय्याम साहब अन्य संगीतकारों से इस अर्थ में अलग रहे कि उन्हें शायरी और कविता की गहरी जानकारी है। वे जानते हैं कि हर श?द की कोख में गहरा अर्थ होता है और उन्होंने हमेशा इस गहन अर्थ को ही अपने संगीत का आधार बनाया। यही कारण है कि उन्होंने साहिर लुधियानवी, कैफी आजमी, गालिब, दाग, वली, सरदार जाफरी और निदा फाजली की रचनाओं की धुनें बनाई। उनकी दूसरी विशेषता यह रही कि गायक-गायिका के स्वर का उपयोग एक वाद्ययंत्र की तरह किया और वाद्ययंत्रों को गायन की तरह इस्तेमाल किया। आशा भोंसले की आवाज को ओपी नैय्यर ने तलाश कर उसे अपनी बहन लता से भिन्न तेवर दिए तो इसी आशा भोंसले के श्रेष्ठतम गीत खय्याम की 'उमराव जान अदा' में है। आज के दौर में खय्याम साहब को कैसे काम मिल सकता है जब फिल्म गीत खिचड़ी भाषा में लिखे जा रहे हैं। आज के दौर की फिल्मों में अनेक अच्छाइयां हैं परंतु गीतकारों में शैलेंद्र, कैफी, सहिर व प्रदीप जैसा सांस्कृतिक दमखम नहीं है। खय्याम की प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं होना दुखद है।