क्या संजय दत्त दोबारा जेल जाएंगे? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 जून 2017
मुंबई के उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से प्रश्न पूछा है कि अभिनेता 'मुन्नाभाई' संजय दत्त के किस तरह के सद्व्यवहार के कारण उनकी सजा से 256 दिनों की छूट दी गई थी। एक व्यक्ति जेल के बाहर अपने गैर-जवाबदार व्यवहार और आपराधिक गतिविधियों के कारण मुजरिम करार दिया जाता है, वह जेल के भीतर सद्व्यवहार करने लगता है जो उसकी मजबूरी हो सकती है, परन्तु मिज़ाज में परिवर्तन का कोई प्रमाण नहीं हो सकता। जेल संरचना का आधारभूत आदर्श तो यही है कि वह एक पाठशाला है, जिसमें दाखिल व्यक्ति को बुरी आदतों से छुटकारा दिलाया जा सके। जेल में सजायाफ्ता शराब, सिगरेट व पकवान नहीं खा सकता। उसे सादा भोजन दिया जाता है और उससे परिश्रम कराया जाता है। उसकी मेहनत पर उसे वेतन भी दिया जाता है जो जेल से मुक्त होते समय उसे प्राप्त होता है। इसका तात्पर्य यह है कि जेल से बाहर जाते समय उसके पास कोई पूंजी हो, जिसके सहारे वह कोई व्यवसाय कर सके।
शांताराम जी की फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' का नायक जेलर अपने कैदियों के चरित्र में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। फिल्म में एक महान गीत का समावेश था 'ए मालिक तेरे बंदे हम, हम नेकी पर चलें और बदी से बचें', ऐसे हों हमारे करम… बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों हैं इस में कमी...'।
जेल भारत के सामूहिक अवचेतन में विशेष स्थान रखती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म जेल में हुआ और हमारे स्वतंत्रता संग्राम में हमारे नेता जेल भेज दिए गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जेल में सजा काटते समय ही महान पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' की रचना की जो कुछ देशों के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल है। आज नेहरू विरोध के दौर में वह किताब प्रतिबंधित घोषित की जा सकती है।
बहरहाल संजय दत्त अवैध हथियार रखने के दोषी पाए गए थे। जाने कैसे यह हुआ कि देशद्रोह के आरोप से उन्हें बचा लिया गया, क्योंकि संदेह यह भी था कि मुंबई ब्लास्ट के हथियार उनके अजंता स्टूडियो में छिपाए गए थे। उनके सांसद पिता सुनील दत्त के प्रभाव के कारण ये आरोप हटा लिए गए। पूरे प्रकरण का सच राजनीतिक आवरण से ढंक दिया गया है। खबर है कि महान फिल्मकार राजकुमार हीरानी संजय दत्त का बायोपिक बना रहे हैं, जिसमें वे उन्हें मासूम मुन्नाभाई सिद्ध करने पर तुले हैं अर्थात उनके सद्व्यवहारी होने का एक प्रमाण सेल्युलाइड पर भी तैयार किया जा रहा है। प्रमाण-पत्र की फोटोकॉपी को सत्य प्रतिपादित करने के लिए नेता और अफसरों के हस्ताक्षर लेने होते हैं। विडम्बना है कि भ्रष्टाचार में संलग्न व्यक्ति चरित्र के प्रमाण-पत्र देता है। संजय दत्त ने अपने कारावास के समय कई बार पैरोल प्राप्त की और जेल से बाहर रहे। संभवत: सजा का सबसे कम समय उन्होंने जेल में बिताया। भारत महान में सजायाफ्ता लोगों के भी कई भेद होते हैं। बिहार की जेल में सजा काट रहे भ्रष्ट नेता के कक्ष में फ्रिज, टीवी इत्यादि की सुविधाएं होती हैं और इस स्वतंत्र देश का सचमुच का मासूम आदमी जेल के बाहर रहते हुए भी एक कैदी की तरह जीता है। यहां मरते हुए जिया जा रहा है और जीते हुए मरने का अभ्यास किया जा रहा है।
महाराष्ट्र सरकार इससे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्नों का जवाब देने में माहिर है। अपने प्रदेश में किसानों की आत्महत्या को वह अधिक खाने के कारण हुए अपच को भी साबित कर चुकी है और इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश में हुई किसान हत्याओं को भी काल्पनिक घटना सिद्ध करने पर आमादा है सरकार। इस सरकार ने ऐसा सुरक्षा कवच धारण किया है कि परीक्षा के घपले तक का उस पर प्रभाव ही नहीं पड़ा। महारथी कर्ण से जो कवच बामन बनकर दान में ग्रहण किया गया था, वही कवच पांच हजार वर्ष का सफर करके इस महानुभाव को प्राप्त हुआ है।
कभी-कभी निरपराध व्यक्ति के सजा काटने के बाद उसके बेनुगाह होने का प्रमाण मिलता है और उसे रिहा तो किया जाता है, परन्तु उसके जीवन के वे वर्ष लौटाए नहीं जा सकते। ठीक उसी तरह संजय दत्त को वे 256 दिन पुन: जेल में काटने पड़ेंगे। वह जेल प्रूफ प्रोडक्ट है - हमारी व्यवस्था की काबिलियत का प्रमाण-पत्र है। कहा जाता है कि अपने लड़कपन में उन्होंने आधी रात के बाद पाली हिल्स क्षेत्र में हवाई फायर किए थे, परन्तु अगले दिन यह प्रमाणित कर दिया गया कि वह किसी बारात में फोड़े गए पटाखों की आवाज़ थी।
यह भी काबिलेगौर है कि राजकुमा हीरानी के संजय दत्त बायोपिक में रणवीर कपूर संजय दत्त की भूमिका करने जा रहे हैं। जाने कैसे राजकपूर-नरगिस की अंतरंगता का सिलसिला हमेशा जारी ही रहता है। पहाड़ों से टकराकर जिस तरह ध्वनियां वापस आती हैं, उसी तरह प्रेम कहानियां भी दोहराई जाती हैं। बकौल शैलेन्द्र 'हम न रहेंगे, तुम न रहोगे पर दसों दिशाएं दोहराएंगी हमारी कहानियां'।