क्यों चिंतित है क्वीन कंगना? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :04 जून 2015
राधिका राव और विनय ने एक दशक पूर्व सलमान खान के साथ एक फिल्म बनाई थी, जिसकी शूटिंग रूस में हुई थी। तकनीकी गुणवत्ता के बावजूद फिल्म असफल रही। अनेक वर्षों के अंतराल के बाद उन्होंने सनी देओल और कंगना राणावत के साथ एक रोमांटिक कॉमेडी की शूटिंग अमेरिका में की और इसमें धन भूषण कुमार का लगा परंतु फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पाई।
कई बार बजट से अधिक खर्च के कारण भी फिल्में रुक जाती हैं और कई बार सितारा अपनी बॉक्स ऑफिस चमक खो देता है तो उसकी फिल्म के प्रदर्शन में बाधाएं आती हैं। राजेश खन्ना ने अपने प्रवेश के समय ही एक फिल्म की थी और 'आराधना' के बाद की आंधी के कारण वे अपनी इस 'कमजोर फिल्म' का प्रदर्शन नहीं होने देना चाहते थे। सफल सितारे के गिर्द एक फौज जाने कैसे खड़ी हो जाती है और वे अपने आका के संकेत पर कुछ भी कर गुजरते हैं। कई बार मंत्री के माथे पर बल पड़ता है और अफसरों की फौज अत्याचार का अंधड़ जारी कर देती है।
बहरहाल, राजेश खन्ना की यह फिल्म उनकी आंधी थमते हुए प्रदर्शित हुई और इसकी सफलता उनके लुढ़कते कॅरिअर को कुछ समय के लिए थाम सकी। तिगमांशू धुलिया की 'पानसिंह तोमर' उसमें धन लगाने वाली कंपनी के हुक्मरानों को पसंद नहीं आई और उन्होंने इसे प्रदर्शित न करने का निर्णय लिया। कुछ समय पश्चात तिगमांशू धुलिया, नायक इरफान व अन्य लोगों ने अपना शेष पारिश्रमिक त्याग दिया, तब अनमने ढंग से फिल्म प्रदर्शित हुई और अत्यंत सफल रही।
खबर है कि राधिका राव और विनय की यह फिल्म अब जुलाई में प्रदर्शित होने जा रही है गोयाकि एक सुशुप्त अवस्था में पड़ा ज्वालामुखी अब फटने वाला है। यह उस दौर की फिल्म है जब कंगना 'क्वीन' नहीं थी और संघर्षरत दिनों में उसने फिल्म सहर्ष स्वीकार की थी। कहा जाता है कि अब कंगना को परेशानी है कि इस फिल्म का प्रदर्शन उनकी जगमग के दौर में अंधेरा पैदा कर सकता है परंतु वे इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं कर रही हैं। इसमें धन लगाने वाले भूषण कुमार का कहना है कि वे इसका वितरण अधिकार पहले ही बेच चुके थे, अत: अब यह नियंत्रण के बाहर है। यह संभव है कि 'नियंत्रण खोने के बाद' भी वे कोई डोर खींच रहे हों और प्रदर्शन की कठपुतली उनकी उंगली द्वारा ही चलायमान है। बहरहाल शो बिज़नेस में चक्र के भीतर अनेक चक्र होते हैं और 'मशीन' कैसे चल रही है, यह पता नहीं चलता।
अगर यह फिल्म सफल हो जाती है तो सनी देओल अभिनीत डॉ. द्ववेदी की फिल्म 'अस्सी घाट' भी प्रदर्शित हो सकती है। इससे जुड़े तकनीशियन अपने मेहनताने की शेष रकम के लिए अनेक संगठनों के दरवाजे खटखटा रहे हैं परंतु माथा देखकर तिलक लगाने वाले संगठन खामोश हैं और अदालत जारी है। जीवन के अनेक क्षेत्रों में सत्ता परिवर्तन के बाद अनेक सुशुप्त अवस्था में पड़े ज्वालामुखी फिर धधकने लगते हैं। विध्वंसकारी ताकतें सतह के नीचे बहते रहती हैं और समय की नदी के मुड़ते ही ऊपर आ जाती हैं।
इसी तरह सृजन शक्ति भी सतह के नीचे सदैव प्रवाहित रहती है और कोई एक व्यक्ति शंखनाद करता है तो सृजन शक्ति भी सतह पर आ जाती है। गांधी के अवतरित होते ही अनेक क्षेत्रों की सृजन शक्तियां सतह पर आ गई। संत गांधी के दौर में तो तवायफों ने भी अपने कोठे बंद कर दिए थे। महान क्रांतिकारी उधमसिंह को संकट के एक दौर में एक तवायफ ने बचाया था और उनसे मिलने के बाद उसने अपना कोठा सदैव के लिए बंद कर दिया। कई बार अच्छे दिनों के दौर में अनेक लोग दलाल हो जाते हैं और नए किस्म का तवायफाना भी शुरू हो जाता है।