क्रास रोड्स: सामाजिक सोद्देश्यता का कार्यक्रम / जयप्रकाश चौकसे

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क्रास रोड्स: सामाजिक सोद्देश्यता का कार्यक्रम
प्रकाशन तिथि : 30 अगस्त 2018


आजकल छोटे परदे पर 'क्रास रोड्स' नामक कार्यक्रम सप्ताह में तीन दिन प्रसारित किया जाता है। राम कपूर एंकर की भूमिका में बखूबी संचालन करते हैं। इस कार्यक्रम में किसी व्यक्ति को जीवन के दो राहे पर खड़ा हुआ प्रस्तुत करते हैं। उसे एक मार्ग चुनना होता है। सही चुनाव मंजिल तक ले जाता है। कभी-कभी कार्यक्रम में कुछ शाश्वत सवाल उठाए जाते हैं। मसलन, एक कार्यक्रम में पति, पत्नी को सुझाव देता है कि वह भी काम करे। दो लोगों के वेतन मिलने पर निरंतर बढ़ती हुई मंहगाई का सामना करना आसान होगा। पति के दफ्तर में ही पत्नी को काम मिल जाता है। वो अपनी प्रतिभा और परिश्रम से सफल होती हुई अपने पति के बॉस तक जा पहुंचती है। अब उसका वेतन भी पति से अधिक है। आया फोन पर बताती है कि बच्चे की तबियत खराब है। पति देखता है कि उसकी पत्नी एक महत्वपूर्ण मीटिंग में व्यस्त है। उसे डिलिवरी का चालान देना है परंतु वह अपने बीमार बच्चों के पास जाता है, जिस कारण समय पर डिलिवरी नहीं होती है और कंपनी को भारी घाटा होता है। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर पत्नी को कहते हैं कि उसे अपने व्यक्तिगत रिश्ते से ऊपर उठकर अपने पति को बर्खास्त करना चाहिए। इस एपिसोड में उठाई गई समस्या की गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि यह झूठ गढ़ा गया है कि पुरुष नारी से अधिक बलवान है। यह पुरुष श्रेष्ठता का झूठ वह अपनी कमतरी से भयभीत होने के कारण रचता है।

सदियों में रचे गए झूठ का प्रभाव यह है कि अधिकांश स्त्रियां सचमुच यह मानने लगी हैं कि वे कमजोर हैं और उन्हें पुरुष द्वारा रक्षा की आवश्यकता है। जब स्त्री किसी पुरुष द्वार पर पहुंचती है तब पुरुष द्वार खोलकर स्त्री को पहले प्रवेश करने के लिए कहता है और ये 'लेडीज फर्स्ट' नारी को कमतर साबित करने के लिए किया जाता है। गोयाकि सारे रीति-रिवाज गढ़े गए हैं केवल स्त्री को दोयम दर्जे की नागरिक बनाने के लिए। इस विषय पर सिमोन द ब्वॉ की किताब 'सेकन्ड सेक्स' में स्त्री-पुरुष रिश्तों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेखिका ने तीन हजार वर्ष में बदलते हुए सारे मानदंडों का वैज्ञानिक परीक्षण प्रस्तुत किया है। अवाम के जीवन के अधिकांश निर्णय सरकार लेने लगती है। मनुष्य क्या पहने, क्या खाए, क्या सोचे ये भी सरकार अपने हाथ में ले लेती है। फौजी को यही शिक्षा दी जाती है कि वे अपने कप्तान के आदेश का पालन करे। इस तरह व्यक्तिगत सोच की स्वतंत्रता को स्थगित कर दिया जाता है और वैचारिक रेजीमेंटेशन का दौर प्रारंभ होता है। व्यवस्थाएं भी दोराहे पर खड़ी होती है। व्यवस्था द्वारा लिए गए गलत निर्णय से विध्वंसक युद्ध के हालात बनते हैं। इसके साथ ही कुछ सरकारें युद्ध की आशंका का झूठ गढ़ती हैं ताकि अपने विरोधियों पर जुल्म ढहा सकें। व्यवस्था अपनी असफल नीतियों को सफल करार देने के लिए विज्ञापन का सहारा लेती हैं। विज्ञापनों की बारिश करके धुंध फैलाई जाती है।

ज्ञातव्य है कि दूसरे विश्व युद्ध में विन्सटन चर्चिल द्वारा लिए गए निर्णयों ने जीत का पथ प्रशस्त किया। युद्ध के समाप्त होते ही ब्रिटेन की अवाम ने युद्ध के नायक चर्चिल को चुनाव में मत नहीं दिए। उनका मानना था कि युद्ध के समय विन्सटन चर्चिल ही सही नेता थे परंतु शांति के समय उन्हें अन्य किस्म का नेता चुनना है, इसलिए एटली की विजय हुई। विन्सटन चर्चिल भारत को स्वतंत्रता नहीं देना चाहते थे। एटली यह जान चुके थे कि भारत को अधिक समय तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है। ब्रिटेन ने भारत के लोगों की मदद से ही भारत पर राज किया। उनकी बनाई व्यवस्था ही शासन करती थी। अत: वहां के अवाम के चर्चिल को हटाने के निर्णय के कारण भारत को स्वतंत्रता मिली परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि स्वतंत्रता के लिए लंबी लड़ाई नहीं लड़ी गई। अनेक लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। कभी-कभी अवाम गलत निर्णय भी लेता है परंतु अवाम अपनी सामूहिक गलती पर शर्मिंदा भी होता है जैसे आज अमेरिका में किया जा रहा है। अमेरिका के थल, वायु और जल सेना के पूर्व उच्चतम अधिकारियों ने सेनाओं से कहा है कि अगर उनका राष्ट्रपति युद्ध का निर्णय लेता है तो वे परिस्थितियों पर विचार करने के बाद ही निर्णय लें। आज अमेरिका में कुछ लोग प्रेसीडेंट के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का विचार कर रहे हैं और सत्ता से चिपका व्यक्ति धमकी दे रहा है कि ऐसा करने पर वह बहुत कुछ नष्ट कर देगा।

हमारे अपने देश में वर्तमान व्यवस्था के लिए जिम्मेदार है हमारा सदियों में बना सामूहिक अपराध बोध। पुरातन ग्रन्थों की गलत व्याख्याओं के कारण ही हमारे सामूहिक अवचेतन का निर्माण हुआ है। जिन ग्रंथों की मिथ्या व्याख्या ने हमें बदहाली दी है उन्हीं ग्रन्थों से हम अपना मार्ग भी चुन सकते हैं। भस्मासुर का स्मरण कीजिए।