क्रिकेटमय भारत और सिनेमा / जयप्रकाश चौकसे
क्रिकेटमय भारत और सिनेमा
प्रकाशन तिथि : 10 फरवरी 2011
विश्व कप में भारत की ओर से खेलने वाले खिलाडिय़ों के शहरों में पूजा-पाठ, सामूहिक प्रार्थना और भांति-भांति के तमाशे हो रहे हैं। अन्य शहरों में भी विश्व कप जीतने के लिए कुछ न कुछ हो रहा है, गोयाकि पूरा देश क्रिकेटमय हो रहा है। इनमें से कुछ आयोजन तो केवल टेलीविजन पर दिखाए जाने के कारण हो रहे हैं और कुछ क्रिकेट का नशा भी है। टेलीविजन चैनल द्वारा यह जोश और जुनून प्रायोजित भी हो सकता है क्योंकि क्रिकेट का नशा अवाम के सिर चढ़कर बोलने की दशा में ही चैनल को विज्ञापन मिलेंगे।
आज हालात ऐसे हैं कि किसी भी बात का सहज स्वाभाविक होना संशय की दृष्टि से देखा जाता है। आम आदमी का विश्वास बार-बार तोड़ा गया है और अब संशय करना उसका स्वभाव हो चुका है। दुनिया के अन्य क्रिकेटप्रेमी देशों में इस तरह के तमाशे नहीं हो रहे हैं। क्रिकेट कप जीतने की इच्छा सभी देशों में समान है परंतु स्वांग केवल भारत में हो रहा है। अन्य क्रिकेट खेलने वाले देशों में क्रिकेट महज खेल है परंतु भारत में यह राष्ट्रीय शगल है। हमें मेले, तमाशे, सरकस, नौटंकी बहुत पसंद हैं। दरअसल हम सब अनंत तमाशबीन हैं और हमारे लिए पूरा विश्व ही जलसाघर है। क्रिकेट को अनिश्चितता का खेल कहा जाता है और इसे 'गेम ऑफ चांस' भी कहते हैं। हमारा भाग्य में गहरा विश्वास है और हम जीवन को भी प्रायोजित ही मानते हैं। इसमें जुए-सट्टे के तत्व भी शामिल हैं और दीवाली पर जुआ खेलने को हमने जीवन शैली का हिस्सा मान लिया है।
भारत में क्रिकेट की असली ताकत अवाम का उसके प्रति जुनून है। यहां खेल पर विचार प्रकट करने के लिए उसका विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं है। पान की दुकान पर, गली-चौराहों पर, खेत-खलिहान में आपको क्रिकेट पर राय जाहिर करने वालों की भीड़ मिल सकती है। महत्वपूर्ण मैच के दिन सड़कें सुनसान हो जाती हैं, दुकानें बंद हो जाती हैं और अघोषित राष्ट्रीय छुट्टी का वातावरण होता है। हमें उत्सव मनाने के लिए किसी बहाने की जरूरत होती है।
सिनेमा के प्रति भी हमारा जुनून ऐसा ही है। उस पर राय प्रकट करने के लिए भी विशेषज्ञ होना जरूरी नहीं है। सिनेमा के प्रति हमारा जुनून ऐसा ही है। उस पर राय प्रगट करने के लिए भी विशेषज्ञ होना जरुरी नहीं। दरअसल विशेष ज्ञान को हमने अपने आनंद से पृथक ही रखा है। हम बिना किसी कारण के भी आनंदित हो सकते हैं। हमने अपने गणतंत्र को भी अनूठे ढंग से परिभाषित किया है और चुनाव को भी उत्सव की तरह लेते हैं। चुनाव की शोर भरी रैलियां, नारेबाजी और विरोधी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल इत्यादि हमारे आनंद ग्रहण करने का ही हिस्सा है। हम क्रिकेट की तरह चुनाव-चुनाव भी खेलते हैं। क्रिकेट में मैच फिक्सिंग के सत्य की तरह हमारी व्यवस्था में भी करोड़ों के घपले होते रहते हैं। क्रिकेट खिलाड़ी कभी-कभी दंडित हो जाते हैं परंतु घपलेबाज थोड़े से स्वांग के बाद आजाद हो जाता है।
क्रिकेट अब विशाल व्यवसाय हो चुका है और टेलीविजन इसके प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विश्वकप के बाद आईपीएल की नौटंकी प्रस्तुत होगी। क्रिकेट में सिनेमा का ड्रामा है और सिनेमा में क्रिकेट की अनिश्चतता और सट्टा