क्रिकेट और चुनाव के पिच की डाॅक्टरिंग / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 दिसम्बर 2016
वर्तमान क्रिकेट शृंखला में भारत से लगातार तीन टेस्ट हारने वाली इंग्लैंड टीम के मैनेजर का बयान है कि भारत में बनाए गए धीमे पिच फिरकी गेंदबाजों की मदद करते हैं और तेज गेंदबाजों को हतोत्साहित करते हैं। हर मेजबान देश को अपनी सुविधा के अनुसार पिच बनाने का अधिकार है। हमारे अधिकतर खिलाड़ी स्वदेश में कीर्तिमान रचते हैं परंतु विदेशों में उतने सफल नहीं हो पाते। खेल के इस रिवाज को 'पिच डॉक्टरिंग' कहते हैं। सर डॉन ब्रैडमैन की विलक्षण प्रतिभा के खिलाफ 'बॉडी लाइन' गेंदबाजी आजमाई गई। सारी गेंदें लेग साइड पर डाली गईं, जहां क्षेत्ररक्षकों की भीड़ खड़ी कर दी गई थी। इस कांड पर अत्यंत विश्वसनीय डाक्यू-ड्रामा दूरदर्शन पर दिखाया गया था। बहरहाल, यह 'पिच डॉक्टरिंग' अन्य क्षेत्रों में भी की जाती है। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल अपने अनुकूल वातावरण बनाते हैं और यह चुनाव डॉक्टरिंग है। अगले आम चुनाव के पूर्व पाकिस्तान के खिलाफ एक छोटा युद्ध 'प्रायोजित' किया जा सकता है ताकि 'हिंदू वोट बैंक' को मजबूत बनाया जा सके। पाकिस्तान के साथ युद्ध का हव्वा सुनियोजित ढंग से रचा जा रहा है, जो दरअसल भारत में सदियों से रह रहे इस्लाम के अनुयायियों के खिलाफ चतुराई से रचा खेल है और पाकिस्तान के नेता भी यही खेल अपने देश में खेलते हैं, क्योंकि वहां भी वही वोट बैंक हैं। कभी-कभी भ्रम होता है कि दोनों देशों के नेता भीतर ही भीतर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि सामूहिक अवचेतन दोनों जगह समान रूप से सक्रिय है। दोनों ही देश एक ही मांस के जुड़वां लोथड़े हैं। अत: एक में पड़े कीड़े दूसरे में स्वयं ही विकसित हो जाते हैं मानो ये कीड़े भी जुड़वां ही हैं। यह संभव है कि हम हजार वर्ष में 'कैशलेस देश' बन सकें परंतु भारतीय राजनीति को जातिवाद और धर्म आधारित चुनावों से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती। यह दोनों देशों की बचपन में पिलाई घुट्टी में शामिल अजीबोगरीब जड़ी-बूटी है। कुछ हद तक संजीव बख्शी के 'भूलन कांदा' की तरह, जिससे प्रेरित फिल्म की शूटिंग जारी है। 'कैशलेस भारत' एक फंतासी है। यह मात्र हमारा ही भारत महान है, जिसमें सबसे बड़े उत्सव में लक्ष्मी को पूजा जाता है। रोकड़ा हमारे मन में बसा है, ठीक उसी तरह जैसे अवचेतन में कुंठाएं बसी होती हैं। बचपन की पटकथा पर ही जीवन की फिल्म आधारित होती है। पेंट में पीछे की जेब में रखे पैसों का कुछ अंदाज व्यक्ति की चाल से लग जाता है। पैसा आधारित है हमारा सारा चाल-चलन।
राजनीति और चुनाव की 'पिच डॉक्टरिंग' के कुछ स्वयंभू विशेषज्ञ भी हैं परंतु ऊंट किस करवट बैठेगा यह बताना हमेशा कठिन होता है। भारत के वोटर और फिल्म दर्शक को समझ पाना अत्यंत कठिन है। एक अघोरी के लिए अमेरिका में एक शो रचा गया, जिसमें विविध ढंग के मल को खाने का आयोजन था और आधा दर्जन प्लेट खाने के बाद उस अघोरी ने मेज पर रखी सातवीं प्लेट को छूने से इनकार कर दिया। अपार धन का प्रलोभन भी उसे डिगा नहीं पाया, क्योंकि उसका स्पष्टीकरण यह था कि इसमें मक्खी पड़ी है। ठीक इसी तरह यह बताना कठिन है कि वोटर और दर्शक को कब किस प्लेट में एक मक्खी दिख जाती है। फूहड़ फिल्म सफल होती है और वैसी ही दूसरी फूहड़ फिल्म उसी समय असफल हो जाती है। विश्वनाथ, सुनील गावस्कर, सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ ने हर देश में शतक बनाए हैं और इसी शृंखला के खिलाड़ी हैं विराट कोहली। रहाणे और विराट कोहली जब एकसाथ बल्लेबाजी करते हैं, तो आभास होता है मानो जुड़वां खेल रहे हैं। क्रिकेट तकनीक की नाल एक ही होती है। यह भी मुमकिन है कि देशों की नाल भी एक ही होती है। सभी देशों के साधनहीन लोग समान रूप से सोचते-विचारते लोग होते हैं, क्योंकि भूख अंतरराष्ट्रीय तथ्य है। आग लगने पर पानी डालने से वह बुझ जाती है परंतु मनुष्य के उदर में भूख की अग्नि भड़कते ही पाचक क्रिया का जल प्रकट हो जाता है। मानव उदर में अग्नि और जल साथ-साथ रहते हैं और उनमें कोई शत्रुता नहीं है। यह मनुष्य की विलक्षणता है कि उसके उदर में दो विरोधी तत्व साथ-साथ रहते हैं। 'जोकर' के गीत की पंक्तियां याद आती हैं, 'कोड़ा जो भूख, कोड़ा जो पैसा है… तरह-तरह नाचकर दिखाना पड़ता है।' राज कपूर के जन्मदिवस पर 'जोकर' की पंक्तियों का याद आना आकस्मिक नहीं है। उनका सिनेमा हमारे अवचेतन में बचपन की तरह समाया हुआ है।