क्रिकेट और फिल्म सितारों का याराना / जयप्रकाश चौकसे

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क्रिकेट और फिल्म सितारों का याराना
प्रकाशन तिथि :31 मार्च 2016


विचारों, व्यक्तियों और घटनाओं की आपस में तुलना, अध्ययन का एक रास्ता है परंतु यह जरूरी नहीं है कि वह मंजिल तक ले ही जाए। तुलना लोकप्रिय होती है और अवाम को इसमें मजा आता है। हमारे भीतर के पूर्वग्रह अभिव्यक्त होने को सदैव लालायित रहते हैं और तुलना इसका भरपूर अवसर देती है। रोचक तुलना का ताजा प्रकरण सचिन तेंडुलकर और विराट कोहली का है। कुछ वर्ष पूर्व सचिन की तुलना सुनील गावसकर से की जाती थी। इस तुलना के रोचक खेल में हम यह भूल जाते हैं कि सुनील गावसकर को एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग व मैल्कम मार्शल जैसे निष्णात गेंदबाजों को खेलना होता था और वर्तमान की तरह भांति-भांति के सुरक्षा कवच भी नहीं थे। होल्डिंग एक दैत्य की तरह तूफान की गति से गेंद फेंकते थे और छोटे कद के गावसकर अपनी कला से उनकी दानवी गति को बाउंड्री की ओर मोड़ देते थे। उनका खेल गति और शारीरिक शक्ति पर कला की जीत का खेल था। जब कोई बल्लेबाज अपनी तकनीक को मांज लेता है, तो उसका खेल कला के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। तकनीक साधन है, साध्य नहीं। तकनीक से कला तक की यात्रा कठिन होती है और अब विराट कोहली शिखर की ओर अग्रसर हैं। उनमें द्रविड़ का धैर्य और तेंडुलकर का साहस समा गया है। आज वे जिस मकाम पर खड़े हैं, वहां से आगे की यात्रा अत्यंत कठिन है। शिखर का निकटतम बिंदु सबसे कठिन जगह है, जहां फिसलने का डर है और बहकने का खतरा है।

यह ऐसा मकाम है, जहां आपके प्रशंसक ही आपके सबसे बड़े शत्रु हो जाते हैं। जिस अफरीदी को पाक का अवाम चाहता था, वे अफरीदी ही अपनी घर वापसी से घबराए हुए लंदन चले गए हैं। प्रशंसकों की अपेक्षाओं का दबाव अनेक प्रतिभाओं को लील गया है। खेल की सफलता अापके लिए ऐश्वर्य और अनगिनत भव्य दावतों के द्वार खोल देती है। कांबली अपने बाल सखा सचिन से अधिक प्रतिभाशाली थे परंतु दावतें और देवियां उन्हें खा गईं। दूसरी ओर सचिन के मध्यवर्गीय जीवन मूल्य इतने प्रबल थे कि वे उस लुभावने दलदल से बच गए। अमेरिका के साहित्य क्षेत्र में यह कहा जाता है कि सेलेब्रिटी सरकस से बचे रहना होता है। अनेक प्रतिभाशाली लेखक दावतों और सम्मानों में डूबकर दूसरी किताब ही नहीं लिख पाए। अब कोहली के सामने सबसे बड़ी समस्या यही होगी कि उन्हें सेलेब्रिटी सर्कस से बचना है। उन्होंने उन घटिया लोगों को आड़े हाथ लिया है, जो अनुष्का शर्मा से संबंध टूटने को उनकी इस सफलता का श्रेय दे रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि अनुष्का शर्मा उनके जीवन में सकारात्मकता लेकर आई थीं। अपने जीवन से छिटक गई भूतपूर्व प्रेमिका के प्रति यह सम्मान प्रकट करना, खेल के मैदान के बाहर उसके ठोस व्यक्तित्व का परिचय देता है। टूटे हुए रिश्तों में वापसी की संभावना को जीवित भी रखता है। वेस्टइंडीज के गैरी सोबर्स और अंजू महेंद्रू का प्रेम-प्रसंग उन दिनों सुर्खियों में था। यही अंजू महेंद्रू संघर्षरत राजेश खन्ना की भी प्रेमिका रही हंै और उन्होंने डिम्पल से विवाह के पूर्व अपना एक बंगला अंजू महेंद्रू के नाम कर दिया था। आज भी वह भव्य बंगला अंजू का आर्थिक संबल है। पुराने प्रेम-पत्र जलाने पर एक कप चाय भी नहीं बनती परंतु संपत्ति संबल बन जाती है। कृपण व्यक्ति क्या प्रेम का निर्वाह करेगा और उसकी खोखली वाचालता का मूल्य भी क्या है? यह धनाढ्य की पैरवी नहीं है परंतु प्रेम में डूब जाने की थाह लेने का प्रयास है। प्रेम तो समानता है, स्वतंत्रता है और अहंकार से मुक्ति है। प्रेम संपूर्ण समर्पण है।

भारत में एक सफल खिलाड़ी को जितना धन मिलता है, उतना धन पाकिस्तान की पूरी टीम को नहीं मिलता, क्योंकि भारत का विज्ञापन संसार बहुत धनाढ्य है। वेस्टइंडीज द्वीप समूह का युवा वर्ग अब क्रिकेट से विमुख होकर पश्चिमी देशों में बेसबॉल खेलता है, क्योंकि उसमें धन अधिक है। भारत में असंख्य दर्शक ही इस खेल की असली ताकत है। हर मैच में स्टेडियम खचाखच भरा रहता है। अार्थिक समीकरण हर क्षेत्र में निर्णायक शक्ति है। असंख्य दर्शक ही भारतीय क्रिकेट और सिनेमा को आर्थिक मेरूदंड देते हैं। भारत का विराट अवाम अपनी असीमित शक्ति से अपरिचित है और बाजार की ताकत यही चाहती है, क्योंकि बाजार का अस्तित्व अवाम को भरमाए रखने पर ही टिका है। वह कौन है, जिसकी बीन के माधुर्य से मंत्रमुग्ध अाम आदमी डोलता रहता है। वह बेचारा अपने विष से ही अपरिचित है और कमोबेश उस शिव की तरह हो गया है जो तांडव नहीं करता। अमृत का मिथ ही इसके लिए जवाबदार है। अमरत्व से ठगे जाने से बेहतर है सीमित समय को सार्थकता से जियें।