क्रिकेट कुरुक्षेत्र से महारथी की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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क्रिकेट कुरुक्षेत्र से महारथी की वापसी
प्रकाशन तिथि : 14 नवम्बर 2013


आज सचिन तेंडुलकर का अंतिम टेस्ट देखने उनकी माताजी एवं गुरुजी को व्हील चेयर से एक विशेष रैम्प के द्वारा उनके बॉक्स तक ले जाएंगे। उनके परिवार और मित्रों का जमघट लगा है। अनेक फिल्म सितारे भी मौजूद होंगे। उन्हें पुत्र की तरह स्नेह करने वाली लता मंगेशकर टेलीविजन पर मैच देखेंगी। वे सचिन द्वारा निमंत्रित हैं परंतु सेहत के कारण घर बैठकर ही देखेंगी। ज्ञातव्य है कि सचिन अपने क्रिकेट के विदेश दौरों के समय लता मंगेशकर के गीतों का संकलन लेकर जाते हैं और उन्हें संगीत बहुत पसंद है। उनकी कुछ पारियां तो ऐसी लगीं मानो लताजी की स्वरलहरी का क्रिकेटीय अनुवाद मात्र है, उनके खेल में लय है, आलाप है, आरोह-अवरोह है। दरअसल बल्ले के बीच गेंद लगने से एक मधुर ध्वनि सुनाई देती, उनके लेग ग्लांस सितार बजने की तरह लगते हैं। उनके स्क्वेयर ड्राइव जैसे डिग्गे पर थाप पड़ी हो। उनके पैवेलियन लौटते समय फौज का रिट्रीट संगीत बजता सा लगता है। सचिन को खेलते देखना मानो जुबिन मेहता को संगीत कंडक्ट करते देखने की तरह है, मास्टर और मेस्ट्रो का अंतर समाप्त हो जाता है।

निहायत ही अफसोस की बात है कि सचिन जैसे जीनियस के कविता जैसे खेल का वर्णन करने वाले समालोचक नहीं हैं, आज तो नौटंकी की तरह वर्णन होता है, कुछ जोकरनुमा लोग कमेंट्री करते हैं। काश! आज हमारे बीच एएफएस तल्यार खान होते जो पांचों दिन अकेले कमेंट्री करते थे। एक जमाने में नेविल काड्र्स जैसे लेखक क्रिकेट पर लिखते थे और उनकी अदा की नकल करते हुए हम कह सकते हैं कि जब सचिन खेल प्रारंभ करते हैं तो उनके बल्ले की चौड़ाई नियमानुसार कुछ इंच होती है और पारी के साथ आभास होता है मानो चौड़ाई बारह इंच की हो गई है, नेविल काड्र्स क्रिकेट विवरण महाकाव्य की तरह करते थे।

बहरहाल सचिन तेंडुलकर एकमात्र खिलाड़ी हैं जो खेलते समय मुंह में चुइंगगम नहीं रखता। चुंइगगम भीतर के तनाव को कम करने का टोटका है। सचिन में ध्यान केंद्रित करने की अद्भुत क्षमता है, खेलते समय वे ध्यानस्थ योगी लगते हैं। सचिन ने अपने कॅरिअर में विविध प्रकार की प्रतिस्पर्धाओं में कुल जमा चौरासी हजार तीन सौ इक्यानबे रन बनाए हैं। इनमें से चौकों और छक्कों को छोड़ दें तो करीब साठ हजार रन दौड़कर बनाए हैं और एक रन के लिए कम से कम बाइस गज दौडऩा होता है। गोयाकि सचिन क्षेत्ररक्षण और गेंदबाजी को छोड़कर तेरह लाख बीस हजार गज दौड़े हैं। आज की टीम में कोहली और रोहित शर्मा जैसे लोग हैं जिनकी क्रिकेट तकनीक सही है और इन उभरते खिलाडिय़ों से उम्मीद की जा सकती है कि वे सुनील गावस्कर, सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ की परंपरा को आगे ले जाएंगे। परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सुनील गावस्कर, सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ के जमाने में सभी देशों के पास धुरंधर गेंदबाज थे और आज किसी भी देश के पास 'मारक' गेंदबाज नहीं हैं। इन तीनों दिग्गजों ने घातक गेंदबाजों का मुकाबला किया है और उस दौर में पिच भी तीव्र गेंदबाजों की मदद करते थे। आज भारत की प्राणहीन पिचों पर खेले गए मैचों को देखने भारी भीड़ जमा होते देखकर अन्य देशों ने भी अपने यहां प्राणहीन पिच बनाने प्रारंभ कर दिए हैं क्योंकि सिनेमा की तरह अब क्रिकेट भी अपनी बॉक्स आफिस ताकत से नियंत्रित है। सचिन ने पंद्रह वर्ष की आयु से अंतरराष्ट्रीय खेल प्रारंभ किया और विगत 24 वर्षों में वह अनेक गेंदबाजों के लिए भयावह सपने की तरह रहा है। शेन वार्न जैसे फिरकी गेंदबाज को पसीना आ जाता था कि अगली गेंद वह कहां मारेगा।

स्कूल के जमाने में सचिन के मित्र विनोद काम्बली को उनसेअधिक प्रतिभाशाली माना जाता था परंतु काम्बली की प्रतिभा को सफलता ने डस लिया और सचिन को मध्यमवर्गीय महाराष्ट्रियन जीवन मूल्यों ने बचा लिया। दो दशक तक एकाग्रता बनाए रखना कठिन काम है। करोड़ों की करतल ध्वनि के बीच अपने को समाधिस्थ रख पाना आसान काम नहीं था। इस तरह बहुप्रचारित राजनैतिक मंशा वाले अध्यात्म से अलग विशुद्ध अध्यात्म खेल के मैदान तक जाता है। अपना काम लगन और एकाग्रता से करना ही पूजा आराधना और अध्यात्म है।

अपने इस अंतिम मैच की अंतिम पारी खेलकर जब सचिन लौटेंगे तो पिच स पैवेलियन तक का कुछ गजों का फासला बदलकर 24 वर्षों का सफर हो जाएगा और अनगिनत यादों के बवंडर उनके मन में चक्रवात की तरह घूमेंगे। शायद वे सोचें कि क्या अब मैं दोबारा इस तरह नहीं लौटूंगा? यह नहीं वरन् हर क्षेत्र में कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति जब आखिरी बार दफ्तर से घर लौटता है तो उसके मनोभाव में कितना मोह, कितना ज्ञान होता है। हर कदम एक इतिहास है- एक अलिखित इतिहास है। सचिन घोर व्यावसायिकता से ग्रसित क्रिकेट से विदा ले रहे हैं, जैसे काजल की डिब्बी से बेदाग लौट रहे हैं। आज सचिन के परिवार और गुरु को प्रणाम जिन्होंने उसे पवित्र जीवन मूल्य दिए।