क्रिकेट बनाम फुटबॉल और गरीबी / जयप्रकाश चौकसे

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क्रिकेट बनाम फुटबॉल और गरीबी
प्रकाशन तिथि :24 जून 2016


ब्रिटेन के अधीन रहे देशों में क्रिकेट लोकप्रिय है, परंतु यूरोप के देशों में फुटबॉल लोकप्रिय रहा है। क्रिकेट के दर्शक प्राय: बीयर पीते हैं, परंतु फुटबॉल प्रेमियों का पसंदीदा पेय रम है और बीयर तथा रम के नशे का अंतर ही दोनों खेलों के प्रेमियों के मिजाज का अंतर भी है। क्रिकेट प्रेमी आपस में लड़ते नहीं हैं, परंतु फुटबॉल प्रेमियों का गुस्सा उनकी नाक पर डटा रहता है। फुटबॉल के घंटे-डेढ़ घंटे के खेल में जितना पसीना बहता है, उतना पसीना पांच दिवसीय क्रिकेट या बीस ओवर के क्रिकेट में नहीं बहता। फुटबॉल प्रेमी खून को पसीने की तरह बहा सकते हैं, परंतु क्रिकेट प्रेमी इस मामले में कंजूस हैं। क्रिकेट का खेल बारिश होते ही रोक दिया जाता है, परंतु फुटबॉल जारी रहता है। इस मामले में फुटबॉल मजदूर है, क्रिकेट जमींदार है। मजदूर को हर मौसम में पसीना बहाना होता है। खेलकूद में भी पूंजीवाद, समाजवाद व सामंतवाद किसी न किसी रूप में मौजूद रहते हैं। राजनीति से अछूता कोई क्षेत्र नहीं है। शयन-कक्ष की अंतरंगता में भी राजनीति विद्यमान रहती है। प्राय: बहुएं शयन-कक्ष में अपनी सास या ननद के खिलाफ पति के कान भरती हैं। अंतरंगता के क्षणों में जागे आवेश अगले दिन परिवार के व्यवहार में देखे जा सकते हैं। शयन-कक्ष निर्मल आनंद का स्थान नहीं होते हुए, शतरंज की बिसात बन जाता है और रिश्तों की चाल चली जाती है। अगर शयन-कक्ष निर्मल आनंद का कक्ष मात्र होता, तो बच्चे भी वैमनस्य से बच जाते।

प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टीयानो रोनाल्डो, जिनकी जीवन कथा प्रकाशित हो चुकी है, का बचपन गरीबी में बीता और उनकी गली में ही बच्चे फुटबॉल खेलते थे। किसी कार या ट्रक के आने पर खेल रोक दिया जाता था। इस तरह खेल चंद क्षणों की किश्तों में ही हो पाता था, जिस कारण उन बच्चों को कम समय में तीव्रतम गति से गोल मारने का अभ्यास हो जाता था। संभवत: रोनाल्डो को जब पहला अवसर चंद मिनटों के लिए खेलने का मिला तो उसने अपनी एक गोल से हारती हुई टीम को तीन गोल से जीत दिला दी।

प्रसिद्ध और सफल होने के बाद रोनाल्डो ने अपने जन्म स्थान पर न केवल अपनी मां के लिए बंगला बनाया वरन् उस स्थान की प्रगति के लिए वहां उद्योग की स्थापना भी की गोयाकि मां के साथ ही मातृभूमि का भी शुकराना अदा किया। फुटबॉल के खिलाड़ी बहुत ही भावना प्रधान होते हैं, क्योंकि उनके खेल में पलक झपकते ही परिणाम बदल जाता है। क्रिकेट अपेक्षाकृत अधिक कूटनीति प्रधान है। सचिन पर कीर्तिमान की खातिर अधिक समय तक खेलने का आरोप था, परंतु धोनी भी जिम्बाब्वे जैसी कमजोर टीम के खिलाफ शृंखला खेले ताकि व्यक्तिगत कीर्तिमान में पहली बार विदेशी धरती पर जीत दर्ज कर सकें और ये काम वे विगत दशक में नहीं कर पाए थे। सच तो यह है कि जीवन के अनेक क्षेत्रों में एक्सपायरी डेट निकलने के बाद भी सक्रिय रहा जाता है। अब विज्ञान के कारण औसत आयु बढ़ चुकी है। अगले कुछ दशकों में विज्ञान इतनी अधिक प्रगति कर लेगा कि उम्रदराज आदमी मौत के लिए तरसेगा। कैसा होगा वह समय, जब मौत एक प्रेमिका की तरह लगने लगेगी और हम असफल प्रेमी की तरह उसके न आने का गम मनाएंगे। जीवन और मृत्यु के चक्र से एक सलाख निकालने पर पूरा चक्र ही गति बदल जाएगा। यह सब केवल अमीरों को उपलब्ध होगा, गरीब को तो हमेशा मरते-मरते जीने की राह पर ही चलना होगा। सारी खोज और शोध के परिणाम एक खास वर्ग को ही उपलब्ध होते रहेंगे। गरीबी हमारा अपना आविष्कार है, यह मौसम और दिन-रात की तरह ईश्वर प्रदत्त नहीं है।

भारत में अंग्रेजों के जाने के बाद अंग्रेजी भाषा अधिक पढ़ी व पढ़ाई जा रही है। रोजमर्रा के जीवन में भी अंग्रेजियत उनके दौर से आज अधिक है। इसी तर्ज पर क्रिकेट के खेल के लिए दीवानगी कायम है, परंतु सर्वहारा का फुटबॉल उतना अधिक लोकप्रिय नहीं है। गोवा में फुटबॉल की लोकप्रियता को पुर्तगाल के गोवा आधिपत्य से जोड़ा जा सकता है। भारत गरीब देश होते हुए भी क्रिकेट की अय्याशी करता है और सर्वहारा का फुटबॉल कम खेला जाता है। हम आज भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हुए हैं।