क्रिकेट विश्वकप : गांधारी और काबुलीवाला / जयप्रकाश चौकसे

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क्रिकेट विश्वकप : गांधारी और काबुलीवाला
प्रकाशन तिथि : 25 जून 2019


गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचना 'काबुलीवाला' पर पहले बांग्ला भाषा में फिल्म बनी और बाद में बलराज साहनी अभिनीत हिंदी फिल्म बनी। अफगानिस्तान से आया एक व्यक्ति सूखे मेवे घर-घर जाकर बेचता है। उसे मिनी नामक बच्ची को देखकर काबुल में रहने वाली अपनी बिटिया की याद आती है, इसलिए वह उसे काजू, पिश्ते और बादाम मुफ्त में देता है। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि उसे एक अपराध में जेल जाना पड़ता है। वर्षों बाद वह जेल से छूटकर आता है तो मिनी का विवाह हो रहा होता है। मिनी के पिता उसकी भेंट अपनी बेटी से कराते हैं। यह खून का रिश्ता नहीं है परंतु मन के अदृश्य धागों से बंधा रिश्ता है।

कुछ वर्ष पूर्व रमेश तलवार ने इसी कथा का अगला भाग बनाया, जो गुरुदेव द्वारा लिखा नहीं गया है। इस नाटक में मिनी शादीशुदा ज़िंदगी जी रही है। उसे ज्ञात होता है कि अफगानिस्तान में डॉक्टरों की आवश्यकता है। मिनी को प्रमोशन मिलने वाला है परंतु वह अपने कॅरिअर को ताक पर रखकर आहत अफगानिस्तान जाना चाहती है। उसके मन में एक असंभव-सी कल्पना जागती है कि संभव है अफगानिस्तान में वह उस काबुलीवाला के किसी पुत्र या पोते को देख पाएगी और उसकी सेवा करके अपने बचपन के नेह का कर्ज चुका पाएगी। यह नाटक मुंबई में कई बार मंचित किया जा चुका है। ज्ञातव्य है कि अफगानिस्तान में कभी रूस की सेना का कब्जा था और रूस द्वारा अपनी फौज हटाने के बाद दुनिया के स्वयंभू हवलदार अमेरिका ने अपनी सेवा वहां भेजी। अमेरिका आदतन दूसरे के फटे में अपने पैर डालता है और चोटग्रस्त होकर लौट आता है। रूस और अमेरिका के अनावश्यक कब्जे के बाद अफगानिस्तान में निर्मम तालिबान का उदय हुआ। तालिब इल्म अर्थात ज्ञान को कहते हैं परंतु तालिबानी ताकतों ने अनपढ़ हिंसकों की तरह व्यवहार किया। अफगानिस्तान में उन्होंने महात्मा बुद्ध की भव्य प्रतिमा को ध्वस्त किया परंतु अवाम ने रात में उन टुकड़ों को अपने घर ले जाकर रखा। उन्हें उन्होंने पवित्र माना और इबादत करने लायक माना। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने महात्मा बुद्ध की विराट मूर्ति लगाई थी। भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते पौराणिक काल तक जाते हैं। भीष्म पितामह अपने जन्मांध धृतराष्ट्र के लिए वर मांगने काबुल गए थे। गांधारी ने यह रिश्ता स्वीकार किया, क्योंकि वे अपनी जनता को अनावश्यक युद्ध से बचाना चाहती थी। रिश्ता मांगने गए भीष्म पितामह अपने साथ भारी फौज लेकर गए थे। संकेत स्पष्ट था कि रिश्ता अस्वीकार करने के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी। गांधारी का भाई अपनी बहन के साथ भारत आया और उसने परिवार को दो भागों में बांटने और आपस में लड़ने वाली दशा बनाकर अपनी बहन के जन्मांध व्यक्ति से विवाह का बदला ले लिया। इंग्लैंड में चल रही विश्वकप स्पर्धा में अफगानिस्तान की टीम से मुकाबले में भारत बमुश्किल ग्यारह रन से जीत पाया। अफगान टीम मैच हार गई पर उसने क्रिकेटप्रेमियों का दिल जीत लिया। यह एक असमान टीमों के बीच का मैच था। भारतीय टीम में विश्वस्तरीय खिलाड़ी हैं। अफगानिस्तान में तो कोई क्रिकेट स्टेडियम भी नहीं है।

ज्ञातव्य है कि भारत की प्रसिद्ध कंपनी अमूल ने अफगानिस्तान की टीम को साधन दिए हैं। अमूल ही उनकी प्रायोजक है। इससे भी अधिक हैरानी की बात यह है कि भारतीय टीम की प्रायोजक एक चीनी कंपनी है। चीन हमारी हजारों मील जमीन हड़पकर बैठा है। हमारी सरकार सारे समय पाकिस्तान पर ध्यान लगाए बैठी है परंतु शक्तिशाली चीन की हर हरकत पर सुविधाजनक मौन साधे रहती है। समरथ को नहीं दोष गुसाई।

भारत का क्रिकेट संगठन दुनिया के अत्यंत अमीर खेल संगठनों में से एक है। उसके पास बैंक में करोड़ों रुपए का डिपॉजिट है। अत: उसे प्रायोजक की आवश्यकता ही नहीं है। सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, किरमानी, बिशनसिंह बेदी जैसे महान खिलाड़ियों के हाथ में क्रिकेट संगठन नहीं है। उस पर वे लोग कब्जा जमाए बैठे हैं, जिन्होंने कभी क्रिकेट खेला ही नहीं। हर चुनाव को हमने विकृत स्वरूप दे दिया है।

ज्ञातव्य है कि मुकुल आनंद ने अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म 'खुदा गवाह' बनाई थी। एक काबुलीवाला भारत में सजा काट रहा है। सहृदय जेलर उसे कुछ दिनों की छुट्‌टी देता है। वह काबुल लौटकर विवाह करता है और मधुरात्रि के बाद भारत लौटता है। उसने अपनी पत्नी को यह नहीं बताया कि उसे लौटना है। इस तरह मुकुल आनंद ने एक पठान से झूठ बुलवाया, जबकि पठान अपना कौल निभाने के लिए जाने जाते हैं।