क्रिस्टोफर नोलन: फिल्म विधा का जादूगर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 मई 2019
क्रिस्टोफर नोलन असाधारण और अछूते विषयों पर फिल्में बनाते हैं और बॉक्स ऑफिस पर भी उनकी फिल्में सफल होती हैं। मीडिया ने यह गलत धारणा पुख्ता कर दी है कि मसाला फिल्में ही चलती हैं, जबकि इतिहास गवाह है कि लीक से हटकर बनी फिल्में भी सफल रही हैं। मां द्वारा गुमराह पुत्र की हत्या दिखाने वाली फिल्म 'मदर इंडिया' को सबसे अधिक भारतीय दर्शकों ने देखा है। पिता-पुत्र द्वंद्व पर आधारित 'आवारा' को दुनिया के अनेक देशों में सराहा गया है और प्रदर्शन के 70 वर्ष बाद भी देश-विदेश के टेलीविजन पर फिल्म की मांग बनी हुई है। दिलीप कुमार द्वारा निर्मित 'गंगा जमुना' को अवधी भाषा में बनाया गया और क्लाइमैक्स में इंस्पेक्टर भाई अपने डकैत भाई को गोली मारता है। ज्ञातव्य है कि इंस्पेक्टर भाई का लालन-पालन और शिक्षा बड़े भाई द्वारा ही कराई गई थी।
क्रिस्टोफर नोलन का कैमरा किसी मनोचिकित्सक की तरह मनुष्य के अवचेतन की गहरी स्याह कंदराओं में जाकर सदियों पुराने कंकाल का परीक्षण करता है। उन्हें मांस-पेशियां प्रदान करके प्राणवान बनाता है और उनसे समय को पुनः परिभाषित करने की मांग करता है। याददाश्त भी उनका प्रिय विषय रहा है। वे अपनी पटकथाएं छोटे भाई जोनाथन के साथ मिलकर लिखते हैं। आज भी क्रिस्टोफर नोलन अपनी फिल्में सेल्यूलाॅयड पर ही शूट करते हैं। वे एकमात्र फिल्मकार हैं, जिन्होंने डिजिटल को नकारा है। उनका सृजन इस तरह का है कि उन्होंने फंतासी प्रेरित 'द डार्क नाइट' के तीन खंड बनाए हैं। उन्होंने अपनी फिल्म 'डनकर्क' में युद्ध को नए नजरिए से प्रस्तुत किया है। युद्ध कराए जाते हैं और बाजार की ताकतें ही उन्हें रचती हैं। क्रिस्टोफर नोलन ने लोकप्रियता की रचना का रहस्य भी अपनी फिल्म 'फॉलोविंग' में खोला है। उन्मादी भीड़ रची जाती है। यह सामूहिक सम्मोहन की विधा है। उन्होंने अपनी फिल्म 'इन्सेप्शन' में विभिन्न सदियों में पनपी मनोवृतियों को प्रस्तुत करने के लिए अभिनव दृश्य रचा। पात्र एक लिफ्ट में मंजिल दर मंजिल यात्रा कर रहे हैं और हर मंजिल पर एक सदी की झांकी देख रहे हैं। इतिहास उनका एक पात्र रहता है। उनकी फिल्म 'द प्रेस्टीज' जादूगर गुरु शिष्य की कथा है। शिष्य गुरु से ज्ञान अर्जित करके अपने स्वतंत्र तमाशे आयोजित करता है। उसने प्रचार तंत्र पर खूब मेहनत की है और उसे एक शस्त्र की तरह धार दी है। शिष्य गुरु से आगे निकलता हुआ चरितार्थ करता है कि गुरु तो गुड़ ही रह गए, शिष्य शकर बन गया परंतु इस प्रक्रिया में उसे अहंकार हो जाता है और गुरु का अपमान भी करता है।
कहावत है कि गुरु अपने प्रिय शिष्य को भी एक गुर नहीं सिखाता और उसे बचाकर रखता है। शिष्य को सब कुछ जान लेने का अहंकार हो जाता है। एक तमाशे के बाद परदा गिर जाने पर गुरु की हत्या हो जाती है और अदालत शिष्य को मृत्युदंड देती है। फांसी लगने के पूर्व शिष्य से एक व्यक्ति मिलने आता है। जेलर मरने वाले से मुलाकातों की सहूलियत देता है। यहां तक कि अमेरिका में फांसी के पूर्व की रात दंडित व्यक्ति अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ बिता सकता है। इस तरह का मिलन कैसा होता होगा? क्या आलिंगन डिजायर प्रेरित है या मृत्यु का साया मनुष्य को सुन्न कर देता है। क्या जिस्म की नदी के तल में पहले लिए गए सारे चुंबन जागकर त्वचा के किनारे आ जाते होंगे? चुंबन का क्षण ध्वनि बनकर जिस्म की घाटियों में गूंजता होगा? चिता की अग्नि में देह जलती हुई दिखती है, धुंआ आकाश की ओर जाकर अंतरिक्ष में देह का पुन: निर्माण कर देता है।
बहरहाल, फांसी पर चढ़ने वाले व्यक्ति को मिलने आने वाला व्यक्ति उसके कान में कहता है कि उसका गुरु मरा नहीं उसके मरने का स्वांग भी उसकी एक ट्रिक थी। वह कई मिनटों तक सांस रोककर मरने का अभिनय कर सकता था। शिष्य अविश्वास करता है तो गुरू अपना किया गया मेकअप उतारकर उसे दिखाता है। गुरु कहता है कि अब चंद मिनट बाद ही उसे फांसी के लिए तैयार किया जाएगा। अतः उसके द्वारा गुरु का सत्य उजागर करना प्रलाप माना जाएगा। गुरु का इस तरह शकर बने रहना ही शिष्य के लिए फांसी से अधिक कष्टकारी होगा। अब क्रिस्टोफर नोलन ने अपनी अगली फिल्म के लिए एक चरित्र भूमिका में डिंपल कपाड़िया खन्ना को चुना है। राज कपूर की 'बॉबी' क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म में दिखाई पड़ेगी। ज्ञातव्य है कि शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर के निमंत्रण पर क्रिस्टोफर नोलन मुंबई आए थे। यह संभावना है कि उस यात्रा में उन्होंने डिंपल खन्ना से मुलाकात की हो ।