क्रोमैटोग्राफी पेपर / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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तुम मेरे लिए क्या हो। इसका ठीक-ठीक जवाब तो नहीं है मेरे पास। लेकिन एक उदाहरण ज़रूर है समझ सको तो समझ लेना। कभी कैमिस्ट्री लैब में जाकर क्रोमैटोग्राफी पेपर देखना। सफेद झक पेपर पर काली स्याही की एक बून्द गिराना और फिर उसे पानी के बर्तन में डुबाना और देखना। धीरे-धीरे काली स्याही की बून्द कैसे कई रंगों में बदल जाती है। पहले चटख पीला और फिर संतरी और फिर एकदम लाल और फिर ज़रा देर में ही स्याह काला रंग अपना-अपना वजूद ही खो देता है।

कुछ ऐसी ही है तुम्हारी भूमिका मेरी ज़िन्दगी में।

सारी दुनिया के लिए मैं एक स्याह बूंद या स्याह लकीर ही तो हूँ। जिसका कोई रंग नहीं रूप नहीं, कोई आकर्षण नहीं। स्याह रंग भला किसको भाता है सब दु: ख-दर्द अपने में समेटे जैसे कोई अमावस, जो चमकते चांद को भी ढंक लेती है।

लेकिन कौन जानता है काले रंग के भीतर के रंग तुम्हारे सिवा।

तुम मेरे लिए भीगा हुआ क्रोमैटोग्राफी पेपर हो। जिस पर मैं एक स्याह चिह्न हूँ। तुमसे मिलते ही मेरे भीतर के सभी पीले, संतरी और लाल रंग फैलना शुरू हो जाते हैं। कौन जान सकेगा कभी, भला काले रंग के भीतर इतने सुन्दर रंग छिपे होते हैं।

ऐसा ही होता है प्रेम, जब तक वह आपको नहीं छूता आप एक रंग में ही रंगे होते हैं और उसके छूते ही आप अपने सभी रंगों के साथ पूर्ण होते हैं। ऐसे रंग उजागर होते हैं जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हाँ लेकिन खुद के अस्तित्व को मिटा देना होता है, भूल जाना होता है असली रंग को। अपने ढंग को।

तो तुम मेरे लिए क्रोमैटोग्राफी पेपर हो समझे अब?