क्रौंच–वध / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Gadya Kosh से
कहीं से एक बाण तेजी से आया और आकाश में उड़ते क्रौंच पक्षी को जा लगा।
मँडराता हुआ क्रौंच धीरे–धीरे ज़मीन पर उतर आया और पीड़ा से छटपटाकर मूर्च्छित हो गया।
वृक्ष के नीचे बैठा निषाद यह दृश्य देख रहा था। उसने दौड़कर क्रौंच को गोद में उठा लिया।
पास में बहती तमसा के शीतल जल से उसका घाव धोया और अपनी पगड़ी का छोर फाड़कर पट्टी बांध दी। क्रौंच की चेतना लौट आई। पीड़ा अचानक गायब हो गई।
निषाद को पास में देखकर क्रौंच भौचक्का रह गया–
‘‘क्या तुमने ही मुझे बचाया है?’’
‘‘हाँ,मैंने ही तुम्हें बचाया है।’’ निषाद बोला।
‘‘लेकिन यह कृपा किसलिए.....?’’
‘‘मैं नहीं चाहता कि कोई बाल्मीकि तुम्हें छटपटाता हुआ देखकर महाकाव्य रचे। मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगा।’’ निषाद ने दृढ़तापूर्वक कहा