क्वीन कंगना की झांसी विजय / जयप्रकाश चौकसे

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क्वीन कंगना की झांसी विजय
प्रकाशन तिथि : 26 जनवरी 2019


जी स्टूडियो के पूंजी निवेश से बनाई गई कंगना रनौट अभिनीत फिल्म 'मणिकर्णिका' इतनी रोचक है कि परदे से एक क्षण के लिए भी निगाहें नहीं हटतीं। दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देने वाली इस फिल्म के गीत एवं संवाद प्रसून जोशी ने लिखे हैं और हर शब्द जैसे एक अंगार हो और दर्शक को 'सूरज निगलने के लिए' प्रेरित करता है। फिल्म निर्माण के हर भाग में तमाम तकनीशियनों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ फिल्म को दिया है। यह अत्यंत गौरव की बात है कि फिल्म के सभी पात्रों की पोशाक खादी से बनाई गई हैं और यह फिल्म इस तरह महात्मा गांधी से भी रिश्ता जोड़कर एक सच्ची स्वदेशी फिल्म बन जाती है। कंगना रनौट का निर्देशन और अभिनय प्रशंसा करने योग्य है। गुणवत्ता के प्रति उनका आग्रह ज़िद की सीमा भी पार कर जाता है। 'तनु वेड्स मनु' के बाद कंगना रनौट ने अमेरिका जाकर फिल्म प्रशिक्षण का एक सत्र पूरा किया और उनकी यह फिल्म हॉलीवुड में बनी फिल्मों के समकक्ष बन पड़ी है। कंगना रनौट परिभाषाओं के परे जाकर अपना स्थान बनाती हैं और उन पर फिल्म उद्योग गर्व कर सकता है। जी समूह को सलाम, जिसने सारे साधन जुटाए। इस विषय पर इतिहास प्रेरित गल्प रचने के लिए प्रसिद्ध सोहराब मोदी अपना हाथ आजमा चुके हैं परंतु उनकी पत्नी मेहताब के कमजोर अभियन के कारण सोहराब मोदी की कंपनी का दहाड़ता शेर कुछ समय खामोश हो गया था और हमेशा की तरह शायर गालिब पर फिल्म बनाकर वे संकट से बाहर आए थे। कविता ही जीवन संग्राम में सबसे बड़ा संबल है।

गंगा के तट पर ब्राह्मण परिवार में जन्मी मणिकर्णिका ने युद्ध क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए। भारत के हर कालखंड में जयचंद हुए हैं और झांसी की रानी को अंग्रेज पराजित कर पाए झांसी के ही एक जयचंद की सहायता से। फिल्म के एक हिस्से में अंग्रेज अफसर एक मंदिर के पीछे से वार करता है। उसे पूरा विश्वास है कि रानी की तोपें मंदिर की ओर आग नहीं उगल पाएंगी परंतु रानी चारों ओर से आक्रमण करके दुश्मन के मंसूबों पर पानी फेर देती हैं। यह पूरा प्रसंग ही आज राजनीति पर भी प्रकाश डालता है। इस तरह विगत को वर्तमान से जोड़ना प्रशंसनीय काम है। अंग्रेज अधिकारी ने यह स्वीकार किया था कि रानी लक्ष्मीबाई एक विलक्षण योद्धा रही हैं। ग्वालियर के इतिहास को भी झांसी की रानी स्पर्श करती हैं। फिल्म में देशप्रेम की हुंकार कहीं भी खोखली ध्वनित नहीं होती बल्कि तोपों की गूंज पर भारी पड़ती है। फिल्मकार पूरे ढाई घंटे तक दर्शक को बांधे रखता है। फिल्म के युद्ध दृश्य भी बड़ी विश्वसनीयता से प्रस्तुत किए गए हैं। विकसित फिल्म टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया गया है। फिल्म का पार्श्व संगीत फिल्म के दृश्य विधान को धार प्रदान करता है। एक और दौर में 'स्लमडॉग मिलेनियर' के रहमान के रचे गीत 'जय हो' की बहुत प्रशंसा हुई है परंतु कंगना की फिल्म में प्रसून जोशी के गीत उससे बेहतर बन पड़े हैं। 'मैं रहूं या न रहूं भारत ये रहना चाहिए' अत्यंत प्रेरक हैं। यहां उस भारत की बात नहीं की जा रही है, जो अमेरिका की भोंडी नकल हो वरन् उस भारत की बात की जा रही है, जो विविधता के साथ अपनी असली ऊर्जा के साथ उभरता है और बार-बार अपनों के द्वारा दबाए व धोखा दिए जाने के बाद भी बना रहता है। फिल्म में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि अंग्रेजों ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद भी यह महूसस किया कि वे भीतर आहत हुए हैं और स्वयं को पराजित-सा महसूस कर रहे हैं। फिल्म में एक संवाद का आशय यह भी है कि देश केवल एक भूखंड नहीं होता, वह वहां के आम आदमी का आत्मविश्वास है और सिर उठाकर जीने मरने की कला का नाम है। भारतीय राजनीति के एक दौर में कहा जाता था कि इंदिरा गांधी अपनी कैबिनेट की एकमात्र मर्द हैं, कुछ इस तरह यह कहा जा सकता है कि 'क्वीन' कंगना रनोट भी फिल्मकारों की जमात में एकमात्र मर्द हैं। यह अतिशयोक्ति केवल उसके आत्मविश्वास और जीत के लिए जिद को आदर देने के लिए लिखी जा रही है। यह फिल्म संजय लीला भंसाली को भी सबक सिखाती है कि चमक-धमक के साथ सार्थकता का निर्वाह कैसे किया जा सकता है।