खबर / कविता वर्मा
चार साल की मासूम से बलात्कार खबर, देखते ही मन कसैला हो गया.
दीदी दरवाजा लगा लो, बाई ने जाते हुए आवाज़ दी तो टीवी के सामने से उठना ही पड़ा.बाहर आते हुए बिटिया के कमरे में नज़र गयी वो अपनी किताबों में सर झुकाए बैठी थी.
बाहर ठंडी हवा के झोंकों ने रोक लिया तो वह वहीं झूले पे बैठ गयी. सामने चौकीदार के बच्चे बबूल के पेड़ पर टायर का झूला बाँध कर झूल रहे थे. उनके उस झूले पर झूलने की किलक उन्हें अनमोल खजाना मिलने की खुशी बरसा रही थी. तभी एक हाथ में एक लकडी पकडे साइकिल के टायर के साथ दौड़ते एक बच्चे ने उनके मन को दौडा कर उस छोटे से गाँव की गलियों में पहुँचा दिया. कच्ची सड़क पर नदी पहाड़ खेलता लड़कियों का वो झुंड , खेलते खेलते गाँव की सीमा पर पहुँच जाया करता था, वहाँ कबड्डी खेलते लड़कों को देखते अपना खेल भूल कर उनके खेल के जोश में शामिल हो जाता था. कभी खेलते खेलते नदी तक पहुँच कर शिव मन्दिर में जंगली फूल चढ़ा कर पास होने से ले कर नयी ड्रेस मिलने की और सहेली की दीदी की शादी तक की मन्नत माँग ली जाती थी. न घर जाने की जल्दी होती थी न चिंता . कभी मन करता तो कंचे छुपा कर नदी तक लाये जाते और वहीं खेले जाते .गाँव में उन्हें कंचे खेलते देख लड़कों का झुंड इकठ्ठा हो जाता और उनके अनाडीपन का खूब मजाक बनाया जाता. एक मीठी सी मुस्कराहट उनके होंठों पर फैल गयी और उनकी तंद्रा टूटी.
उठ कर अन्दर आयी बिटिया अभी पढ़ रही थी उसे देख कर उन्हें अपने बचपन की सुहानी यादों पर ग्लानी होने लगी। अभी थोडी देर पहले ही तो उन्होंने उसे बाहर खेलने जाने को मना किया था आज की ख़बर देखते देखते.