खबर / गोवर्धन यादव
शहर के बाहर एक नया मोहल्ला आबाद हो रहा था, जिसका नाम फ़ोकटनगर रखा गया था, उसमें कई गरीब-बेसहारा लोगों ने अपनी-अपनी झोपडियाँ बना ली थी, इसी फ़ोकटनगर में एक गरीब आदमी ने भी अपनी झोपडी बना ली, वह और उसकी जवान बेटी शहर में जाते और जो भी काम मिलता, खुशी-खुशी करते और किसी तरह अपना जीवन यापन करते
एक दिन अख़बार में यह ख़बर प्रकाशित हुई कि उस आदमी ने अपनी जवान बेटी को किसी शहर में जाकर बेच दिया है, अख़बार पढकर लोग उसकी झोपडी पर इकठ्ठा होने लगे और इस कृत्य के लिए उसे भला-बुरा कहने लगे
सारे लोगों की जली-कटी बातें सुन चुकने के बाद उसने हाथ जोडकर कहा-"अगर मैं अपनी बेटी को न बेचता तो तीन छोटे-छोटॆ बच्चे भूख में तडप-तडप कर मर जाते, भाइयों-हमारी गिनती नीच जात में आती है, यह जानने के बाद कोई न तो हमें काम देता है और न ही देहरी पर खडॆ होने देता है, भगवान ने हमे हाथ तो दे रखा है लेकिन हाथॊं के लिए हमारे पास कोई काम नहीं है, जब काम नहीं है तो पैसा कहाँ से आएगा और जब पैसा नहीं है तो अनाज कहाँ से आएगा, जब अनाज नहीं होगा तो पेट में धधक रही अग्नि को कैसे शांत कर सकेंगे, फ़ूल-सी सुकुमार बच्ची को बेच देने का दुख तो मुझे भी है, लेकिन इसके अलावा और कोई चारा भी तो मेरे पास नहीं था,"
इतना कह कर वह फ़बक कर रो पडा था और प्रश्न दागने वाले लोग, अपने-अपने घरों में जाकर दुबक गए थे।