खरबूजा/ सुकेश साहनी
बड़े साहब आफिस से घर लौटे तो काफी थके हुए लग रहे थे। चपरासी ने उनके सूटकेस के साथ-साथ एक पुराना टू इन वन और प्रेशर कुकर भी भीतर रखा तो मेम साहब चौंक पड़ीं।
“ये सब किसका है?” उन्होंने साहब से पूछा ।
“वही---चीफ साहब,” वे चिढ़कर बोले, “मीटिंग के बाद चलने लगा तो बोले-हमारा टू इन वन और प्रेशर कुकर कई दिनों से खराब पड़ा है, तुम्हारे शहर में अच्छी दुकानें हैं, रिपेयर कराकर भेज देना।”
“अपना टेप रिकार्डर भी महीनों से खराब पड़ा है, उसे भी साथ भेजना न भूलिएगा,” मेम साहब ने कहा,---“हाँ, याद आया, राम खिलावन पर सख्ती कीजिए---चोरी करने लगा है।”
“मैं आज विरमानी स्टोर्स गई थी, मैंने बातों ही बातों में उससे कहा कि मिक्सी की मरम्मत के बहुत पैसे ले लिये। तब उसने मुझे बताया कि राम खिलावन ने ही वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे।”
“राम खिलावन!” बड़े साहब ने सख्त आवाज़ में कहा, “कब से कर रहे हो चोरी?”
“मैं कुछ समझा नहीं, हुजूर!” वह बिना घबड़ाए बोला।
“विरमानी कह रहा था, तुमने उस ट्यूब लाइट वाले वाउचर में कुछ रुपए बढ़वाए थे?
”
“अच्छा, वो” राम खिलावन ने कहा, “आपने उस दिन शाम को मिक्सी रिपेयर करवाने को दी थी, स्टोर बद हो चुका था इसलिए मैं मिक्सी घर ले गया था। हुजूर! मेरी घरवाली थोड़ी तेज है, पूछने लगी-यह क्या है,किसका है। मुझे ‘सबकुछ’ बताना पड़ा। बस, फिर क्या था, पीछे पड़ गई । कहने लगी-साहब लोग द्फ्तर के खर्चे से न जाने क्या-क्या घर ले जाते हैं, मुझे भी एक सिलबट्टा चाहिए। हुजूर आपकी मिक्सी रिपेयर के वाउचर में उसी सिलबट्टे के लिए कुछ रुपए बढ़वाए थे।” राम खिलावन ने रुककर बारी-बारी से साहब और मेम साहब की ओर देखा, फिर ढिठाई से बोला, “इसे चोरी तो नहीं कहेंगे, साहब!”
“तू बहुत बातें बनाने लगा है। चल जा, काम कर्।” इस बार बड़े साहब की आवाज़ खोखली थी।
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