खलनायक नहीं, नायक हूं मैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :09 नवम्बर 2017
शंकर की रजनीकांत अभिनीत '2.0' में अक्षय कुमार खलनायक की भूमिका निभा रहे हैं और उनकी अपनी 'पैडमैन' में वे नायक की भूमिका में नज़र आएंगे। अब दुविधा यह है कि पहले किस फिल्म का प्रदर्शन करें। अगर वे शंकर की '2.0' के प्रदर्शन के बाद खलनायक की छवि में अत्यंत प्रभावोत्पादक रहे तो उन्हें 'पैडमैन' देखकर निराशा होगी। शंकर का सिनेमा अतिरेक का सिनेमा होता है, जिसमें एक गोली से पात्र को नहीं मारते हुए उस पर दस मशीनगनों से हजारों गोलियां दागी जाती हैं। जहां मुंबई का फिल्मकार दो-चार कारें दुर्घटनाग्रस्त करता है वहां शंकर दो सौ कारों को तोड़ने का दृश्य शूट करते हैं।
'बाहुबली' के प्रदर्शन के पूर्व शंकर ही दक्षिण के सबसे बड़े शो मैन माने जाते थे परंतु एसएस राजामौली ने अपनी फिल्म को तर्कहीनता के ऐसे भव्य उत्सव की तरह रचा कि उसने बॉक्स ऑफिस पर नया इतिहास रच दिया। सहमे हुए शंकर ने '2.0' के द्वारा अपना स्थान बनाए रखने के लिए फिल्म पर चार सौ करोड़ का खर्च कर दिया अर्थात प्रिंट व प्रचार इत्यादि का खर्च मिलाकर 600 करोड़ का व्यवसाय करने पर ही लागत निकलेगी।
शंकर ने मुंहमांगा धन देकर अक्षय कुमार को खलनायक अभिनीत करने के लिए राजी किया है। शंकर की फिल्म में विशेष प्रभाव वाले दृश्यों को जमाने के लिए लंबा वक्त लगता है। इस तरह के दृश्य कैमरे से नहीं शूट किये जाते वरन् वे संपादन टेबल और प्रयोगशाला में रचे जाते हैं। सिनेमा के माध्यम और जादूगर के तमाशे में कोई अंतर नहीं रह जाता। सिनेमा के प्रथम प्रदर्शन पर मौजूद जादूगर जॉर्ज मेलिए ने सिनेमा माध्यम की मदद से अपने जादू के तमाशे को रोचक बनाया और जादू की ट्रिक्स का इस्तेमाल फिल्म बनाने में किया। आज एसएस राजामौली और शंकर के सिनेमा को सफल होते देख स्वर्ग में जॉर्ज मेलिए चार्ली चैपलिन को ठेंगा दिखा रहे होंगे कि मानवीय कमजोरियों और ताकत का सिनेमा हाशिये में धकेल दिया गया है। चार्ली चैपलिन के साथ खड़े राज कपूर, ऋषिकेश मुखर्जी और अमिया चक्रवर्ती परेशान नज़र आ रहे होंगे और मानवीय करुणा के गायक फिल्मकार सत्यजीत रे भी कातर दृष्टि से सिनेमा का यह हश्र देख रहे होंगे। यह विचारणीय है कि सदियों से प्रचलित कहावत 'यथा राजा तथा प्रजा' आज ट्रम्प के दौर में सत्य सिद्ध हो रही है। इस दौर में तमाम राजाओं का सनकीपन ही सारे व्यापार और कलाओं को प्रभावित कर रहा है। चार्ली चैपलिन व सत्यजीत रे की तरह के फिल्मकारों का दुबारा आगमन नहीं होता परंतु जॉर्ज मेलिए बार-बार लौट आते हैं। यह हमारी अवतारवादी धारणा का ही एक अलग रूप है।
बहरहाल, अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' और शंकर की '2.0' जनवरी माह में प्रदर्शित होंगी। यह संभव है कि अक्षय कुमार अपनी घरेलू फिल्म 'पैडमैन' को यकायक पूर्व निर्धारित समय के पहले ही प्रदर्शित कर दें। इस बाजार के दौर में सितारे को व्यापारी और जादूगर दोनों बनना पड़ता है। सारा प्रकरण शतरंज की बिसात की तरह हो गया है, जहां मोहरों की भिड़ंत जारी है। इस रूपक में आम दर्शक इस शतरंज की बिसात पर पैदल प्यादे की हैसियत में धकेल दिया गया है। ज्ञातव्य है कि शतरंज के प्यादे मात्र एक घर ही चल सकते हैं, जबकि सत्ता का ऊंट न केवल ढाई घर चलता है वरन् कतार छोड़कर कहीं भी घुस सकता है।
अक्षय कुमार तीनों खान सितारों से अधिक धन कमा रहे हैं, क्योंकि हर वर्ष वे तीन या चार फिल्में बना रहे हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण की शैली बदल दी है। अब निर्माता को उनका काम अधिकतम चालीस दिन की शूटिंग में पूरा करना पड़ता है। वे नियत समय से पहले स्टूडियो पहुंचते हैं और उनके साथ चमचों का कोई दल भी नहीं होता। किसी तरह की फिजूलखर्जी वे नहीं करने देते। इस दृष्टिकोण से काम करने से अनुशासन आता है और लाभ भी बहुत होता है परंतु सिनेमा के कला स्वरूप को हानि होती है। समर्पित फिल्मकार एक सही शॉट के लिए घंटों इंतजार करता है। राज कपूर अपनी यूनिट के साथ उदगमंडलम में कई दिन इंतजार करते रहे। उनका आकल्पन था कि फौज द्वारा घेरे जाने की बात जानते ही डाकू दल अपने को अंधेरे में खड़ा पाता है और फौज रोशनी में है। सत्यजीत रे ने पाथेर पंचाली में बड़े कष्ट उठाकर पीपल के पत्तों से छनकर आने वाली रोशनी में अपने पात्रों को लेटे हुए शूट किया था। उन्होंन संपादन में इसे हटा दिया, क्योंकि यह भूख को आभा मंडित करने की तरह देखा जा सकता था। इस दौर में तो चलती का नाम गाड़ी है और चलते रहने का भ्रम रचना हुक्मरानों का काम है। क्या कभी शतरंज का नियम बदलेगा और प्यादा ढाई घर चलकर ऊंट को मार सकेगा? फिल्में भी क्रिकेट की तरह पांच दिवसीय टेस्ट व बीस ओवर का सीमित खेल हो सकती हैं।