खलील जिब्रान की लघुकथाएँ / प्रदीप मोघे
- ख़लील जिब्रान की लघुकथाएँ
खलील जिब्रान की अधिकतर लघुकथाएँ ‘दि मैडमैन’, ‘दि फॉरनर’, ‘दि वांडर’ एवं ‘सन एण्ड फोम’ इन चार संग्रहों में समाहित हैं। इन सभी पुस्तकों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में समय–समय पर अनुवाद होता रहा है। मराठी में काका कालेलकर, वि.स.खंडेकर, रं.ग. जोशी, श्रीपाद जोशी आदि। उर्दू में बशीर, गुजराती में शिवम सुन्दरम और हिन्दी में किशोरी रमण टंडन और हरिकृष्ण प्रेमी आदि। इन सभी लेखकों ने अपनी सोच एवं उद्देश्य को लेकर यह अनुवाद कार्य किया है।
हिन्दी भाषा में जिब्रान की लघुकथाओं के जितने भी अनुवाद हुए हैं, उनमें अपवाद को छोड़कर कोई भी अनुवादक/रूपान्तरकार इन अर्थपूर्ण लघुकथाओं के साथ पूर्ण न्याय नहीं कर सका है। इस पृष्ठभूमि में सुकेश साहनी द्वारा किया गया अनुवाद अधिक सरस और पठनीय है। किसी भी अक्षर साहित्य का हूबहू अनुवाद असम्भव होता है।
फिर भी ऐसी कालजयी रचनाओं की आत्मा को पहचानकर उसके शिल्प–सौन्दर्य को अनुवाद की भाषा में प्रस्तुत करना एक समर्थ लेखक के लिए एक अग्निपरीक्षा होती है। जिब्रान की लघुकथाओं का हिन्दी भाषा में सटीक एवं सरस अनुवाद कर सुकेश साहनी ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
जिब्रान की मूलत : अंग्रेजी में लिखी लघुकथाओं का अनुवाद उनके समक्ष ही उनकी मातृभाषा अरबी में हो चुका था। अरबी अनुवाद से अनुवादकों ने उर्दू में बेहतरीन तजुर्मान किए हैं। संस्कृत के विशेष नामों की तरह ही अरबी के विशेषनामों का शुद्ध रूप अंग्रेजी भाषा के माध्यम से हमेशा ठीक से समझा जा सकता है, कहना कठिन हैं। कई लघुकथाओं में जिब्रान द्वारा प्रयुक्त संज्ञाएँ बड़ी अर्थपूर्ण हैं।
सुकेश साहनी ने अपने इस अनुवाद में इन संज्ञाओं के अभिप्रेत अर्थ को बखूबी समझा है और यही इस पुस्तक की विशेषता है।
पुस्तक की भूमिका में सुकेश साहनी ने जिब्रान की लघुकथाओं को छह वर्गों में विभाजित किया है। वस्तुत : जिब्रान की हर कथा आपसे रूबरू वार्तालाप करती है। ऐसी दशा में इस तरह का वर्गीकरण केवल माँग की दृष्टि से ठीक हो सकता है परन्तु यह पाठक की सोच–क्षमता पर अकारण ही प्रश्नचिहृ लगाता है। जिब्रान की इन लघुकथाओं का मूल स्वर बनाए रखने के लिए अनुवादक ने शीर्षकों में स्वविवेक से कुछ परिवर्तन किए जाने की बात कही है। इस प्रकार के परिवर्तन में एक जोखिम भी रहता है। चूँकि जिब्रान की कथाओं के शीर्षकों में ही कथा के मूड का पता चलता है, अत : शीर्षक बदलते समय कथा की आत्मा खंडित न हो, यह सावधानी बरतना आवश्यक हो जाता है। एक–दो अपवादों को छोड़कर सुकेश के दिए नए शीर्षक कथा के साथ न्याय करते हैं। सुकेश साहनी का यह साहस उनके ख़्लील जिब्रान की लघुकथाओं के साथ तन्मयता से एकरूप होने का परिचायक हैं।
- कथाकार :प्रदीप मोघे