ख़ुद को बचा पाने का संघर्ष: नवधा काव्य -संग्रह / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्रवाह के आगे आने वाली शिलाओं पर उछलते-कूदते, फलाँगते, घाटियों में गाते-टकराते नदी बहती जाती है। जीवन इसी नदी का नाम है, जो सुख-दुःख के दो किनारों के बीच बहती है। जब ये अनुभूतियाँ शब्दों में उतरती हैं, तो साहित्य का रूप ले लेती हैं। डॉ. जेन्नी शबनम का बृहद् काव्य-संग्रह 'नवधा' जीवन की उसी यात्रा में नव द्वारों के माध्यम से प्रस्तुत की गई व्याख्या है।
यह काव्य-संग्रह एक स्त्री के उस संघर्ष की कथा है, जो अपने वजूद की तलाश में है, जो सिर्फ़ एक स्त्री बनकर जीना चाहती है। ये अनुभूतियाँ: 1. हाइकु, 2. हाइगा, 3. ताँका, 4. सेदोका, 5. चोका, 6. माहिया, 7. अनुबन्ध, 8. क्षणिकाएँ और 9. मुक्तावलि खण्डों में काव्य की विभिन्न शैलियों में अभिव्यक्त हुई हैं। जेन्नी शबनम का रचना-संसार किसी बाध्यता का नहीं; बल्कि अनुभूति के गहन उद्वेलन का काव्य है। काव्य की भारतीय और जापानी शैलियों पर आपका पूरा अधिकार है।
हाइकु जैसी आकारगत छोटी-सी विधा में अपने जीवन के अनुभूत सत्य-प्रेम को 'साँकल' कहा है, वह भी अदृश्य-
प्रेम बन्धन / न रस्सी न साँकल / पर अटूट।
लेकिन जो मनोरोगी होगा, वह इस प्रेम को कभी नहीं समझेगा, ख़ुद भी रोएगा और दूसरों को भी आजीवन रुलाता रहेगा-
मन का रोगी / भेद न समझता / रोता-रुलाता।
जीवन के विभिन्न रंगों की छटा हाइकु-खण्ड में दिखाई देती है। कोई डूब जाए, तो नदी निरपराध होने पर भी व्यथित हो जाती है-
डूबा जो कोई / निरपराध नदी / फूटके रोई।
हाइगा तो है ही चित्र और काव्य का संयोग। सूरज के झाँकने का एक बिम्ब देखिए-
सूरज झाँका / सागर की आँखों में / रूप सुहाना।
क्षितिज पर बादल और सागर का एकाकार होना, गहन प्रेम का प्रतीक होने के साथ मानवीकरण की उत्कृष्ट प्रस्तुति है-
क्षितिज पर / बादल व सागर / आलिंगन में।
पाँव चूमने। लहरें दौड़ी आईं / मैं सकुचाई।
ताँका के माध्यम से आप शब्द की शक्ति का प्रभाव इंगित करती हैं। सरल, सहज शब्दावली यदि अभिव्यक्ति की विशेषता है, तो उत्तेजना में कही बात एक लकीर छोड़ जाती है। कवयित्री कहती है-
सरल शब्द / सहज अभिव्यक्ति / भाव गम्भीर, / उत्तेजित भाषण / खरोंच की लकीर।
शब्दों के शूल / कर देते छलनी / कोमल मन, / निरर्थक जतन / अपने होते दूर।
सेदोका 5-7-7 के कतौता की दो अधूरी कविताओं की पूर्णता का नाम है। दो कतौता मिलकर एक सेदोका बनाते हैं। अगस्त 2012 के 'अलसाई चाँदनी' सम्पादित सेदोका-संग्रह से जेन्नी शबनम जी ने तब भी और आज भी इस शैली की गरिमा बढ़ाई है। एक उदाहरण-
दिल बेज़ार / रो-रोकर पूछता- / क्यों बनी ये दुनिया? / ऐसी दुनिया- / जहाँ नहीं अपना / रोज़ तोड़े सपना।
चोका 5-7... अन्त में 7-7 के क्रम में विषम पंक्तियों की कविता है। जेन्नी जी की इन कविताओं में जीवन को गुदगुदाते-रुलाते सभी पलों का मार्मिक चित्र मिलता है। सुहाने पल, नया घोसला, अतीत के जो पन्ने, वक़्त की मर्ज़ी-ये सभी चोका भाव-वैविध्य के कारण आकर्षित करते हैं।
माहिया गेय छन्द है, जिसमें द्विकल (2 या 1+1=2) की सावधानी और 12-10-12 की मात्राओं का संयोजन करने पर इसकी गेयता खण्डित नहीं होती। ये माहिया मन को गुदगुदा जाते हैं-
तुम सब कुछ जीवन में / मिल न सकूँ फिर भी / रहते मेरे मन में।
हर बाट छलावा है / चलना ही होगा / पग-पग पर लावा है।
'अनुबन्ध' खण्ड की ये पंक्तियाँ गहरा प्रभाव छोड़ती हैं-
"ज़ख़्म गहरा देते हो हर मुलाक़ात के बाद / और फिर भी मिलने की गुज़ारिश करते हो।"
क्षणिकाओं में-औरत, पिछली रोटी, स्वाद चख लिया, मेरा घर, स्टैचू बोल दे; मुक्तावलि की कविताओं में-परवरिश, दड़बा और तकरार हृदयस्पर्शी हैं। इनमें जीवन-संघर्ष और अन्तर्द्वन्द्व को सफलतापूर्व अभिव्यक्त किया है।
जेन्नी जी का यह काव्य-संग्रह पाठकों को उद्वेलित करेगा, तो रससिक्त भी करेगा, ऐसी आशा है।
14.01.2023-ब्रम्पटन