खाई के पान बनारस वाला... / जयप्रकाश चौकसे

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खाई के पान बनारस वाला...
प्रकाशन तिथि : 05 मई 2014


अमिताभ बच्चन अभिनीत 'डॉन' में कल्याणजी आनंदजी का गीत 'खाई के पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला' अत्यंत लोकप्रिय हुआ था और आजकल बनारस चुनावी जंग के कारण सुर्खियों में बना हुआ है। फिल्म में इस गीत के लिए जाने की कहानी मजेदार है। ज्ञातव्य है कि यह फिल्म कैमरामैन नारीमन ईरानी ने प्रारंभ की थी परंतु पूरी होने के पहले एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई तो फिल्म के लेखक सलीम खान ने फिल्म पूरी करने का उतरदायित्व लिया। उन दिनों सलीम-जावेद मनोज कुमार की 'क्रांति' लिख रहे थे और उसी के सेट पर एक दीवार गिरने के कारण नारीमन साहब की मृत्यु हुई थी। सलीम खान ने मृत्यु के चौथे दिन फिल्म की रुकी हुई शूटिंग प्रारंभ की ताकि पूंजी निवेशकों और वितरकों में घबराहट पैदा नहीं हो।

शूटिंग के बाद सारा संपादन का कार्य सलीम साहब ने पूरा कराया और फिल्म मनोज कुमार को दिखाई। यह मनोज कुमार का सुझाव था कि फिल्म के एक हिस्से में लगातार भाग-दौड़ के दृश्य हैं और दर्शक इनसे तंग आ सकता है, अत: इसके बीच कहीं एक गाना डालने से दर्शक को राहत की सांस लेने का अवसर मिलेगा तथा फिल्म का मनोरंजन मूल्य बढ़ेगा। यह बात लोगों ने पसंद की और सलीम साहब कल्याणजी के घर पहुंचे।

उन्हें पूरा दृश्य बताया और गाने की आवश्यकता तथा मिजाज की बात विस्तार से बताई। आनंदजी ने याद दिलाया की देव आनंद अभिनीत 'बनारसी बाबू' के लिए बनाया एक गीत विलायती मिजाज वाले देवआनंद ने गीत के देशी ठाठ के कारण अस्वीकृत किया था। जैसे ही 'खाइके पान' सलीम साहब ने सुना, उन्होंने उसका चयन कर लिया परंतु कल्याणजी भाई का कहना था कि एक गीत एक ही बार सुनकर पसंद न करें, कुछ और धुनें सुन लें। सलीम साहब के एतराज की परवाह नहीं करके, काम के प्रति अपने समर्पण के कारण कल्याणजी भाई ने कुछ और धुनें सुनाईं। सलीम साहब को उन्हें रोकने में कठिनाई महसूस हो रही थी यद्यपि कोई धुन उन्हें 'खाइके' के मुकाबले की नहीं लगी। किसी काम से कल्याणजी बाहर गए तो आनंदजी ने सलीम साहब से कहा कि आप थोड़े सब्र से कुछ और धुनें सुन लें, कल्याणजी भाई किसी काम से आसानी से संतुष्ट नहीं होते परंतु आप उन्हें सुन-सुन कर थका दीजिए तो वे स्वयं 'खाइके पान' बजाने लगेंगे और यही हुआ। उस दिन के बाद से सलीम साहब ने कुछ उकता जाने को धैर्य से सहने के लिए 'इसे थका दो' कोड वाक्य की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

बहरहाल अमिताभ बच्चन ने इस गीत को बखूबी प्रस्तुत किया। प्रदर्शन पूर्व फिल्म का बजट उस राशि से कही अधिक हो गया था जितना धन वितरकों से आना था। पूंजी निवेशक का ब्याज भी बढ़ गया था। सलीम साहब ने सबकी एक मीटिंग बुलाई और वितरकों से कीमत बढ़ाने को कहा तथा पूंजी निवेशक से ब्याज कम करने को कहा, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि नारीमन ईरानी की पत्नी और बच्चों पर प्रदर्शन के समय और बाद में कोई कर्ज रहे। काफी जद्दोजहद के बाद सलीम खान सफल रहे और फिल्म इतनी अधिक सफल रही कि दाम बढ़ाने के बाद भी वितरकों ने खूब धन कमाया। इस काम में सलीम साहब के प्रयास के साथ ही 'खाइके पान' गीत को भी श्रेय दिया जाना चाहिए और गौरतलब यह है कि सलीम साहब अपनी लिखी फिल्म का पूरा उतरदायित्व भी वहन करते थे।

बनारस पर हजारों किस्से हैं परंतु इस लेख की सीमा में यह बताना जरूरी है कि स्वर्गीय बिस्मिला खान साहब से अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने आग्रह किया कि कुछ वर्ष विद्यालय परिसर में रहकर शहनाई वादन की शिक्षा दें और उन्हें यह भी कहा गया कि उनकी सृजन ऊर्जा बनारस में बाबा विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में रियाज करने से आती थी तो वे उनके बंगले के पास ही बनारस का घाट जैसा वातावरण भी तैयार कर देंगे। असीमित खर्च करना और मेहनताना देने की इच्छा थी उन अमेरिकन मेजबानों की। खान साहब ने कहा कि वे मानते हैं कि बंगला और घाट का निर्माण हूबहू बना देंगे वे लोग परंतु खान साहब की गंगा कहां से लाएंगे। इतना कहकर वे भारत लौट आए। यह भारत की गंगा यमुना संस्कृति है जिसमें हिन्दू-मुस्लिम सभी का योगदान है। आज बिस्मिला खान साहब की गंगा के घाट पर उनकी प्रिय संस्कृति संकट में है, वहां भीषण सत्ता युद्ध हो रहा है। शहनाई से विवाह अवसर की धुन बजाई जाती है तो मातम भी अभिव्यक्त किया जा सकता है। शहनाई ऐसा अनूठा वाद्ययंत्र है। आज जीवन मूल्यों के पतन के दौर में 'तूती की आवाज' कौन सुनना चाहता है।