खानाबदोश कलाकार की आखिरी सराय / जयप्रकाश चौकसे

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खानाबदोश कलाकार की आखिरी सराय
प्रकाशन तिथि :19 नवम्बर 2015


सईद जाफरी का जन्म पंजाब में हुआ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्होंने इतिहास का अध्ययन किया परंतु भूगोल का ज्ञान उन्होंने सारी दुनिया देखकर प्राप्त किया। पंजाब के पिंड से वॉया इलाहाबाद गोयाकि गंगा से थेम्स (लंदन) और वोल्गा (मास्को) तक के सफर के साथ अमेरिका इत्यादि अनेक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया परंतु हर देश में उन्हें भारतीय कलाकार ही माना गया, जो अंग्रेजी ऐसे बोलता था मानो ऑक्सफोर्ड में ही जन्म हुआ हो। इस यायावर अर्थात खानाबदोश ने कभी स्थायी पता नहीं रखा, क्योंकि उसके लिए पूरी दुनिया ही रंगमंच थी या सराय की तरह रही जहां वह कुछ समय बिताता था। उनकी यायावरी प्रवृत्ति का यह आलम था कि 25 मार्च 1986 को मैंने इंदौर में आयोजित 'राम तेरी गंगा मैली' के रजत जयंती समारोह के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने कहा कि रात 2 बजे वे लंदन से मुंबई पहुंचेंगे और सुबह 5 बजे की इंदौर फ्लाइट लेंगे। उनसे पूछा कि घर नहीं जाएंगे तो उनका जवाब था कि उन्हें स्वयं नहीं मालूम की उनका घर कहां है, सारी उम्र सफर ही करता रहा हूं। 'यहां हर शह मुसाफिर है और सफर में जिंदगानी है।' सईद खानाबदोश थे और सराय-दर-सराय उनका सफर जारी रहा। सईद जाफरी कैंडल परिवार के शेक्सपीयराना घुमक्कड़ थिएटर के कलाकार रहते हुए अनेक देशों में गए। उन्होंने अमेरिका में अपना फन दिखाया। यह उस दौर की बात है जब पश्चिम के लोगों को भारत के बारे में अत्यंत अल्प जानकारी थी। यहां तक कि एक महिला को यह जानकारी मिलने पर कि सईद जाफरी भारतीय हैं, तो उसने पूछ लिया कि वे किस जनजाति के हैं। दरअसल, अज्ञान अखिल विश्व स्तर की चीज है, इस प्रजाति के लोग आपको हर देश में, हर कालखंड में मिलेंगे।

इस पर किसी का एकाधिकार नहीं है। सईद जाफरी ने अपने संघर्ष काल में लंदन के पार्क की बेंच पर कई रातें काटी हैं और उसी हुकूमते बरतानिया ने 'ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर' का खिताब भी दिया। बगीचे की बेंच से लंदन के राजघराने तक का सफर उनकी प्रतिभा के कारण संभव हो पाया। सत्यजीत रे ने उन्हें मुंशी प्रेमचंद की महान कथा 'शतरंज के खिलाड़ी' से प्रेरित अपनी पहली हिंदी फिल्म में संजीव कुमार के साथ अभिनय का आमंत्रण दिया। संजीव कुमार विलक्षण अभिनेता थे और फिल्म का आधार ही दो दोस्तों की कहानी थी। सबसे बड़ी बात सत्यजीत रे जैसे निष्णात फिल्मकार के साथ काम करना कोई साधारण चुनौती नहीं थी। इन दोनों महान कलाकारों ने फिल्म को दो पहलवानों का दंगल नहीं बनने दिया वरन् इसे जुगलबंदी की तरह प्रस्तुत किया। शतरंज के खिलाड़ी के नवाब सईद अपनी अगली फिल्म सई परांजपे की 'चश्मेबद्‌दूर' में पनवाड़ी बने और संक्षिप्त भूमिका में ही अन्य कलाकारों को मात दे दी। शेखर कपूर की 'मासूम' में उन्होंने छोटी भूमिका में प्रभावित किया। गुणी कलाकार केवल एक दृश्य में अपना प्रभाव छोड़ जाता है। उन्होंने अनेक भारतीय फिल्मों में काम किया। राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' और 'हिना' में काम किया। शूटिंग के समय मैंने देखा कि सेविल रोड, लंदन का सूट पहने सईद दावत में शरीक होते और हमेशा उनकी कोट में चांदी का गिलास होता था और शराब केवल इसी में पीते थे। शराब पीते हुए किस्से बहुत ही मजेदार अंदाज में सुनाते थे। वे अत्यंत आनंददायक किस्सागो थे।

हर दावत के प्रारंभ में ही वे अपने मेजबान से कहते कि अगर वे पीते-पीते होश खो दें तो बराय मेहरबानी उनका चांदी का गिलास उनकी कोट की जेब में रखकर ही उन्हें अपने कक्ष में भिजवा दें। यह बात समझना कठिन है कि इतना मेहनताना पाने वाला कलाकार एक जैसे दर्जनभर गिलास क्यों नहीं बनवा लेता था। यह संभव है कि उस गिलास से कोई याद जुड़ी थी, जो वे किसी को बताना नहीं चाहते थे। यह भी संभव है कि पंजाब के पिंड में वे साधारण परिवार में जन्मे हों और चांदी के चम्मच से उन्हें शहद नहीं पिलाया गया हो और प्रतिक्रिया स्वरूप ताउम्र चांदी के गिलास में शराब पीते रहे। मनुष्य अवचेतन एक गहरी रहस्यमय कंदरा है। सबकुछ कभी उजागर नहीं होता। यह भी इत्तफाक की बात है कि 'हिना' में उनका पात्र खानाबदोश कबीले का सरदार था। उन्होंने दो विवाह किए परंतु पहले विवाह से उन्ें तीन कन्याएं थीं और इस यायावर व्यक्ति के आखिरी वर्ष अस्पताल में बीते जहां उनकी बेटियों ने तीमारदारी की। सारा जीवन सईद जाफरी ने अपने साथ कम से कम सामान लेकर विविध यात्राएं कीं और अंतिम सफर में भी कोई 'एक्स्ट्रा बैगेज' वे साथ नहीं ले गए। वे रंगमंच की रोशनियों पर सवार 'लाइट ट्रेवलर' थे।