खामोश लम्हे / भाग 6 / विक्रम शेखावत
उसने एक बूत की तरह अपनी जिम्मेदारियों को निभाया,शादी की सभी रस्मों को वो गर्दन झुकाये ही निभाता रहा। उसे लग रहा था जैसे कहीं पास ही खड़ी रंजना उसे घूर रही हो। वह अपराधबोध मे दबा जा रहा था। वो अपने आप को रंजना का अपराधी समझ सिर झुकाये अपने अपराधों के लिए क्षमा मांग रहा था। वो सिर उठाकर रंजना की नजरों का सामना नहीं कर पा रहा था। सगे संबंधी उसे रस्मों की अदायगी के लिए जैसे इधर से उधर धकेल रहे थे। वो फांसी की सजा पाये मुजरिम की भांति अपने आप को उनके हवाले कर चुका था। वो अपने आपको लूटा हुआ महसूस कर रहा था, उसके कानों मे रंजना की सिसकियाँ गूंजने लगी। उसका प्यार चित्कार कर रहा था। उसकी आँखों की कोरों पे पानी जमा हो रहा था। मगर आँसू में तब्दील होने से पहले भानु उसे पी गया था। इसी कशमकश मे जैसे उसके हलक मे उसका दिल अटक गया था। उसे अपनी साँसे डूबती सी महसूस हो रही थी। वो क्रंदन करना चाहता था। सारे बंधन तोड़ वो रंजना के पास लौट जाना चाहता था। नहीं देगा वो अपने प्यार की तिलांजलि। क्या कसूर है उसका ? क्यों भूल जाए वो रंजना को ?
बारात दुल्हन को लेकर लौट आई थी। दुल्हन के स्वागत के रूप मे शादी की अंतिम रश्म अदायगी चल राय थी। दुल्हन को एक कमरे मे बैठा दिया था जहां गाँव की औरतें मुह दिखाई की रश्म निभा रही थी। भानु की भाभी दुल्हन से सभी को परिचित करवा रही थी। भानु का भाई विजय और उसकी भाभी शादी से तीन दिन पहले ही शरीक होने आ गए थे। उसके भाई का अनुपगढ़ से अहमदाबाद ट्रान्सफर हो गया था। दिनभर की चहल-पहल के बाद अब सांझ घिर आई थी। आने जाने वालों का तांता अब धीरे धीरे कम हो रहा था। भानु अपने को ठगा सा महसूस कर गाँव के बाहर अकेले मे अपनी लाचारी के आंशु बहा था। उसकी झिझक ने आज उसे पंगु बना दिया था। उसे लगा जैसे कुछ कदम दूर खड़ी रंजना उसे आंखो से कुछ पूछ रही है।
“म....में....तुम्हारा मुजरिम हूँ रंजना... “, वह बुदबुदाया और एसके साथ ही उसकी आंखो से आँसूओ का सैलाब उमड़ पड़ा।
“मे...लाचार था....में चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया...ले...लेकिन....में तुम्हें कभी नई भुला पाऊँगा। तुम..... तुम मेरा पहला और आखिर प्यार हो...में मरते दम तक ... तुम्हारा रहूँगा... समाज ने मेरा शरीर लूटा है मेरा ...... दिल नहीं ...में तुम्हारे पास आऊँगा,….मुझे कुछ मोहलत दो...में .... बहुत जल्द...तुम्हारे पास आऊँगा...हाँ....में आऊँगा.....मेरा इंतजार करना...मुझे तुमसे बहुत सारी...बातें करनी है...”, कहकर वो फफक कर रो पड़ा। बाकी के शब्द उसके गले मे फँसकर रह गए थे।
कहते हैं रोने से दिल हल्का होता है। भानु भी अपनी बेबसी मे आंशु बहाकर घर लौट आया था। दिल हल्का तो नहीं कुछ भारी जरूर हो गया था। अवसाद मे डूबा असहाय सा वह घर के आँगन मे पड़ी चारपाई पे लेट गया। अपने परिवार की खुशी के आगे उसने अपनी इच्छाओं की भेंट चढ़ा दी थी। पूरा परिवार शादी की खुशी मे डूबा था सिवाय उसके। सूरज क्षितिज मे अपनी लालिमा बिखेर वसुंधरा के आगोश मे समा चुका था। भीतर शादी के लाल जोड़े मे सिमटी दुल्हन अपने सूरज की आहट पाने को आतुर थी। भानु के दिल मे अपनी नई-नवेली दुल्हन के प्रति किसी प्रकार के अनुराग की अनुभूति नहीं थी। किसी से की बेवफ़ाई उसे धिक्कार रही थी। रंजना की रुआंसी आंखे घूर रही थी। उन आंखो मे आज वो समर्पण नहीं था जो दो साल पहले था। आज उनमे बहता अविरल अश्रुधारा का सैलाब सब कुछ बहा देने पे आमादा था। मन के अंतर द्वंद की घुटन से छटपटा कर आंखो से निकले गरम आँसू उसके गालों से दौड़ते हुये गर्दन के पीछे जाकर छुप गए थे।
“भानु ! “, उसकी भाभी ने उसे आवाज दी।
“हाँ”, भानु की आवाज जैसे कहीं दूर से आ रही थी। वह निस्पंद सा लेटा रहा।
“अंदर चलो, पुजा करने के लिए”, पुजा की थाली हाथ मे लिए उसकी भाभी ने पास आकर कहा। उठते उठते उसने बड़ी चतुराई से आंशु पोंछ लिए। वो जानता था की उसे अब अपनी नववधू का सामना भी करना है। भारी कदमों से वो अपनी भाभी के पीछे पीछे वधू के कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे के दाईं तरफ सुहाग की सेज पे दुल्हन घूँघट मे सिमटी हुई बैठी थी, आहट पाकर उसकी धड़कने बढ़ने लगी।
“इधर आ जाओ सीमा”,भाभी ने भानु की दुल्हन सीमा को पुकारा तो दुल्हन के शरीर मे हलचल हुई। वह सकुचाई सी सेज से उठी और इशारा पाकर पुजा के लिए पास आकर बैठ गई। भानु को भी उसकी भाभी ने सीमा के पास बैठने को कहा। फेरों के वक़्त से अब तक कई बार उन दोनों को रस्मों की अदयागी के लिए पास पास लाया गया था। दोनों मे अभी तक कोई बात नई हुई थी। भानु की तरफ से पहल की आशा लिए वधू इंतजार की घड़ियाँ गिन रही थी। उधर भानु अपने टूट चुके सपनों के साथ रंजना की नजरों का सामना नहीं कर पा रहा था।
भाभी कमरे को बाहर से बंद करके कब चली गई भानु को पता ही नई चला। पता भी कैसे चलता, आज दिनभर उसने एक मुर्दा लाश की तरह ही अपने आपको सबके हवाले कर रखा था। किसिने उसकी उदासी का सबब नहीं पूछा। सब यही सोच रहे थे की संकोच की वजह से कुछ बोल नहीं पा रहा, धीरे धीरे इस माहौल का आदि हो जाएगा। पुजा की थाली मे जलता दीपक अपने आखिरी वक़्त मे तड़प तड़प कर डैम तोड़ चुका था। कोने मे रखी लालटेन की लौ अभी तक कमरे मे फैले अंधेरे से दो दो हाथ कर रही थी। कमरे मे छाया सन्नाटा सीमा की बैचेनी बढ़ा रहा था। थक हार कर उसने खुद पहलू बदला, हल्की कुलबुलाहट ने भानु का ध्यान खींचा। उसने अपनी दुल्हन की तरफ देखा जिसे परिवार ने बिना उसकी मर्जी जाने उसके साथ बैठा दिया था।
अपने घुटनो को मोड़ कर उनको अपनी कलाइयों मे लपेट सिमटकर बैठी सीमा भानु को किसी न किसी बहाने कलाइयों को हरकत दे चुड़ियाँ खनकाकर अपनी मौजूदगी का अहसास करा रही थी। पैरों की महावर, हाथों मे रची मेहंदी भानु को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। निष्ठुर खामोश था।
लंबी खामोशी के बाद भानु ने सोचा इन सबके लिए वो खुद जिम्मेदार है, सीमा की इसमे क्या गलती है ?, जो वह उसकी उम्मीदों का गला घोट रहा है। उसने तो उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा,फिर वो उसको किस जुर्म की सजा दे रहा है। उसे क्या हक़ है उसकी खुशियों को उससे महरूम रखने का ?
भानु अजीब सी दुविधा में फंसा था। वो परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाने की कशमकश मे बार बार पहलू बदल रहा था। एक तरफ सीमा अपने हक़ का इंतजार कर रही थी तो दूसरी तरफ रंजना अपने प्यार का हवाला दे उसे अपनी और खींच रही थी। भानु रंजना की समृतियों से चाहकर भी बाहर आने मे असमर्थ नजर आ रहा था। वो इस कसमसाहट मे और गहरे तक समृतियों के दलदल मे धंस रहा था। भानु उन दोनों के बीच खड़ा अपनी बेबसी जता रहा था। भानु ने मन ही मन रंजना से माफी मांगी और वक़्त के हाथों मिली शिकस्त को स्वीकार करने लगा। दुल्हन रातभर घूँघट मे घुटती रही और उसके साथ दो बिछुड़े हुये प्रेमी भी अपने नसीब पे अश्क बहा उसके दुख मे भागीदार बनते रहे...
उधर कॉलेज की छूटियों के बाद रंजना आते जाते भानु के कमरे के बंद पड़े दरवाजे को देख निराश होती रही। विरह की वेदना उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। उसकी बड़ी बड़ी आंखे मे प्यार की खुमारी नहीं जुदाई का दर्द पसरा हुआ था। पहले तो ये सोच मन को समझाती रही की सायद छुट्टियों के बाद भानु वापिस लौट आएगा। उसने दुर्गा से भी इस बाबत बात की मगर उस से भी कोई आश्वस्त करने वाला जवाब नहीं मिला। मगर जब महीने और फिर साल गुजरने लगे तो उसका दिल बैठने लगा। उसका प्रफुल्लित चेहरा अपनी आभा खो रहा था। कॉलेज से आते जाते रास्ते भर उसकी नजरे भानु को तलाशती रहती थी। वो अक्सर जब अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज से आती थी तो उस वक़्त भानु अपने कॉलेज जाते हुये मिल जाता था। हालांकि रंजना की सहेलियाँ साथ रहती थी इसलिए उनमें कभी हाय हैलो जैसे औपचारिक शब्दों का आदान प्रदान तक नहीं हुआ था लेकिन उनकी नजरों से छुपकर एक दूसरे को आंखो ही आंखो मे बहुत कुछ कह जाते थे।
वक़्त मसल्सल गुजर रहा था ...उसका गुजरना किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा जरूर होता है, मगर उसको तो गुजरना होता सो गुजर रहा था। वो सिर्फ गुजरना जानता है लौट के आना उसे मालूम नहीं। वो धीरे धीरे भानु के मस्तिष्क से रंजना की यादें कुरचने लगा। भानु ने थक हार कर अपने दिल से समझोता कर लिया। वो रंजना की यादों को दिल की किसी कोने मे छुपा, सीमा के साथ गृहस्थी की ज़िम्मेदारी निभाने लगा। लेकिन बावजूद इसके वो कभी कभार तन्हाइयों मे, दिल मे छुपी अपनी पहली मोहब्बत से रूबरू होता रहा। इस सबसे उसे हलकी उदासी के साथ एक रूहानी सुकून भी मिलता था। अपने पहले प्यार को की याद में आँसू बहाना उसका प्रायश्चित था, ऐसा करने पर उसे अपने सीने से कुछ बोझ कम होता अनुभव होता था।
भानु ने सभी से अपने प्यार को छुपा के रखा। वर्षों तक सीने मे अपनी पहली मोहब्बत की यादों की कशक लिए फर्ज़ निभाता रहा। जिस वक़्त ने उसे उसके पहले प्यार से अलग किया उसी वक़्त ने उसके सिर से माँ-बाप का साया तक भी छीन लिया था। बिना माँ-बाप के अब उसे घर काटने को दौड़ता था। माँ-बाप के देहावसान के पश्चात भानु, सीमा और अपने बेटे रंजीत को अपने साथ दिल्ली ले गया।
भानु अस्पताल के वेटिंग हाल मे बैठा रिपोर्ट मिलने का इंतजार कर रहा था। समय के साथ उसके जेहन मे रंजना की यादें वक़्त की धूल से सनने लगी, मगर वो उन यादों को दिल के किसी कोने मे मरते दम तक सँजोये रखना चाहता था। आज उसका बेटा रंजीत 23 साल का हो गया था। कद काठी और शक्ल सूरत से वो भानु को उसकी जवान अवस्था की याद दिलाता था। उसे पिछले साल एक कंपनी मे अच्छी पोस्ट पे नौकरी मिल गई थी और उसके दो माह बाद भानु ने रंजीत की शादी भी कर दी थी। क्योंकि उधर सीमा बीमार सी रहने लगी थी और अब वो घर का काम बड़ी मुश्किल से कर पाती थी। शनै शनै भानु अपनी जिम्मेदारियों से निजात पा रहा था। मगर उसे सीमा की चिंता खाये जा रही थी।
“सीमा”, काउंटर से सीमा का नाम पुकारा तो भानु उठकर उस तरफ बढ़ गया।
“आपक डॉक्टर से मिल लीजिये”, काउंटर के उस तरफ बैठी रिसेप्शनिस्ट ने भानु की तरफ रिपोर्ट का लिफाफा बढ़ाते हुये कहा।
भानु डॉक्टर के रूम की तरफ बढ़ गया।
“बैठिए”, डॉक्टर ने उसके हाथ से रिपोर्ट लेते हुये कहा।
“आप से पैसेंट का क्या रिलेशन है”
“जी, सीमा मेरी वाइफ़ है”
“हूँ”, डॉक्टर के चेहरे पे चिंता के भाव देख भानु का दिल बैठने लगा।
“क...क्या बीमारी है डॉक्टर ?”
“देखिये मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की आपकी पत्नी को ब्लड-कैंसर है, और अब वो आखिरी स्टेज में है।“, डॉक्टर ने बात पूरी करते हुये भानु के चेहरे की तरफ देखा।
“अब उन्हे आराम की सख्त जरूर है। कैंसर का जहर उनके पूरे शरीर मे फ़ेल चुका है। अब इलाज से उनके जीवन की दिन और कम ही होंगे,कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए बेहतर है जैसे भी बन पड़े आप उनकी खुश रखें और जीवन के इन आखिरी लम्हों मे उनके साथ रहें।“
भानु की आंखो में आँसू आ गए उसने अपना चश्मा हटकर बाजू से अपनी आंखे साफ की, और कुर्सी का सहारा लेकर उठने लगा। उसे को डॉक्टर की बात बहुत दूर से आती हुई महसूस हो रही थी। उसे कुछ साफ सुनाई नही दे रहा था। वो रिपोर्ट लेकर घर आया। सीमा को कुछ नहीं बताया और डॉक्टर के कहे अनुसार उसका ख्याल रखने लगा। उसने रंजीत और उसकी वाइफ़ सविता को सीमा की लाइलाज बीमारी से अवगत करा दिया था। सुनकर उसे बहुत दुख हुआ, मगर माँ को खुश रखने के लिए वो खून के घूंट पीता रहा।
आखिर वो वक़्त भी आ गया जिसका डर सभी के दिल मे बसा था। सीमा सदा के उन सबको रोता छोड़कर कहीं दूर चली गई थी। उसकी मौत ने भानु को जैसे हिलाकर रख दिया था। सीमा की मौत के बाद भानु ने नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया था। सीमा कोई मौत के एक साल बाद रंजीत की पत्नी सविता ने एक खूबसूरत बेटी को दिया।