खास लोग / तारिक असलम तस्नीम
अफजल मियां कोई खानदानी अमीर आदमी तो नहीं थे। किसी सरकारी दफ़्तर में मुलाजिम थे, किन्तु उनके बच्चे अच्छी नौकरियों मे आ गये थे, इसलिए बेटी की शादी में जमकर खर्च कर रहे थे।
मस्जिद से निकलकर उन्हीं के दावत में शरीक होने के लिए कुछ बड़े-बुजुर्ग चले तो एक ने कहा-- यह क्या तमाशा है। न जाने अपने कॉलोनी के आसपास ही कितने मुस्लिमों के घर होंगे, जहाँ एक वक्त का अनाज मुश्किल से बनता होगा। यहाँ देखिये। कितना बड़ा पंडाल लगाया गया है और घर की कितने सलीके से सजावट की गई है। किसी भी तरह पच्चास-साठ हजार से थोड़े ही कम खर्च हुआ होगा ? इनको तो चाहिए था कि सबको दस्तरख्वान पर खाना खिलायें। सुन्नत तरीका तो यही है जिसे पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने हमेशा अपनी जिन्दगी में तरजीह दी।
-- इस जमाने में पैगम्बर साहब के सुन्नत की किसको फिक्र है। सबके सब मर मिटे हैं दिखावे पर। मगर यह तो बैकवर्ड जात के हैं। इनको यह सच करने की क्या जरूरत है?
कुछ अर्से बाद ही चीफ इंजीनियर साहब की बेटी की शादी तय हुई। ये लोग भी शामिल हुए तो देखा कि यहाँ बैठकर खाने के बजाये करीम साहब ने खड़े-खड़े प्लेट को हाथ में लेकर खाने का इंतजाम किया थे।
जिसके बारे में उनका ही कहना था-- कमाल कर दिया करीम साहब। इतना शानदार इंतजाम । आपने खानदान की लाज रख ली। आपको मुबारक हो यह शाम।
क्योंकि करीम साहब सैयद जात के थे।