खिलाड़ी प्रतिभा और संगठन का माफिया / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :06 अप्रैल 2016
विश्व कप में वेस्ट इंडीज की विजय से वेस्ट इंडीज क्रिकेट बोर्ड की अलमारी में छिपे अव्यवस्था के कंकाल बाहर आ गए हैं। विश्व विजयी टीम के प्रतिस्पर्द्धा में भाग लेने पर ही बोर्ड की बदइंतजामी के कारण प्रश्न-चिह्न लगा हुआ था। यहां तक कि खिलाड़ियों की पोशाकें भी नहीं बनी थीं। इतने बिखरे हुए बोर्ड के बावजूद वेस्ट इंडीज की पुरुष, महिला और युवा टीमों ने अपनी-अपनी स्पर्द्धा जीतकर यह सिद्ध कर दिया है कि इन्हें शासित करने वाली संस्थाओं के टुच्चेपन और निजी स्वार्थ के लिए षड्यंत्र करने वालों की नकारात्मकता पर टीम के खिलाड़ियों के आपसी भाईचारे और जुझारूपन की सकारात्मकता भारी पड़ती है। व्यक्तिगत प्रतिभा संगठन की सड़ांध को उजागर कर देती है। इस घटना से यह भी उजागर होता है कि प्रतिभा के खिलाफ समूह के षड्यंत्र सफल नहीं हो पाते। बौनों का समूह एकलवीर को जंजीरों में जकड़कर निष्क्रिय नहीं कर पाता।
यह कितनी अजीब बात है कि संगठन पर बौनों की पकड़ मजबूत रहती है। हमारे अपने क्रिकेट बोर्ड में कपिल देव, बिशनसिंह बेदी, गावसकर, विश्वनाथ, गांगुली पदासीन नहीं हैं। वह छुटभैये नेताओं के हाथों में है। ज्ञातव्य है कि बेदी ने श्रीलंका के मुरलीधरन के एक्शन के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा कायम किया था। इस प्रकरण में आप किसी एक राजनीतिक दल को दोषी नहीं पाएंगे, क्योंकि शरद पवार से लेकर अरुण जेटली तक सभी दलों के नेता इसमें शामिल हैं। यह कोई जटिल पहेली नहीं है। जहां विपुल धन होगा, वहां ये पेशेवर जा पहुंचेंगे। इस टिड्डी दल के खिलाफ कोई सुरक्षा तंत्र काम नहीं करता। सुना है कि भारतीय क्रिकेट संगठन विश्व की सबसे अधिक विपुल संपत्ति वाला संगठन है। इसकी जमा राशि का ब्याज बहुत अधिक आता है। यह कुबेर का खजाना खिलाड़ियों के पसीने से पैदा हुआ है। आजकल तो खिलाड़ियों को अच्छा मुआवजा मिलता है परंतु पॉली उमरीगर के जमाने में मात्र तीन सौ रुपए प्रतिदिन मिलता था और पांच दिवसीय मैच तीन दिन में जीतने पर तीन दिन का ही भत्ता मिलता था। यह प्रतिदिन यूनिफॉर्म की धुलाई के खर्च के नाम पर दिया जाता था।
रवि शास्त्री कोे कोच नियुक्त किया गया है अौर वे विभिन्न पदों पर लंबे अरसे से आसीन रहे हैं। उनकी प्रतिभा व लगन पर संदेह नहीं परंतु उनके समकालीन, उनसे अधिक प्रतिभाशाली लोगों को हाशिये पर डाल दिया गया है। गुंडप्पा विश्वनाथ ने बैटिंग को उच्चतम कला में बदल दिया था। उनका बल्ला जब गेंद से टकराता था तो मधुर ध्वनि का जन्म होता था और पूरी इनिंग संगीत रचना सिम्फनी में बदल जाती थी। इन आवाजों को अपने ध्वनि समूह से अलग करके सोलो के रूप में ध्वनिबद्ध करें तो मोजार्ट की सिम्फनी-सा आनंद प्राप्त किया जा सकता है। रवि शास्त्री और उनके तरह के लोग बड़े मिलनसार और लचीले स्वभाव के होते हैं और बोर्ड के हाथों में दास्तानों की तरह सज जाते हैं। कपिल देव, किरमानी, बेदी की तरह के अपने सिद्धांतों के प्रति समर्पित लोगों में अक्खड़पन होता है और बोर्ड की राजनीति में लचीलापन, पूरे कार्यकलाप के इंजन में मोबिल ऑयल का काम करता है। चुनाव आधारित सारे संगठनों में बौनों के राज का रहस्य ही लचीलेपन बनाम अक्खड़पन में देखा जा सकता है। क्रिकेट महाकुंभ के इन दिनों में इंदौर के खेलकूद स्तंभकार सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की राजकमल प्रकाशन द्वारा जारी किताब 'बाइस गज की दुनिया' पढ़ी। उनके इस क्रिकेटनामे में खेल की अनेक विभूतियों का आत्मीय वर्णन अत्यंत पठनीय है। विगत के महानुभावों की आत्मीय स्मृति का यह संकलन है। यह भी आश्चर्य है कि क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल पर हिंदी भाषा में अत्यंत अल्प लिखा गया है। क्रिकेट की अनिश्चितता उसे जीवन का आईना बनाती है और सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने शिद्दत से महसूस किए गए खेल का वर्णन कवि हृदय से किया है। क्रिकेट के संगीत और उसकी कविता के आस्वाद में वे प्रवीण हैं। क्रिकेट के व्याकरण से ही उनका गद्य शासित है। इतनी निष्ठा से किसी खेल में ताउम्र रमे रहना कठिन तपस्या की तरह है।
इस किताब में संपादक प्रभाष जोशी को आदरांजली दी गई है, जिन्होंने हिंदी में क्रिकेट विवरण लिखे जाने पर जोर दिया, क्योंकि क्रिकेट भले ही राजा, महाराजा और नवाबों के प्रश्रय से प्रारंभ हुआ हो परंतु अवाम ने इसे अपना लोक गीतबनाकर इसे इस कदर दैनंदिनी मंे शामिल किया है कि अवाम अपनी बोलचाल में इसके मुहावरों का इस्तेमाल करता है। बातचीत में बोल्ड करने, संशय में लिए निर्णय को लेग बिफोर विकेट कहना इत्यादि अनेक उदाहरण हैं। क्रिकेट में सट्टे के उदय का कारण भी हमारे पैदाइशी जुआरीपन से जुड़ा है। जुआरीपन में चीन हमसे आगे रहा है। क्या बाएं हाथ के गेंदबाज की भीतर आती गेंद को चाइनामन इसीलिए कहा जाता है?