खुरदरे इमोशन्स के बीच / विनीत कुमार

Gadya Kosh से
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"ऐ रघु! देख न मेरे ये जूते कैसे चमक गए. बिल्कुल नए जैसे. लग ही नहीं रहा ये चार साल पुराने जूते हैं. ऐम्बे लिक्विड तो सचमुच कमाल का है. अब मैं अपने सारे जूते इसी से धोया करुंगी."

ओह रागिनी! तुमने इस सड़ियल से जूते पर इतनी मेहनत क्यों की? तुमने तो इसे कब का पहनना छोड़ दिया था. फिर अब क्यों साफ कर दिया?"

"रघु, ये सड़ियल है? याद है, ये तुम्हारी पहली कमाई की निशानी है. उस दिन तुम्हें हिन्दी सेट्स बनाने के दस हजार रुपये मिले थे. मैं जॉगिंग के लिए कामचलाउ जूते लेना चाहती थी और कई बार तुम्हें मोनेस्ट्री जाने कहा था. तब तुम सेट्स पूरी होने के बाद जाने की बात करते थे और फिर जैसे ही पैसे आए, जबरदस्ती मुझे आदिदास के शोरुम ले गए थे और इसे खरीदा था. उस दिन तुम सचिन की तरह आदिदास की ब्रांडिंग कर रहे थे. पता है रघु. इसे मैं जब भी पहनती थी न, मेरी रफ्तार अपने आप बढ़ जाती थी."

"हा हा हा. रफ्तार बढ़ जाती थी. रफ्तार तो इतनी बढ़ गई रागिनी कि देखते ही देखते तुम मुझसे मीलों दूर चली गई."

"रघु, तुमने कुछ कहा क्या?"

"नहीं रागिनी. मैंने कहां कुछ कहा"

"ओके. तो फिर आज शाम चलना न मेरे साथ. सोसाइटी के बार गेट पर जो भइया बैठते हैं न, उनसे इसके तलवे चिपकवा लेंगे. दस-बीस रुपये में अपना काम हो जाएगा."

शाम को...

"भइया, मेरे ये जूते चिपक जाएंगे?"

"हां मैंडमजी, चिपक क्यों नहीं जाएंगे?"

"तो फिर चिपका दो अच्छे से." रघु पास ही हाथ में जेब डालकर खड़ा हो गया था. रागिनी ने जल्द ही हाथ और जेब के बीच की खाली जगह में अपने हाथ डाल दिए थे. दोनों के बीच की हवा को रागिनी ने काफी कम कर दिया था. पब्लिक प्लेस में ऐसा करने से रघु अक्सर एम्बेरेस हो जाया करता है और रागिनी को ऐसा करने में मजा आता.

"ऐ रघु! तुम मार्केट पर मेरे छूने भर से इतने शर्माने क्यों लग जाते हो? ऐसे डरते हो कि जैसे मैं तुम्हारी रेप कर दूंगी." रागिनी ने इधर-उधर देखा और एक झटके में रघु को खींच लिया.

"ठीक से चिपकाना भइया जूते. ही ही ही ही."

"मैडमजी, ओइसही चिपकाएंगे, जैसे आप रघु भइया को."

"रागिनी, तुम भी न. एकदम से चीप हरकतें करने लग जाती हो."

"इ लीजिए मैडमजी. आपका जूता चिपककर रेड्डी."

"थैंक्स भइया. अच्छा ये तो बताओ, ये जूते फिर से उखड़ तो नहीं जाएंगे? मैं तो इसे लेकर मोतिहारी चली जाउंगी और अगर उखड़ा तो फिर तुम तो आओगे नहीं मोतिहारी चिपकाने."

"मैडमजी. एगो बात पूछें? आप जब इ जूता लिए थे हजार रुपया से उपर देकर तो सेल्समैने से इ पूछे थे कि एतना मंहगा जूता ले रहे हैं, उखड़ तो नहीं जाएगा? औ आप पन्द्रह ही रुपया में हमसे इ बात पूछ रहे हैं"

रघु अंदर से खिसिया रहा था. रागिनी को इतनी बातें करने की जरुरत क्या थी?

"कोई बात नही्ं मैंडमजी, रघु भइया को बता दीजिएगा कि चिपका हुआ है कि मोतिहारी जाके उखड़ गया?"