खुल्लम खुल्ला दो ओंठों का जाम / जयप्रकाश चौकसे

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खुल्लम खुल्ला दो ओंठों का जाम
प्रकाशन तिथि :30 जनवरी 2017


आरवी पंडित की पूंजी व प्रेरणा से गुलजार ने 'माचिस' बनाई थी और इसके पहले गुलजार व विशाल भारद्वाज जंगलबुक के एक गीत-संगीत की रचना कर चुके थे। 'माचिस' से 'रंगून' तक गुलजार और विशाल भारद्वाज ने अनेक फिल्मों के गीत-संगीत की रचना की है। उनका रिश्ता इतना गहरा है कि विशाल भारद्वाज को गुलजार साहब का 'मानस-पुत्र' भी माना जा सकता है। खून के रिश्तों से गहरे होते हैं वैचारिक और भावनात्मक रिश्ते। गुलजार और विशाल भारद्वाज की जुगलबंदी हम कंगना रनौट अभिनीत 'रंगून' के प्रमो में देख सकते हैं। लीक से हटकर कुछ ऐसा नया करना, जिसे अधिकतम लोग पसंद करने लग जाएं मध्यममार्ग के सिनेमा का लक्ष्य होता है। इस मध्यम मार्ग सिनेमा के भीष्म पितामह ऋषिकेश मुखर्जी हुए हैं, जिनकी फिल्मों में एनएन सिप्पी पूंजी निवेश करते थे। गुलजार ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों से भी जुड़े थे। दरअसल, कथा फिल्म के इतिहास में शांताराम और राज कपूर के सिनेमा की संरचना में ही इस मध्यम मार्ग के बीज मौजूद थे परंतु उस दौर में मनोरंजन उद्योग का इस तरह के श्रेणीकरण कोई नहीं करता था। उस दौर का श्रेणीकरण सरल था कि फिल्म मनोरंजन है या उबाऊ है। बाल की खाल निकालने की वाहियात कसरत इस दुविधाग्रस्त युग की देन है। शांतारामजी तो रंगों और ध्वनि की 'ऑरजी' की तरह 'नवरंग' भी रचते थे और जेल सुधार की 'दो आंखें बारह हाथ' भी बनाते थे और राज कपूर 'जागते रहो' तथा 'आवारा' जैसी फिल्में बनाते हुए बच्चों को केंद्र में रखकर 'बूट पॉलिश' भी रचते थे।

बहरहाल, विशाल भारद्वाज-गुलजार टीम की कंगना रनौट अभिनीत 'रंगून' के गीतों में माधुर्य के साथ सौद्‌देश्यता भी गूंथी हुई है। ज्ञातव्य है कि फिल्म में दूसरे विश्वयुद्ध के समय की पृष्ठभूमि पर होमी वाडिया की नाडिया की छवि में कंगना रनौट नज़र आ रही हैं। उनके हाथ में हंटर है और लबों पर मनोरंजक गीत है, 'इश्क किया अंग्रेजी में खुल्लम खुल्ला, दो ओंठों का जाम पिया अंग्रेजी में, सॉरी कहते-कहते इश्क किया अंग्रेजी में, बजी बेल ट्रिंग ट्रिंग…वह सूट में था, बूट में था, वहां वह पैराशूट में था..।' यह गुदगुदी करने वाली रचना है और छद्‌म नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदारों को 'ओंठों के जाम' में कोई चिंगारी नहीं मिलेगी कि वह अफवाहों का शोला बना दे। इसमें 'इब्ने बतूता' की तरह 'माल' कहीं से उड़ाए जाने का आरोप भी नहीं लग सकता। गुदगुदी अंतरराष्ट्रीय है और 'मौलिकता का मुद्‌दा' भी इसके साथ चस्पा नहीं किया जा सकता।

'रंगून' का कंगना रनौट अभिनीत होना भी इसे विशेष बनाता है, क्योंकि 'तनु वेड्स मनु' और 'क्वीन' उन्हें अन्य नायिकाओं से अलग करते हैं। एक छोटे शहर के गैर-फिल्मी परिवार से आईं कंगना रनौट परिभाषाओं के परे गई हुई महिला हैं। उनकी अभिनीत 'रिवॉल्वर रानी' अंतिम रीलों के कारण असफल रही परंतु फिल्म नायिकाओं के कांच के कक्ष में कंगना ने हाथी की तरह प्रवेश किया था और सारी पारम्परिकता के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। इस क्षेत्र में कंगना ने कसाई की तरह पारम्परिकता का कीमा कूट दिया था। यह उनका साहस है कि सफलता की पटरी पर दौड़ते हुए अपने कॅरिअर को छोड़कर वे अमेरिका चली गईं, जहां उन्होंने फिल्म लेखन व निर्देशन का कोर्स किया। वे तो बिना प्रशिक्षण के हथियार के ही घमासान युद्ध कर रही थीं। कई बार ऐसे योद्धाओं के हाथ-हथियार और प्रशिक्षित हो जाने पर उनकी स्वाभाविक क्षमता में कमी आ जाती है। प्रशिक्षण हमेशा मांजता नहीं है, कई बार उस प्रक्रिया की घिसाई उसकी धार को ही समाप्त कर देती है। 'रंगून' का प्रदर्शन इस इम्तहान के परिणाम को प्रस्तुत करेगा।

बहरहाल, विशाल भारद्वाज और कंगना रनौत की जोड़ी तहलका मचा सकती है। नाडिया बायोपिक की झलक भी 'रंगून' में मौजूद है। किसी दौर में एक फिल्मी गीत 'मेरे पिया गए रंगून, किया है वहां से टेलीफून' बड़ा लोकप्रिय गीत था। युद्ध की थीम पर सर रिचर्ड एटनबरो ने म्यूज़िकल फिल्म रची थी 'वॉर ए लवली वॉर।' रंगून उससे जुदा किस्म की फिल्महै। स्मरण आता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के समय ही हेलन अपने परिवार के साथ युद्ध की आग में जलते हुए रंगून से भारत की ओर मीलों पैदल चलकर आई थीं। किसी तरह वे मुंबई पहुंचीं और फिल्मकार पीएन अारोरा ने उन्हें अवसर तो दिए परंतु ऐसा अनुबंध किया कि सारी कमाई आरोरा के पास जाती थी। हेलन कई वर्ष पश्चात उस लौहकपाट को तोड़कर मुक्त हुईं तो वे मुफलिस थीं और सिर छिपाने को छत भी नहीं थी। कुछ अंतराल के बाद सलीम खान ने हेलन को सब प्रकार के शोषण से मुक्त कराया।