खुशी के जलप्रपात में स्नान से लाभ / जयप्रकाश चौकसे

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खुशी के जलप्रपात में स्नान से लाभ
प्रकाशन तिथि :23 अगस्त 2017

राजनीति सरहदों को सुलगाती रखती है। अपने से कमजोर देश को हमेशा निशाने पर रखते हैं और अपने से शक्तिशाली हमारी जमीन दबा ले, हमारे बाजारों को अपने घटिया माल से भर दे तब भी विरोध की तलवार को म्यान में ही रहने देते हैं और अवाम को बरगलाए रखने के लिए तलवार की मूठ पर हमेशा ऐसे हाथ रखे रहते हैं कि बस अगले ही क्षण निकाल लेंगे। यह दिलकश अदा बहुत वोट दिलाती है। वर्तमान में राष्ट्रों का शक्ति प्रदर्शन बाज़ार में होता है कि किसका माल कितना अधिक बिकता है। अब सारे कुरुक्षेत्र की जगह बाजार ने ले ली है। इस खेल में चीन सबसे आगे है। उसने अपने घटिया माल से बाजारों को पाट दिया है। चीन जानता है कि टेक्नोलॉजी द्वारा ईजाद मनभावन खिलौने मनुष्य को खूब भरमाते हैं। चीन के बनाए सस्ते मोबाइल ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गए हैं। गुलशन कुमार ने आठवें दशक में सस्ते रिकॉर्ड प्लेयर खूब बेचे, क्योंकि उन्हें टी-सीरीज के ऑडियो कैसेट बेचने थे। उसी तर्ज पर आजकल मोबाइल बेचे जा रहे हैं। यह अजीब बात है कि संवाद एवं परिवहन के साधन जितने बढ़े हैं उतनी ही दूरी बढ़ गई है। मनुष्यों के बीच सबसे बड़ा फासला बना है मनुष्य की छवि और उसके असल व्यक्तित्व के बीच। वैज्ञानिकों का मत है कि मोबाइल का अधिक इस्तेमाल दिमागी संतुलन बिगाड़ सकता है और बकौल फिल्मकार राजकुमार हिरानी 'कैमिकल लोचा' पैदा हो सकता है।

बहरहाल, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सरहदों के आरपार मनुष्यों के वैध एवं अवैध आवागमन पर अनेक फिल्में बनी है। चेतन आनंद की 'हिन्दुस्तान की कसम', राज कपूर की 'हिना', सलमान खान की 'बजरंगी भाईजान' इत्यादि। एक फिल्म में सरहदों के बीच नो मैन्स लैंड में एक मुर्गी पहुंच गई और दोनों ओर से उसे अपनी ओर बुलाने के प्रयास होते हैं। इन सभी फिल्मों में सबसे अधिक सोद्‌देश्य मनोरंजन आनंद एल. राय की फिल्म 'हैप्पी भाग जाएगी' है। नायिका का नाम ही हैप्पी है और अपने नाम के अनुरूप जहां जाती है वहां आनंद बिखेर देती है। फिल्म में एक संवाद है कि हैप्पी इतनी खुशमिजाज है कि उसे जान लेने के बाद आप उससे मोहब्बत किए बिना रह नहीं सकते। फिल्म में पाकिस्तान के राजनेता के बेटे को राजनीति में उतारने के प्रयास चल रहे हैं, जिन्हें गति देने के लिए एक खानदानी अमीर की बेटी से उसका विवाह करने के प्रयास चल रहे हैं। दोनों ही देशों की राजनीति एक दुश्चक्र पर चल रही है कि धनाढ्य लोग नेता को चुनाव जीतने के लिए धन देते हैं और नेता चुनाव जीतने के बाद धनाढ्य व्यक्ति को और अधिक धन कमाने के लाइसेंस दिलाता है। राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मेरी' में भी इसी दुश्चक्र को प्रस्तुत किया गया है।

भारतीय लड़की हैप्पी इत्तेफाक से पाकिस्तान जा पहुंचती है और नेता पुत्र, अभय देवल अभिनीत पात्र हैप्पी की सहायता करता है। उससे विवाह करने वाली पाकिस्तानी कन्या उससे पूछती है कि क्या उसे हैप्पी से प्यार नहीं हुअा। पाकिस्तानी कन्या भी हैप्पी के साथ वक्त बिताने के बाद उसे बेहद चाहने लगी है। याद आता है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म 'देवदास' के एक दृश्य में पारो और चंद्रमुखी मिलते हैं। चंद्रमुखी कहती हैं कि देवदास को चाहते हुए, उसे स्वयं भी पारो से प्रेम हो गया है। यह प्रेम के सेतु की ही फितरत है कि उस पर चलते हुए आपको प्रतिद्वंद्वी से भी प्रेम हो सकता है। दरअसल, प्रेम के रहस्यमय उजास में स्नान करती हुई आत्मा से उसके भीतर की ईर्ष्या व अन्य बुराइयां अपने आप नष्ट हो जाती हैं। प्रेम की प्रक्रिया में शुद्धिकरण भी हो जाता है। तमाम खाप पंचायतें और उन जैसी संस्थाएं प्रेम का विरोध केवल इसलिए करती हैं कि वे प्रेम के उजास से भयभीत हैं। उन्होंने अंधविश्वास व कुरीतियों का अंधकार बनाया है और प्रेम की एक किरण से वह ध्वस्त हो जाता है। हुकूमतें अंधकार आधारित होती है। गौर कीजिए कि रात के अंधकार में उल्लू को साफ दिखता है। सरकार का अर्थ ही उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करना है। यह भी गौरतलब है कि निर्माता आनंद एल. राय के लिए लेखक निर्देशक मोहम्मद अजीज ने यह फिल्म रची है, जो पिछले वर्ष 8 अगस्त को प्रदर्शित हुई थी।

इस फिल्म में एक मजेदार संवाद यह था कि मधुबाला इतनी खूबसूरत व दिलकश थीं कि करोड़ों लोग उनसे प्रेम करते थे परंतुअसल में तो जानकारी यह होनी चाहिए कि मधुबाला किसे प्रेम करती थीं। इस फिल्म का केंद्र हैप्पीनेस है और सारे संसार में आपाधापी के बीच हैप्पीनेस ही नष्ट हो गई है। आज किसकी वार्षिक आय क्या है इस पर ही सबका ध्यान है परंतु कौन कितना खुश है यह कोई नहीं जानता। जीडीपी के तमाम आंकड़े भी यह नहीं सिद्ध कर पाते कि मुल्क में खुशी है। भोपाल की एक संस्था का उद्‌देश्य हैप्पीनेस की खोज है। खुशी विचार प्रक्रिया के मथने पर निकला मक्खन है।