खून / सुधाकर राजेन्द्र

Gadya Kosh से
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वतन के लोगों, मैने तेरी रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में अपना गर्म खून दिया, पर तू ने प्रसव वेदना से पछाड़ खाती मेरी र्ध्मपत्नी को खून की कमी होने पर एड्स संक्रमित गन्दा खून दिया। यही है मेरी देशभक्ति का पुरस्कार? अब मेरी पत्नी और मैं जिन्दा लाश बन कर रह गया हूँ। स्कूल में मेरे आठ वर्षिय बेटे को उसके सहपाठी ‘एड्स’ कह चर चिढ़ाते हैं जिस कारण वह स्कूल छोड़ चुका है। कारगिल युद्ध में घायल कैप्टन संजीव का कथन सुनकर मैं मोम की तरह पिघल गया। विशेष जानने की उत्सुकता बश मैंने उनसे पूछा-ऐसा क्या हुआ आपके साथ ?

कैप्टन संजीव ने कहा-मैं सेना का जवान हूँ। भारत माता और देशवासियों की रक्षा करता हुआ मैं कारगिल युद्ध में घायल सैनिक हूँ। दुश्मनों की गोली मेरे दाएं बाँह में लगी थी। मेरी वर्दी खून से होली के रंग की तरह रंग चुकी थी, फिर भी मैं दुश्मनों से लोहा लेता रहा। आज मैं विकलांग हूँ। ठीक उसी समय मेरी पत्नी मेरे दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी ।गाँव में उसे प्रसव पीड़ा होने पर मेरे देहाती माता-पिता ने एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया। डाक्टर ने बेहद खून की कमी बता कर खून चढ़ाने की बात कही। मेरे माता पिता चाह कर भी उसे खून नहीं दे सके क्योंकि उनका रक्त ग्रूप नहीं मिल सका। अन्त में मेरे पिता ने ब्लड बैंक से खून खरीदा। डॉक्टर ने बिना एच.आई.वी जाँच किए वह खून मेरी पत्नी को चढ़ा दिया। रक्त चढ़ते ही उसकी तबियत और खराब होने लगी। डाक्टर के प्रयास से वह मेरे बच्चे की माँ तो बनी किन्तु रह गई एच.आई.वी-एड्स का शिकार हो कर।

जब मैं सैनिक अस्पताल से मुक्त हो कर घर आया तो पता चला कि उसकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। मैंने दानापुर सैनिक अस्तपाल में उसे भर्ती कराया तो-डॉक्टरों ने जाँच के क्रम में उसे एड्स संक्रमित पाया। जानकर मैं सन्न रह गया। इस घटना के जाँच के क्रम में पता चला कि एड्स संक्रमित खून चढ़ा देने के कारण मेरी पत्नी एड्स संक्रमित हो गई।

मैंने देश की रक्षा खातिर अपना शुद्ध खून उस युद्ध में देश को दिया तो देश के लोगों ने एक सैनिक की पत्नी को एड्स संक्रमित खून दे कर जिन्दा लाश बना दिया। सैनिक अस्पताल के डाक्टर ने ब्लड बैंक के अधिकारी और उस डाक्टर पर मुकदमा करने का आदेश दिया। पर भारतीय न्यायिक प्रक्रिया मेरी पत्नी को एड्स मुक्त कर पाएगा क्या? ऐसा सोच कर मैंने मुकदमा नहीं किया क्योंकि मैं कोट कचहरी दौड़ता या पत्नी की सेवा और उपचार कराता।

अब सैनिक अस्पताल के उपचार से मेरी पत्नी कुछ ठीक रहने लगी है। पत्नी के साथ व्यवहार के बारे में डाक्टरों ने मुझे बहुत अच्छे तरीके से समझाया और उसके साथ प्रेम व सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने की सलाह दी। अब मेरी पत्नी एड्स का शिकार हो कर मेरे गाँव में रहती है। पूरे गाँव के लोग मेरे परिवार से नफरत करते हैं, हीन भावना से देखते हैं। लोग मेरे यहां आना पसन्द नहीं करते। यहां तक नाते रिश्तेदार भी आना नहीं चाहते। सभी लोग मेरे परिवार को ‘एड्स’ कह कर सम्बोधित करते हैं। यहां तक कि मेरा आठ साल का बेटा स्कूल छोड़ चुका है। उसके सहपाठी भी उसे एड्स कह कर चिढ़ाते हैं।

इस घटना की जानकारी जब ज्ञान विज्ञान स्वयं सेवी संस्था के संयोजक सरिता और दिनेश को लगी तो उन लोगों का मेरे घर आना जाना जारी है। इन दोनों ने कल मेरे गांव में एक मीटिंग रखा है। मुखिया सरपंच और गाँव वालों को बुलाया है एड्स के बारे में समझाने के लिए। सदर अस्पताल के डाक्टर सिविल सर्जन और नर्स भी आ रहे हैं। आप तो लेखक हैं आप भी आइए।

सैनिक संजीव का मौखिक आमंत्राण स्वीकार कर मैं भी उस सभा में गया। देखा पास के खलिहान में एक शामियाना के नीचे गाँव के सभा में मंच पर सिविल सर्जन, डाक्टर और कई नर्सो के साथ कैप्टन संजीव की पत्नी व संजीव बैठे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों को एड्स के बारे में इस प्रकार समझाया कि लोगों की धरणा बदल गई। अब गाँव वाले सैनिक संजीव के घर आने-जाने लगे, सैनिक संजीव का बेटा भी स्कूल जाने लगा है।

सामाजिक कार्यकर्त्ता दिनेश और सरिता ने कैप्टन संजीव की पत्नी के जीवन में एड्स संक्रमित गन्दा खून देने वाले ब्लड बैंक के अधिकारी और डाक्टर पर अपनी संस्था ज्ञान विज्ञान की ओर से मुकदमा ठोका। आज वह दोषी डाक्टर और ब्लड बैंक का अध्किारी जेल की हवा खा रहा है। सरिता और दिनेश ने समाज को सैनिक संजीव की देशभक्ति के मूल्य को चूकाने व एड्स से लोगों को बचाने का संकल्प लिया है, क्योंकि हमारे समाज और राष्ट्र का हृदय ऐसे सैनिकों के खून से धड़क रहा है ,जिनके परिजनों के दिलों में एड्स संक्रमित नहीं शुद्ध खून को धड़कने की जरूरत है।