खूबसूरत लड़की / मुकेश मानस
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सुबह होते ही वहाँ के लोग अपनी-अपनी बगलों में खाने के डिब्बों को दबाये काम पर निकल जाते और देर रात तक ठीक अपने लौट आने के वक्त के आस-पास लौट आते। फिर खाना खाकर घर के भीतरी कमरों में टेलीविज़न पर कुछ भी देखते या नई या पुरानी बीबियों से पाँव दबवाते। फिर नींद का झटका आने पर मुर्दों की तरह निस्तेज होकर सो जाते। कभी-कभार बीबियों की शिकायतों पर दाँती मिसमिसाकर बच्चों को पीटते और उन्हें गला फाड़कर रोने भी नहीं देते।
वहाँ की औरतें घर के कामों में दिन-रात अपने आपको खटाये रखतीं। पतियों की फटी और उधड़ी कमीजों को सिलतीं। झाड़ू-पौंछा करतीं। घर को सजाये रखने में लगी रहतीं। लड़कियों के सीनों की बढ़ती गोलाइयों को कोसतीं और उन्हें घर के बाकी बच रहे कामों में लगाये रखतीं। रात को पतियों के काम से लौटने पर उन्हें खाना खिलातीं, पैर दबातीं और जरूरी स्त्रिायोचित कर्तव्यों को निबाहकर पतियों को सुलातीं। कभी-कभी पतियों से खूब मार खातीं और सुबह होने पर सब-कुछ भूल जातीं। शाम को आस-पास की दुकानों से घरेलू सामान खरीदने जातीं। दुकानदारों से मोल-भाव करतीं और उफँचे दामों की शिकायत करते हुए घर लौट आतीं।
वहाँ के लड़के गलियों में आवारा सांडों की तरह मारे-मारे फिरते रहते। समय काटने के लिए यहाँ-वहाँ ताश फेंटते रहते। जिनको जुआ खेलने की लत पड़ जाती वो आस-पास के इलाकों में चोरी करते फिरते। पकड़े जाने पर खूब मार खाते। माँ-बाप को बेइज़्ज़त करवाते। रिश्वत दे दिलाकर छूट आते और फिर चोरियाँ करने में लग जाते। जो कारपोरेशन में नौकर थे वो दिन भर तम्बाकू गुटककर सड़कों पर झाड़ूलगाते और ‘नाइट शो’ देखकर घर लौटते।
वहाँ की लड़कियाँ घरों में बंद रहतीं। घरों से बाहर निकलने की उन्हें मनाही होती। मन करता तो घरों की खिड़कियों से बाहर की दुनिया में झांक लिया करतीं। उन्हें न सुफ कपड़े पहनने का शौक होता, न बाल बनाने का। उनमें से शायद ही कोई स्कूल पढ़ने गयी थी। जो पढ़ने जाती वो प्राइमरी भी शायद ही कभी पार कर पाती। दिन-भर बुड़-बुड़ करते हुए घरों के कामों में लगी रहतीं और रातों को सोते हुए चीखने-चिल्लाने लगतीं। आस-पास की दुकानों के मालिक दिन भर अपनी दुकानों में बैठे रहते और अपनी गंदी कापियों में कुछ ना कुछ लिखते रहते। वे अपने ग्राहकों की शक्लें नहीं पहचानते होते। उन्हें अपनी दुकान में रखी एक-एक चीज की कीमत उन्हें मालूम होती। वो हर संभव कोशिश करके अपनी दुकानों में रखी चीजों को ऊँचे दामों पर बेचते। उन्हें हर वक्त मुनाफ़ा कमाने के सपने आते रहते। दुकान में बैठे-बैठे घरों, बीवियों, बच्चों का ख्याल उन्हें कभी नहीं आता।
बिजली वाले, पानी वाले दिन-भर अपने खंडहरनुमा दफ्तरों में सुरती फांकते रहते या बीड़ियाँ फूंकते रहते। बिजली वाले दिन में दो बार बिजली काटते और रातों को अक्सर बिजली भगा देते। पानी वाले दिन में दो बार पानी छोड़ते। कोई उनके पास शिकायत लेकर नहीं आता। आता तो वो उसे डाँटकर भगा देते। रात होने पर जमकर शराब पीते और अपने-अपने अफसरों को गालियाँ देते हुए घरों को लौट जाते।
वहाँ के लोकल नेता अक्सर बेईमानी, भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोरी के किस्सों में चरित्र बनकर अखबारों में आते। महीने-दो महीने में एकाध् मीटिंग बुलाते। पालतू लोग उनकी मीटिंगों में आते और बात-बात पर तालियाँ पीटते। नेताओं को ऐसे लोग ज्यादा पसंद आते। वे अपना ध्यान जन समस्याओं से हटाकर पार्टी के भीतर की जोड़-तोड़ में लगाये रखते। दिन-भर वे अपने आकाओं के यहाँ दौड़ लगाये रहते।
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एक दिन वहाँ एक सुंदर लड़की देखी गयी। उसके बाल बिखरे हुए थे और उसके नितम्बों तक लटके हुए थे। उसकी आँखें झील-सी गहरी और नीली थीं। उसके नैन-नक्श तीखे और मनमोहक थे। उसके होठों से रस टपक रहा था। उसके सीने की गोलाइयाँ इतनी उभरी हुई थीं कि उसकी रंग-बिरंगी समीज से बाहर निकल आने को बेताब थीं। उसके शरीर की बनावट में गजब का आकर्षण था। उसका दूधिया रंग छलक-छलककर उसकी खूबसूरती को वहाँ की हवा में मिला रहा था। वह एक बेहद खूबसूरत लड़की थी। उसे किसी ने देखा नहीं था मगर उसकी खूबसूरती की बातें वहाँ बिजली की तरह फैल रही थीं।
वहाँ के आदमी उस खूबसूरत लड़की को देखने के लिए बेताब रहने लगे। सुबह जल्दी तैयार होकर वे घरों के टहलने लगे और काम से जल्दी-जल्दी लौटने लगे। वे टेलीविज़न देखना कम करने लगे। शाम को घरों के बाहर कुर्सियाँ डालकर बैठने लगे। वे आपस में उस खूबसूरत लड़की की चर्चा करने लगे। वहाँ की औरतों ने जब उस लड़की के बारे में सुना तो उन्हें अपनी जवानी के दिन याद आने लगे। घरों के भीतर वो बार-बार शीशा देखने लगी और अपनी बदहाली के लिए पतियों को कोसने लगीं। पतियों के लौटने से पहले वो सजने-संवरने लगीं।
ताश खेलते लड़कों ने जब उस लड़की के बारे में सुना तो वे ताश खेलना छोड़ने लगे। वो उस लड़की के उभारों और नितम्बों की कल्पना करने लगे। उन्हें अपनी बेकारी का ख्याल आने लगा। वो तम्बाकू कहीं रखकर भूल जाने लगे। नहा-धोकर, बालों में तेल डालकर, कंघी करके गर्लियों के मोड़ों पर बैठने लगे। चोरी करने से ज्यादा जरूरी काम उन्हें उस खूबसूरत लड़की की एक झलक पा लेना लगने लगा।
लड़कियों ने जब उस खूबसूरत लड़की के बारे में सुना तो उनके मुँह से आह निकलने लगी। वो अपनी हालत पर गौर करने लगीं और उन्हें अपनी सूरते-हाल पर रोना आने लगा। वो अपने उभारों को थोड़ा उचकाकर, बालों को बिखराकर, आँखों में सुरमा डालकर अपनी मांओं के साथ बाजार तक जाने के लिए मचलने लगीं।
दुकानकार अपनी गंदी कापियों से बाहर निकलने लगे और सड़क पर आते-जातों पर टकटकी लगाये रखने लगे। उन्हें अपनी बीबियों के गदराये जिस्मों का ख्याल आने लगा। उनका दिल अपने बच्चों के लिए प्यार से भरने लगा। वो जल्दी अपनी-अपनी दुकानें बंदकर घर लौटने को बेताब रहने लगे।
बिजली वाले उस लड़की को देखने के लिए रात में बिजली देने लगे और दिन में लोगों की शिकायतों पर वो घरों में जाने लगे। पानी वाले गलियों में घूमने लगे और लोगों से बातचीत करने लगे।
उस खूबसूरत लड़की की चर्चा आदमियों के खाने के डिब्बों में समा गई थी। औरतों की जवानी की याद में उतर गई थी। आवारा लड़कों के सपनों में घुस गई थी। लड़कियों के उभारों में बस गई थी। दुकानदारों की कापियों में लिख गई थी। बिजली वालों-पानी वालों का आकर्षण बन गई थी। उसकी चर्चा वहाँ के आसमान में थी। सभी उसे देखने को बेताब थे। मगर वह खूबसूरत लड़की कहाँ थी? 2000