खेद / हेमन्त शेष
Gadya Kosh से
सुबह की धूप में और ज्यादा नारंगी लगतीं ठेले पर केसरिया रंग की ताज़ा नारंगियाँ देख कर लगा कि उन्हें रुक कर तत्काल खरीदा जाना चाहिए क्योंकि ठेले वाले ने उन्हें बेचने के लिए ही सजाया था, किसी अज्ञात ग्रह से उतरे अंतरिक्षयात्रियों के लिए नहीं कि ” देखो! पृथ्वी पर नारंगियाँ ऐसी होती हैं...” मुझे तुरंत कहीं पहुंचने की जल्दी थी इसलिए उनके रंगरूप पर एक प्रशंसात्मक निगाह डालते मुझे उस केसरिया ढेर के सामने से निकल जाना पड़ा- ये सोचते हुए कि मेरे अलावा बाज़ार में और बहुत से लोग थे जो उन नारंगियों को नहीं खरीद रहे थे, पर हिंदी का कौन सा वाक्य कह कर उस क्षण वे नारंगी न खरीदने के अपने खेद को आश्वस्ति में बदल रहे होंगे, मुझे नहीं मालूम!