खेलकूद की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
खेलकूद की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्में
प्रकाशन तिथि : 14 अक्तूबर 2019

खेलकूदकी पृष्ठभूमि पर अधिक फिल्में नहीं बनी हैं। अरसे पहले देव आनंद और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'लव मैरिज' में नायक क्रिकेट खिलाड़ी था परंतु उसे खेलते हुए नहीं दिखाया गया। बाद में कुमार गौरव ने क्रिकेट केंद्रित फिल्म में अभिनय किया था। कुछ वर्ष पूर्व भी शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'चक दे इंडिया' में महिला स्पर्धा की विश्वसनीय प्रस्तुति हुई थी। फिल्म विविधता में एकता को भी रेखांकित करती है कि विभिन्न प्रांतों से आए खिलाड़ी एकजुट होकर खेल सकते हैं। इतना ही नहीं एक खिलाड़ी को अपने एक अहंकारी परिचित को सबक सिखाना था कि महिलाएं पुरुषों से किसी बात में कम नहीं है। उसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी साथी खिलाड़ी गोल मारने के सहज अवसर को अपने प्रतिद्वंद्वी को यह कहते हुए देती है कि 'उस दंभी लड़के को दिखा दो कि हम किसी से कम नहीं'।

धावक मिल्खा सिंह की बायोपिक 'भाग मिल्खा भाग' बहुत प्रभावोत्पादक ढंग से बनी थी। उसमें एक समझौता यह था कि घटनाओं को आगे-पीछे कर दिया गया था। नाटकीय प्रभाव के लिए ऐसा किया गया था। भारत में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के उद्घाटन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि खेल भावना से खेलें। उनके शब्द थे 'प्ले द गेम इन द स्पिरिट ऑफ द गेम'। अनेक वर्ष पश्चात भारत की क्रिकेट टीम पाकिस्तान के दौरे पर जा रही थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने टीम से कहा था कि दिल जीतकर आना। प्रतिस्पर्धा जीतने से अधिक आवश्यक है सद्भावना प्राप्त करना। कुछ माह पूर्व ही अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'गोल्ड' भी हॉकी केंद्रित फिल्म थी। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद बायोपिक के अधिकार पूजा एवं आरती शेट्टी के पास हैं। कुछ दिन पूर्व ही क्रिकेट केंद्रित 'द जोया फैक्टर' का प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म में खिलाड़ियों के अंधविश्वास को प्रस्तुत किया गया था। एक क्रिकेट खिलाड़ी हर मैच में लाल रुमाल अपनी जेब में रखता है। एक खिलाड़ी ने जिस अंडरवियर को पहनकर शतक लगाया था उसी अंडरवियर को स्वयं धोकर हर मैच में पहनता है। कुछ खिलाड़ी शतक लगाकर आसमान की ओर देखकर धन्यवाद देते हैं। कुछ जमीन पर सजदा करते हैं। ब्राजील के सर्वकालिक महान खिलाड़ी पेले के शहर में कोई दुकानदार उनसे दाम नहीं लेता। यह उनके प्रति सम्मान प्रदर्शन है। महान मैराडोना के हाथ को फुटबॉल छू गया था, जिसे रेफरी नहीं देख पाया और मैच के बाद में मैरीडोना ने कहा 'दैट वाज हैंड ऑफ गॉड'। यह गौरतलब है कि क्रिकेट के दर्शक और फुटबॉल के दर्शक के स्वभाव में भारी अंतर है। उनके प्रिय पेय भी अलग-अलग हैं। फुटबॉल का दर्शक रम पीता है, क्रिकेट दर्शक बियर पीता है।

रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म का नाम 'हइशा' था। जिसमें रानी अभिनीत पात्र लड़के का रूप धारण करके क्रिकेट खेलती है, क्योंकि उस कस्बे में लड़कियों का क्रिकेट खेलना बुरा माना जाता है। तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर अभिनीत फिल्म 'सांड की आंख' में दोनों कलाकार उम्रदराज निशानेबाज महिलाओं का किरदार अभिनीत कर रही हैं। यह एक बायोपिक है। बैडमिंटन, टेबल टेनिस और टेनिस के स्कोर बताने के लिए 'लव' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इंदौर की विभावरी संस्था के सदस्यों ने बैडमिंटन खेल पर आधारित 'लव ऑल' नामक पूरी फिल्म की शूटिंग भोपाल में की है। देश के आला खिलाड़ियों ने उनका सहयोग किया। केके मेनन कोच की भूमिका कर रहे हैं। सुधांशु शर्मा ने फिल्म निर्देशित की है। सोनल शर्मा ने गीत लिखे हैं और सौरभ ने धुन बनाई हैं। सोनू निगम ने गीत गाया है। बैडमिंटन पर केंद्रित यह पहली फिल्म है।

फिल्म निर्माण की महंगी प्रक्रिया को मुंबई, चेन्नई, कोलकाता से निकालकर छोटे शहरों और कस्बों में ले जाना चाहिए। उदाहरण के लिए मुंबई में चल रही शूटिंग में किसी वस्तु की आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति टैक्सी में जाता है। जिसका भाड़ा वस्तु से 10 गुना अधिक होता है। छोटे शहरों में फासले कम हैं और वस्तुएं भी अपेक्षाकृत सस्ती हैं। खाकसार ने 'शायद' की शूटिंग इंदौर में की थी और फिल्म की लागत उसी शहर में प्रदर्शन से निकल गई थी। निदा फ़ाज़ली और मानस मुखर्जी ने गीत-संगीत रचा था। शराब सेहत के लिए हानिकारक है। इसी को निदा फ़ाज़ली ने यूं बयां किया था। 'दिन भर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम। जिन गलियों में मौत बिछी थी, उनमें जीने निकले हम'। 'लव ऑल' में सोनल शर्मा ने प्रेरक गीत लिखा है।

भोपाल में शूट की गई फिल्म को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोरंजन कर से मुक्त करते हुए उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप कुछ धन भी दे सकते हैं। उनकी योजना कस्बों पर वृत्तचित्र बनाने की है। गौरतलब है कि विभावरी संस्था के सदस्य अपने सदस्यों द्वारा लगाए गए धन से ही सारी गतिविधियों का संचालन करते हैं। दरअसल व्यवस्थाओं की ओर हर काम के लिए क्यों तकना चाहिए। साधन सहभागिता से भी जुटाए जाते हैं। बहरहाल, डिवाइड ऑल के दौर में 'लव ऑल' टाइटल भी बहुत कुछ कहता है। खेलकूद सद्भावना को बढ़ाता है।